नमस्कार आपका स्वागत है

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Saturday, December 14, 2013

राग हंसध्वनी मे एक भजन सुनिए ....


संगीत का कार्य  मन के सोये भाव जगाना है |मन को सुकून देना आह्लाद देना है ...!!मन मे उठी सुख और दुख की अनुभूतियाँ जब गीत बनकर गूंजने लगती है तो उन्हीं को विभिन्न नामों से पुकार कर किसी राग का नाम दे दिया जाता है |


राग हंसध्वनी मे एक भजन सुनिए ।यह कर्नाटक पद्धति का राग है |इसका ठाट बिलावल है |गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है |
दिन विश्राम चाहता है .....और रात्रि अपनी शीतलता लिए .....धीरे धीरे उतर रही है ....
थका हारा प्राणी जब थोड़ी विश्रांति चाहता है ,जीवन की जद्दोजहद के लिए थोड़ी ऊर्जा चाहता है ...आइये सुनते हैं ये भजन .....एक एक स्वर सुकून देता हुआ सा ....दिव्य आनंद की पराकाष्ठा है यहाँ ....!!सुर और ताल का भेद अभेद  है .....जाने कैसी स्वर लहरियाँ है ...जो सीधे हृदय तक पहुँचती हैं ......और देतीं हैं सिर्फ आनंद ....

Sunday, October 6, 2013

राग दरबारी कान्हड़ा ।



राग दरबारी कान्हड़ा ।
रात्रि के अंतिम प्रहर मे गाया बजाया जाता है ...!!
मंद्र सप्तक का ज्यादा प्रयोग होता है क्यूंकी रात का अंतिम प्रहर है !ऐसा प्रतीत होता है मानो अंधकार हार गया है लड़ते लड़ते .....स्वर क्षीण से ...अवरोह पर हैं .....और .............बस भोर होने को ही है ......प्रकृति भी धीर है ,गंभीर है ,चंचल नहीं है ......


पूरी राग सुनने के पश्चात भोर की सी अनुभूति होती है .....यही संगीत की ताकत है ....
कहते हैं तानसेन ने अकबर बादशाह को प्रसन्न करने के लिए ये राग गाया था !



Friday, September 20, 2013

संगीत और छंदशास्त्र .....!!

अक्षर या वाक का लयात्मक स्वरूप जब निश्चित मात्राओं मेन विभक्त होता है तो वही छंद कहलाता है !!ताल जगत में इसी को निश्चित मात्राओं में आबद्ध 'ताल 'कहते हैं !!इस प्रकार से काल की नियमित गति ही ताल या छंद को जन्म देती है ||अक्षरों के नियमित कंपन स्वर को जन्म देते हैं |संगीत में स्वर ,छंद और ताल का विशेष महत्व है |

                 भरत ने अत्यंत व्यापक रूप में वाक्  तत्व को शब्द और काल तत्व को छंद कहा है |उन्होने कहा है कि  कोई शब्द (ध्वनि)छंद  रहित नहीं और न कोई छंद  ,शब्द रहित है ;क्योंकि ध्वनि काल के बिना व्यक्त नहीं होती और काल का ज्ञान ध्वनि के बिना संभव नहीं |काल सीमा रहित है |अतः उसका ज्ञान तभी संभव है जबकि उसे खंड बनाकर बांध लिया जाये |इसके बिना काल की अभिव्यक्ति संभव नहीं होगी |भूत,भविष्य और वर्तमान की गणना ,माने गए काल -खण्डों (कल्पित )पर ही अवलंबित है |

                                      जिस पदबंध में यति,छेद इत्यादि नियत प्रमाण के आधार पर 'पाद 'बनते हैं ,तभी वह 'निबद्ध 'और पद्य कहलाता है,अन्यथा वह गद्य की श्रेणी में आता है ,जिसमे नियमित लय या गति नहीं होती |अर्थात गति को नियमित विभाजन से छंद बनता है |
आज के लिए इतना ही अगली बार इसी चर्चा को आगे बढ़ाएंगे। ….!!

यति का अर्थ विराम है ....
छेद का अर्थ जैसे गणित में भाजक ,झटका या रुकावट से है |लय के भेद को छेद कहा गया है |
पाद अर्थात चरण ...

यहाँ ताल को ध्यान से सुनिए और स्वर और ताल का आनंद लीजिये ....
                                                                                                                                          क्रमशः 

Tuesday, August 6, 2013

मेरा पीर घर आया .....राग मियां मल्हार .....!!!!











बरसते हुए पानी में पीड़ा क्यों झरने लगती है ......


