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| अरुण कमल | 
 स्वरोज सुर  मंदिर की चौथी कड़ी प्रस्तुत है ..!!सबसे पहले आभार आप सभी का इस श्रंखला में रूचि लेने हेतु ..!
मनोज जी आपने प्रश्न  पूछा था की राग और थाट में क्या अंतर है ..?
आज  यहीं  से इस आलेख की शुरुआत करती हूँ |आधुनिक काल में यह पद्धति थाट -राग   वर्गीकरण के नाम से प्रचलन में आई |जैसा की मैंने आपको बताया था संपूर्ण   रगों को ,उनके स्वर प्रयोग के आधार पर ,दस थाटों में विभाजित किया गया है   |फिलहाल हम कल्याण थाट की बात कर रहें हैं |कल्याण थाट में कई राग आते हैं   ..जैसे -भूपाली,कल्याण,छायानट,केदार,कामोद,गौड़ सारंग,हमीर ...इत्यादि |अब   इन्हीं सब रागों से राग कल्याण पर हमने थाट का नाम भी कल्याण कर दिया |तो   कल्याण थाट भी है और राग भी |अब भूपाली को लीजिये ...उसका वर्णन करते समय   हम कहेंगे थाट- कल्याण ..राग -भूपाली ...|
इस  प्रकार हर थाट में कोई एक ऐसा राग होता है जो राग भी है और थाट भी |फिर   आगे मैं आपको बताउंगी कि हर थाट में कुछ स्वर संगतियाँ समान होती हैं |हर   थाट कि कुछ विशेष बातें होतीं हैं जो उसके अंतर्गत आने वाली हर राग में   झलकती है|
थाट कल्याण की मुख्य  विशेषता है तीव्र मध्यम का प्रयोग....!!
यहाँ मैं आपको पुराना लिंक भी दे रहीं हूँ उसको पढ़ने से भी थाट के बारे में समझ और बढ़ सकेगी ...!!
आगली कड़ी में हम चर्चा करेंगे कल्याण थाट की कुछ अन्य विशेषताओं के बारे में ...!!
आपके सुझाव और कुछ अन्य प्रश्न भी आमंत्रित  हैं ....!!
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कुछ उनकी कुछ इनकी...
आभार..