सगीत और कविता एक ही नदी की दो धाराएँ हैं ...इनका स्रोत एक ही है किन्तु प्रवाह भिन्न हो जाते हैं ...इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने ये नया ब्लॉग शुरू किया है ताकि दोनों को अपना समय दे सकूं ...!!आशा है आपका सहयोग मिलेगा.......!!
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Tuesday, March 12, 2019
Tuesday, July 4, 2017
Friday, September 25, 2015
Friday, July 24, 2015
Friday, May 2, 2014
Thursday, January 2, 2014
राग देस ....!!
नींद जैसे कोसों ....मीलों ...दूर है ....!!..रात गहन अंधकार में डूब चुकी है ...... ....कोहरे से ढँकी ....!!नीरवता गहरा रही है ...!!किन्तु स्वर अपना कार्य नहीं भूलते .....ओस की तरह ...ओस के मोती धीरे धीरे जमते हुए फूलों पर ...शास्त्रीय संगीत में इतनी दिव्यता है स्वर अपना अस्तित्व कैसे भूल सकते हैं भला ...!!....राग देस तो है ही मध्य रात्रि का राग |किन्तु प्रकृति चंचल है ........कुछ छटपटाहट इस तरह है कि तरंगित होना है ....मन को अंधकार में डूबने नहीं देना है ...!!जाने कैसी ध्वनि है मन का सारा क्लेश हर ले रही है ......सूर्य के उज्ज्वल प्रकाश की राह जो तकनी है .....राग देस सुनते सुनते ही सुबह की आमद सी होती प्रतीत होती है ....
नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ ....राग देस सुनिए ...
इसे भी सुनिए दिव्य अनुभूति हो रही ....लगता है कृष्ण भगवान की बांसुरी सुन रहे हैं ....
ईश्वर की उपस्थिती इस तरह महसूस हो रही है ...
Saturday, December 14, 2013
राग हंसध्वनी मे एक भजन सुनिए ....
संगीत का कार्य मन के सोये भाव जगाना है |मन को सुकून देना आह्लाद देना है ...!!मन मे उठी सुख और दुख की अनुभूतियाँ जब गीत बनकर गूंजने लगती है तो उन्हीं को विभिन्न नामों से पुकार कर किसी राग का नाम दे दिया जाता है |
राग हंसध्वनी मे एक भजन सुनिए ।यह कर्नाटक पद्धति का राग है |इसका ठाट बिलावल है |गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है |
दिन विश्राम चाहता है .....और रात्रि अपनी शीतलता लिए .....धीरे धीरे उतर रही है ....
थका हारा प्राणी जब थोड़ी विश्रांति चाहता है ,जीवन की जद्दोजहद के लिए थोड़ी ऊर्जा चाहता है ...आइये सुनते हैं ये भजन .....एक एक स्वर सुकून देता हुआ सा ....दिव्य आनंद की पराकाष्ठा है यहाँ ....!!सुर और ताल का भेद अभेद है .....जाने कैसी स्वर लहरियाँ है ...जो सीधे हृदय तक पहुँचती हैं ......और देतीं हैं सिर्फ आनंद ....
Sunday, October 6, 2013
राग दरबारी कान्हड़ा ।
राग दरबारी कान्हड़ा ।
रात्रि के अंतिम प्रहर मे गाया बजाया जाता है ...!!
मंद्र सप्तक का ज्यादा प्रयोग होता है क्यूंकी रात का अंतिम प्रहर है !ऐसा प्रतीत होता है मानो अंधकार हार गया है लड़ते लड़ते .....स्वर क्षीण से ...अवरोह पर हैं .....और .............बस भोर होने को ही है ......प्रकृति भी धीर है ,गंभीर है ,चंचल नहीं है ......
पूरी राग सुनने के पश्चात भोर की सी अनुभूति होती है .....यही संगीत की ताकत है ....
कहते हैं तानसेन ने अकबर बादशाह को प्रसन्न करने के लिए ये राग गाया था !
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