ठंडी पावन पवन आर्द्रता से भरी ..एक अजीब सी टीस लिए हुए  जब बहती है ....छू जाती है हृदय को .......तब नैनो से दो बूंद आँसू ज़रूर टपकते हैं और उस समय कहना बहुत मुश्किल है ....मन क्या कह रहा है ये समझना भी बहुत मुश्किल है ....
मनन  चिंतन से बस ईश्वर के पास होने की अनुभूति होती है .....

ये तड़प कैसी है .....
आह्लाद है या विरह .....
...राग मल्हार पर एक खूबसूरत प्रस्तुति




Tuesday, July 23, 2013

कैसी बाज रही कान्हा की बांसुरिया .......!!!

बरखा की बुंदियां बरस रही हैं ......
ठंडी पावन बह रही है ....
पत्ते मानो करतल ध्वनि से इस मौसम का स्वागत कर रहे हैं .......
धरा मे कुछ नवीनता का संचार हो रहा है ..........
पाखी हैं कि भीग भीग कर कलाबाज़ियाँ कर रहे हैं ....
इन्हीं पाखियों के साथ मेरा मन उड़ा जा रहा है ....
 अनंत  उड़ान है ये ....
वर्षा में भीगती हुई ......
न जाने कहाँ जा रही हूँ मैं ......
कोई दैविक शक्ति निरंतर अपनी ओर खींच रही है ....
बेबस खींची चली जा रही हूँ मैं ....
अचरज है .....कानो में सुनाई दे रहा है .....कुछ सुकून भरा संगीत ....
जैसे कान्हा बासुरी बाजा रहे हैं ......

क्या आप भी सुन पा रहे हैं ....या मेरा ही भ्रम है .....????????



Friday, July 19, 2013

आज रात चाँद को पुकारती रही................

आज रात चाँद को पुकारती रही
व्योम मंच पर न किन्तु चाँद आ सका
बादलों की ओट में कहीं रहा छिपा
दामिनी प्रकाश पुंज वारती रही ....
आज रात चाँद  को पुकारती रही ...

देखती रही खड़ी नयन पसार कर ...
है वियोग ही मिला सदैव  प्यार कर ...
तारकों से आरती उतरती रही ...

आज रात चाँद को पुकारती रही ...

हो गई उदास और रात रो पड़ी....
वारने लगी अमोल अश्रु की लड़ी ...
दूर से खड़ी उषा निहारती रही ...
आज रात चाँद को पुकारती रही ....

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शोभा श्रीवास्तव का लिखा ये गीत .....
अब सुनिए मेरी आवाज़  में.......
कृपया ईयर फोन से  सुने अन्यथा आवाज़ बिखरती है ....

Saturday, July 6, 2013

वर्षा ऋतु-राग मियां मल्हार ....(.1.)....!!!


इस वर्षा ऋतु मे आपको राग मल्हार के बारे मे विस्तृत जानकारी दूँगी और इसी राग की अनेक बन्दिशें सुनवाऊंगी |
आप जानते ही होंगे राग मिया मल्हार वर्षा ऋतु का राग है |वर्षा ऋतु मे आप इसे किसी भी समय गा -बजा सकते हैं |

नदी हूँ मैं....
गिरती है ये बरसात
कुछ इस क़दर मुझ पर ...
भीगती  हूँ भरी बरसात रो भी लेती  हूँ ...

O 


मिल जाता है इसी बरखा में
मेरे आंसुओं का खारा  पानी .........
और इस तरह ...
पहुँच ही जाती है मेरी सदा  समुंदर तक ......


संवेग ,संवेदन और सिद्धान्त का ज्ञान रखने वाला कलाकार सदैव सफल रहता है ,क्योंकि उसका संगीत श्रोता को तन्मय करने की क्षमता रखता है |

राग मियां मल्हार मेँ स्वरों का प्रयोग इस प्रकार है ...........कि सुन कर ही बारिश का सा एहसास होता है ......मन भीग जाता है ....!!
म ...रे ...प $$$$$$  ग    $$$$$$$  म रे सा ....!!

नि$$$  ध  नी सा .....!!

इस प्रकार स्वरों  का प्रयोग किया जाता है ....!!






बंदिश सुनिए और बरखा का आनंद लीजिये ....

आभार .....

Friday, June 21, 2013

संगीत शास्त्र एवं गायन की जुगालबंदी है .....!!



