नमस्कार आपका स्वागत है

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Tuesday, January 31, 2012

दमादम मस्त कलंदर .....

मैं सोचती हूँ ...शास्त्रीय संगीत मेरी आत्मा है ...!लेकिन मुझ जैसे और भी लोग हैं जिनकी आत्मा है शास्त्रीय संगीत ...!!शायद मुझसे भी ज्यादा लगाव है संगीत से उनका ...!!
गाना बजाना और सुनना ...
किन्तु  न गायक न वादक न श्रोता ...यहाँ सिर्फ संगीत है .....एक रूप ...उसी में सब समां जाना चाहते हैं ...संगीत सब को एक लहर में बहा ले जाता है ....इस अनुभूति के लिए .. ...इस शाम के लिए मैं अपने आप को धन्य मानती हूँ .....




सिंथ  पर  हैं  मुकेश कानन जी 
तबले पर हैं हमित वालिया जी . 

दमादम मस्त कलंदर .....सुनिए ....

Monday, January 23, 2012

सहृदय स्वरोज सुर मंदिर पर ...

सहृदय स्वरोज  सुर मंदिर पर ...

ख़ामोशी की आवाज़....
अँधेरे में उठाते रोशन लफ्ज़ ...



Monday, January 16, 2012

ताल और रस ....!!

किसी भी कला के लिए ये ज़रूरी है कि उससे मानव ह्रदय में स्थित स्थायी भाव जागें और उन भावों से तत्सम्बन्धी रस की  उत्पत्ति होती हो ;तभी मनुष्य आनंद की  अनुभूति कर सकता है |इसी को सौंदर्य बोध कहते हैं |
साहित्य में नौ रसों का उल्लेख किया गया है :
१-श्रृंगार  रस
२- करुण रस
३-वीर रस
४-भयानक रस
५-हास्य रस
६-रौद्र  रस
७-वीभत्स रस
८-अद्भुत रस
९-शांत रस


संगीत में श्रृंगार,वीर,करुण और शांत इन चारों रसों में अन्य सभी रसों का समावेश मानते हुए ताल और लय को भी रसों में सम्बंधित माना  गया है |
शब्द,स्वर,लय  और ताल मिल कर संगीत में रस की  उत्पत्ति करते हैं |साहित्य में छंद की  विविधता और संगीत में ताल एवं लय के सामंजस्य द्वारा विभिन्न रसों की सृष्टि की  जाती है |
   ताल विहीन संगीत नासिका विहीन मुख की  भांति बताया गया है |ताल से अनुशासित होकर ही संगीत विभिन्न भावों और रसों को उत्पन्न कर पता है |ताल की गतियाँ स्वरों की सहायता के बिना भी रस -निष्पत्ति में सक्षम होती हैं |


मध्य लय -हास्य एवं श्रृंगार रसों की पोषक है |
विलम्बित लय -वीभत्स और भयानक रसों की पोषक है |
द्रुतलय -वीर,रौद्र एवं  अद्भुत रसों की पोषक है |