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Friday, May 2, 2014

प्रहलाद सिंह तिपाण्या जी का गाया कबीर ...




...गुरु वंदना .........अत्यंत आह्लादकारी ....समय निकाल कर पूरा सुनिए .....







आभार .

Tuesday, April 2, 2013

भक्ति फाग ......

आज निज घाट बिच फाग मचैहों
ध्यान चरनन में लागैहों .....

इक सुर साधे तम्बूरा तन का ..
सांस के तार मिलैहों ...
मोद-मृदंग मंजीरा मनसा ...
तो विनय कि बीन बजैहों ..
भजन सतनाम को गईहों ...


ये भक्ति फाग ...
राग मिश्र काफी ......ताल दीपचंदी ....
अब सुनिए ......




Saturday, May 26, 2012

संगीत और आत्मा के सम्बन्ध .....!!

संगीत के विषय में बात  करते  करते  आज मैं आपको संगीत की  शास्त्रीय संगीत के अलावा भी ....अन्यविधाओं के बारे में बताना चाहती हूँ .....


 भावुकता से हीन कोई कैसा भी पषान  ह्रदय क्यों न हो ,किन्तु संगीत विमुख होने का दावा उसका भी नहीं माना जा सकता |कहावत है गाना और रोना सभी को  आता है|संगीत की भाषा मे जिन व्यक्तियों ने अपने विवेक ,अभ्यास और तपश्चर्य के बल से स्वर और ताल पर अपना अधिकार कर लिया है ,उनका विज्ञ समाज में आदर है,उन्हें बड़ा गवैया समझा जाता है |परंतु अधिकांश जन समूह ऐसा होता है ,जो इस ललित कला की साधना और तपस्या से सर्वथा वंचित रह जाता है |ऐसे लोग भले ही घरानेदार गायकी ना करें,किंतु इन लोगों के जीवन का सम्बंध भी संगीत से प्रचुर मात्रा मे होता है |गाँव मे गाये जानेवाले लोकगीतों के विभिन्न प्रकार ,कपड़े धोते समय धोबियों का गीत,भीमकाय पषाणों को ऊपर चढ़ाते समय  श्रमिकों का गाना ,खेतों मे पानी देते समय किसानों द्वारा गाये जाने वाले गीत,पनघट पर ग्रामीण युवतियों के गीत,पशु चराते समय ग्वालों का संगीत,इस कथन की पुष्टि  के लिये यथेष्ट प्रमाण हैं|इस प्रकार के गीत तो दैनिक चर्या मे गाये जाते हैं |किसी विशेष अवसर पर जैसे ....


*शिशु जमोत्सव पर गाये जाने वले सोहर ......
*विवाह उत्सव पर गाये जाने वाले बन्ना-बन्नी
*उलहना और छेड़खानी से भरे दादरे.....


घर-परिवार  का कोइ भी अवसर क्यों ना हो ,इन गीतों और नृत्य  के बिना परिपूर्ण होता ही नहीं  है ।


संगीत मे जादू जैसा असर है ,इस वाक्य को चाहे जिस व्यक्ति के सम्मुख कह दीजिये ,वह स्वीकृती -सूचक उत्तर ही देगा,नकारात्मक नहीं|यद्यपि उसने इस वाक्य को परीक्षा की कसौटी पर कभी नहीं कसा है,तब भी अनुभवहीन होने पर भी सभी इसे क्यों मानलेते  हैं यह एक विचारणीय प्रश्न है ।उसकी यह स्वीकृति
संगीत और आत्मा   के  सम्बन्ध की पुष्टि करती है ।आत्मा सत्य का स्वरुप है ।अतः वह सत्य की सत्ता को तुरंत  स्वीकार  कर लेता है । इसका एक  कारण  संगीत   की व्यापकता  का  रहस्य तथा संगीत के सम्बन्ध में  कुछ सुनी हुई  बातों  का अनुभव भी हो सकता है ।
पावस की लाजवंती संध्याओं को श्वेत-श्याम  मेघ मालाओं से प्रस्फुटित  नन्हीं-नन्हीं बूँदों  का रिमझिम -रिमझिम  राग  सुनते ही कोयल कूक उठाती है ....पपीहे गा उठाते हैं ....मोर नाचने लगते हैं ....मन-मंजीरे  बोल  उ ठते हैं .....।लहलहाते हरे-भरे खेतों को देखकर  कृषक   आ नंद विभोर हो जाता है और अनायास ही अलाप उठता है किसी  परिचित मल्हार के बोल ।यही  वो समय होता है जबकि प्रकृति के कण -कण  में  संगीत की सजीवता भासमान  होती है ।इन  चेतनामय  घड़ियों में  प्रत्येक  जीवधारी पर  संगीत की मादकता का  व्यापक   प्रभाव  पड़ता  है ।


जीवन-पथ  के किसी भी मोड़ पर  रुक कर देख  लीजिये  ,वहीँ आपको  अलग-अलग  विधाओं में  संगीत   मिलेगा ....!!दुःख से सुख से ,रुदन से हास से ,योगसे  वियोग से   ,मृत्यु से  जीवन से  ,जीवन की प्रत्येक  अ वस्था में सगीत  की   कड़ी  ........जुड़ी ही रहती है ......!!!!!


आपके लिए आज  एक  विशेष  अनुभूती लिए हुए सुश्री नगीन तनवीर का गाया ये लोकगीत ......... ज़रूर सुनिए ......