भारतीय संगीत तो हमारी धरोहर है ही ,लेकिन एक संगीतकार की धरोहर है संगीत शास्त्र ,स्वर विज्ञानं,और संगीत प्रदर्शन |इन सबका महत्व जाने बिना संगीत के क्षेत्र में उन्नति करना कठिन है |इनमें से किसी एक का आभाव होने पर संगीत जीवन में एक अधूरापन बना रहता है जो हर संगीतकार को जीवन पर्यंत कचोटता रहता है ,भले ही वह किसी भी ऊंचाई पर क्यों न पहुच जाए |वस्तुतः यही टीस  ....यही प्यास हर संगीतकार को संगीत से जोड़े रखती है |हर संगीतकार अपना संगीत स्वयं अच्छे से पहचानता है |अपनी खामियां भी स्वयं जानता है |उन्हीं पर बार बार रियाज़ करते हुए स्वयं समझ आने लगता है कि हमारा संगीत अब उन्नति कर रहा है |यही एक छोटी सी बात है जो हर संगीतकार को खुशी देती है |
संगीतकार के लिए पुस्तकालय रखना नितांत आवश्यक है |अध्ययन करते समय वह अपना दृष्टिकोण संकीर्ण न बनाये |प्रत्येक पुस्तक का ,चाहे वो भारतीय लेखक की हो या विदेशी लेखक की ,मनन आवश्य करना चाहिए |अपने  दृष्टिकोण को उदार बनाते हुए आप जो अध्ययन करेंगे ,उससे आपका ज्ञान सर्वतोन्मुख होगा |आपके संगीत की पृष्ठभूमि उदार और गंभीर बनेगी |
संगीत का आदर्श है ,ज्ञान के सुनहले रत्नों को एकत्रित करके जाज्ज्वल्यमान प्रासाद का निर्माण करना तथा सार्वभौमिक मानव जीवन का एक्य व संगठन |संगीतज्ञों को ऎसी रचना का सृजन करना चाहिए ,जो प्रान्त व देश की सीमाओं की विभिन्नताओं में रहते हुए भी एक अव्यक्त सूत्र में मानव-हित तथा सहयोग के बिखरे हुए पल्लवों का बंदनवार कलामंदिर के चारों ओर बाँध सकने योग्य हो |इस आदर्श की पूर्ती तभी हो सकती है ,जब आप क्रियात्मक के साथ साथ शास्र का भी (theory) का भी अध्ययन करें |

इसी सबब से मैं आपको शास्त्र के बारे में भी जानकारी देती रहती हूँ कि आप संगीत के विभिन्न पहलुओं से वाबस्ता होते रहें |

आज आपको दो रागों की जुगालबंदी सुना रही हूँ ......एक अद्भुत अनुभव .....









आभार ... ......

Monday, June 17, 2013

बरसन लागी ....




मस्तिष्क से सम्बंधित प्राकृतिक ज्ञान और उसकी क्रिया प्रणाली तथा अनुभुति ,मनोविज्ञान के अंतर्गत आती है |संगीत से सम्बन्ध होने पर उसे संगीत का मनोविज्ञान कहा जाता है |मनोविज्ञान का कार्य शारीरिक उत्तेजना और चेतना के प्रवाह के सम्बन्ध को स्थापित करना है |कोई भी नाद हमारी करणेंद्रिय को किस प्रकार प्रभावित करता है ,यह सब संगीत के मनोविज्ञान की श्रेणी में आता है । कुछ ध्वनियाँ ऎसी हैं जो ह्रदय पर अपनी छाप छोड़ती ही हैं ।

रिमझिम फुहार पड़ने लगती है और मन ...बस मन भी  भीगने लगता है ....भीगे से स्वर ...टिप टिप बारिश की आवाज़  और .......चुप रह कर भी क्या चुप रहा जाता है ....भीगी भीगी हवा बोल उठती है ....

कैसी बरसात है
बहती है थमी  रहती है ....
आँख का पानी है या ..
मन के समुन्दर की बस एक बूँद ....!!!!!!


बरसन लगी सावन बुंदियाँ राजा ...







एक आह्लाद .....अमन ...एक सुकून ....कुछ चैन देता है संगीत ......!!इतना सुमधुर गीत सुन कर कौन होगा जो रस में न डूबे ...

Tuesday, April 2, 2013

भक्ति फाग ......

आज निज घाट बिच फाग मचैहों
ध्यान चरनन में लागैहों .....

इक सुर साधे तम्बूरा तन का ..
सांस के तार मिलैहों ...
मोद-मृदंग मंजीरा मनसा ...
तो विनय कि बीन बजैहों ..
भजन सतनाम को गईहों ...


ये भक्ति फाग ...
राग मिश्र काफी ......ताल दीपचंदी ....
अब सुनिए ......




Saturday, March 23, 2013

नमन संगीत महानायक कुमार गन्धर्व जी को ...!!

स्वर आत्मा का नाद है |इस बात की चर्चा मैं पहले की पोस्ट में कर चुकी हूँ ...!!संगीत हमारी आत्मा ग्रहण करती है इसलिए संगीत सीखना कभी भी व्यर्थ नहीं जाता |इसीलिए कुछ लोग संगीत के साथ ही पैदा होते हैं ...विरासत में संगीत लेकर ....!!संगीत जन्मो जन्मो की तपस्या है ....!!





संगीत के महानायक  कुमार गन्धर्व जी के बारे में आज आपको कुछ जानकारी देने का मन है ...

कुमार जी का जन्म बेलगाम जिले के सुले भावी ग्राम में ८ अप्रैल १९२४ को एक लिंगायत परिवार में हुआ |उनका मूल नाम शिवपुत्र था |आपके पिता श्री सिद्रामप्पा कोमकली भी एक अच्छे गायक थे |

आयु के पांचवें वर्ष में ही एक दिन यकायक कुमार की प्रतिभा दृष्टिगोचर हुई |यह बालक उस दिन सवाई गन्धर्व के एक गायन जलसे में गया था |वाहन से लौटकर जब वह घर आया तो सवाई गन्धर्व द्वारा गई हुई बसंत राग की बंदिश तान और आलापों के साथ ज्यों की त्यों नक़ल करने लगा !यह देखकर इनके पिताजी आश्चर्य चकित रह गए |लोगों ने कहा ''इस बालक में पूर्वा जन्मा के संगीत संस्कार हैं अतः इसकी संगीत भावना को बल देने के लिए इसे शास्त्रीय संगीत आवश्य सिखाइये| ''फलस्वरूप कुमार जी की संगीत शिक्षा शुरू हो गई |दो ही वर्ष की तालीम में ही कुमार जी के अंदर यह विलक्षण शक्ति पैदा हो गई कि बड़े बड़े गायकों के ग्रामोफोन रिकॉर्डों की  हू -ब-हू नक़ल करने लगे | सात वर्ष की आयु में ही एक मठ  के गुरु ने उन्हें 'कुमार गन्धर्व 'की उपाधि प्रदान की |

नौं  वर्ष की आयु में कुमार गन्धर्व जी का सर्व प्रथम गायन जलसा बेलगाँव में हुआ | इसके पश्चात मुंबई के प्रोफ़ेसर देवधर ने कुमार जी को अपने संगीत विद्यालय में रख लिया | फरवरी सन १९३६ में ,मुंबई में एक संगीत परिषद हुई |उसमें कुमार गन्धर्व जी कि कला का सफल प्रदर्शन हुआ ,जिसमे श्रोतागण मुग्धा हो गए और उनका नाम संगीतज्ञों तथा संगीत कला प्रमियों में प्रसिद्द हो गया |

२३ वर्ष कि उम्र में अर्थात मई सन १९४७ ईo में कराची की एक संगीत निपुण महिला भानुमती जी से उनका विवाह हो गया |लेकिन उनका देहांत हो गया और कुमार जी को दूसरा ब्याह करना पड़ा|

दुर्भाग्य से कुमार जी तपेदिक जैसी बीमारी के शिकार हो गए |वायु परिवर्तन के लिए ही वे अपने परिवार के साथ मालवा की एक सुन्दर पहाड़ी पर बने शहर देवास में निवास करने लगे |पत्नी ने छाया कि तरह रहकर उनकी सेवा की जिसके परिणाम स्वरुप कुमार जी स्वस्थ हो गए ||तब से देवास को ही उन्होंने अपना निवास बना  लिया |

कुमार जी एक केवल मधुर गायक ही नहीं अपितु एक प्रखर कल्पनाशील कलाकार थे |लोक गीतों में शास्त्रीय संगीत का मधुर मिश्रण करके कुमार जी ने परंपरा की लीक से हटकर एक नई शैली को जन्म दिया ,जो श्रोताओं को भाव विभोर करती है |

१२ जनवरी १९९२ में आपका देहावसान हुआ ......!!

Wednesday, February 13, 2013

मीरा भजन ...

एक मीरा भजन सुनिए .....सुश्री सुमन कल्यानपुर जी की आवाज़ में....







Tuesday, January 29, 2013

स्वर सत्य से साक्षात्कार ....(राग मारवा )









तेज दुपहरी बीत चुकी ...
गहराती  स्वनिल  नीली सी साँझ ...
समर्पित ही रही मैं ..कर्तव्य की डोर से बंधी .....हर स्वर पर स्थिर  ....
अनुनादित अविचलित ..अकंपित  ...हे जीवन  .....तुम्हारे द्वार ...


सांध्य  दीपक जल रहा .. ...
है यह साँझ की बेला .....
तानपुरे की नाद गुंजित हृदय में...

संधिप्रकाश राग मारवा  है छेड़ा  ...
उदीप्त दृग ....अन्तःकरण तृषा शेष...
एक स्वर लहरी मेरी ..किन्तु फिर भी अशेष ......
आज .....क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??

मेरा  समर्पण है .....
मेरे जीवन की पूंजी ...
मेरी  आत्मा की प्रतिमा ...
एक अंजुरी जल की मेरी ....
मेरे स्वरों में ...मेरी आराधन  का प्रमाण ...
फिर भी ....आज क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??

तब ...
मेरे हृदय से रिस रहे  ...
ढेरों भावों में  से ...
अथाह पीड़ा कहती .....
स्वाति  सी ....
आँसू की बस एक बूंद मेरी .......
बन जाती है ....
मेरे ह्रदय स्त्रोत से फूटी हुई ..
हर कविता  मेरी ....!!
किन्तु आज ...नहीं लगता ...नहीं लगता है स्वर ......!!


स्वर की रचना कैसे रचूँ .....??
स्वर से वियोग ....कैसे सहूँ ....???
हे जीवन ...

नतमस्तक हूँ ...
आज भी तुम्हारे द्वार ....
बस कह दो एक बार ...
अपने छल को भूल ..........
क्या कर पाओगे मुझसे  साक्षात्कार ....?

खुले हैं मेरे उर द्वार ...
भेज दो वो स्वर मुझ तक निर्विकार .....
जहां मैं अभी भी खड़ी हूँ ....
प्रातः से साँझ तक ....
कर्तव्य की डोर से बंधी ...
हर स्वर पर स्थिर ...
अनुनादित ...अविचलित ...अकंपित ...
अपने ही द्वार .....
करने उस स्वर सत्य से साक्षात्कार .....

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गाना गाना और शास्त्रीय संगीत गाना दो अलग अलग बातें हैं ....!!शास्त्रीय संगीत को करत की विद्या कहा जाता है |सुर साधना पड़ता है तभी आप उसे ग्रहण कर सकते हैं |साल दर साल सुर साधते जाइए तब कहीं जाकर सरस्वती कंठ में विराजमान होतीं हैं ...!!राग को सही प्रकार गाने की चाह ही प्रत्येक विद्यार्थी को लगन और मेहनत से जोड़े रखती है |

अब ये वीडियो ज़रूर देखें .......तभी आप कविता में छुपी हुई वेदना समझ पाएंगे .....








Friday, January 25, 2013

राग मधुवंती तथा जोग का परिचय ।


राग मधुवंती ....

इस राग में गंधार कोमल ,मध्यम तीव्र तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं |आरोह में ऋषभ तथा धैवत वर्ज्य होने के कारण  इसकी जाती  औडव -सम्पूर्ण मानी जाती है |ऋषभ पर षडज का कण ,गंधार पर तीव्र मध्यम का स्पर्श (कण)से इस राग की रंजकता बढ़ती है |कभी कभी कोमल निषाद का अत्यल्प प्रयोग करने से राग वैचित्र्य उत्पन्न होता है |,साथ ही माधुर्य भी बढ़ता है |वादी पंचम तथा संवादी स्वर ऋषभ है |प्रयोग काल साँय चार बजे से रात्रि के प्रथम प्रहर तक है |यह राग मुलतानी के काफी निकट है |अतः कुछ गुणी जन इसे तोड़ी ठाट के अंतर्गत भी मानते हैं |इसका आरोह-अवरोह इस प्रकार है ....

आरोह-सा  ग    (तीव्र) प नी सां

अवरोह-सां नी ध प  (तीव्र)  रे सा












राग -जोग ......

यह काफी थाट का राग है |इसका प्रचार हाल ही में हुआ है |इसमें दोनों गांधार लगते हैं |निषाद कोमल है ,और ऋषभ और धैवत वर्जित है |अन्य स्वर शुद्ध हैं |इसकी जाति औडव है |इसके आरोह में शुद्ध गंधार तथा अवरोह में कोमल गांधार का प्रयोग किया जाता है |

आरोह-नि सा ग   म प  (सां)नि  सां
अवरोह--सां नि प म $$,ग$म प$$म प ग $$सा ।