सगीत और कविता एक ही नदी की दो धाराएँ हैं ...इनका स्रोत एक ही है किन्तु प्रवाह भिन्न हो जाते हैं ...इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने ये नया ब्लॉग शुरू किया है ताकि दोनों को अपना समय दे सकूं ...!!आशा है आपका सहयोग मिलेगा.......!!
नमस्कार आपका स्वागत है

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Sunday, May 24, 2015
Tuesday, January 29, 2013
स्वर सत्य से साक्षात्कार ....(राग मारवा )
तेज दुपहरी बीत चुकी ...
गहराती स्वनिल नीली सी साँझ ...
समर्पित ही रही मैं ..कर्तव्य की डोर से बंधी .....हर स्वर पर स्थिर ....
अनुनादित अविचलित ..अकंपित ...हे जीवन .....तुम्हारे द्वार ...
सांध्य दीपक जल रहा .. ...
है यह साँझ की बेला .....
तानपुरे की नाद गुंजित हृदय में...
संधिप्रकाश राग मारवा है छेड़ा ...
उदीप्त दृग ....अन्तःकरण तृषा शेष...
एक स्वर लहरी मेरी ..किन्तु फिर भी अशेष ......
आज .....क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??
मेरे जीवन की पूंजी ...
मेरी आत्मा की प्रतिमा ...
एक अंजुरी जल की मेरी ....
मेरे स्वरों में ...मेरी आराधन का प्रमाण ...
फिर भी ....आज क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??
तब ...
मेरे हृदय से रिस रहे ...
ढेरों भावों में से ...
अथाह पीड़ा कहती .....
स्वाति सी ....
आँसू की बस एक बूंद मेरी .......
बन जाती है ....
मेरे ह्रदय स्त्रोत से फूटी हुई ..
हर कविता मेरी ....!!
किन्तु आज ...नहीं लगता ...नहीं लगता है स्वर ......!!
स्वर की रचना कैसे रचूँ .....??
स्वर से वियोग ....कैसे सहूँ ....???
हे जीवन ...
नतमस्तक हूँ ...
आज भी तुम्हारे द्वार ....
बस कह दो एक बार ...
अपने छल को भूल ..........
क्या कर पाओगे मुझसे साक्षात्कार ....?
खुले हैं मेरे उर द्वार ...
भेज दो वो स्वर मुझ तक निर्विकार .....
जहां मैं अभी भी खड़ी हूँ ....
प्रातः से साँझ तक ....
कर्तव्य की डोर से बंधी ...
हर स्वर पर स्थिर ...
अनुनादित ...अविचलित ...अकंपित ...
अपने ही द्वार .....
करने उस स्वर सत्य से साक्षात्कार .....
********************************************************************
गाना गाना और शास्त्रीय संगीत गाना दो अलग अलग बातें हैं ....!!शास्त्रीय संगीत को करत की विद्या कहा जाता है |सुर साधना पड़ता है तभी आप उसे ग्रहण कर सकते हैं |साल दर साल सुर साधते जाइए तब कहीं जाकर सरस्वती कंठ में विराजमान होतीं हैं ...!!राग को सही प्रकार गाने की चाह ही प्रत्येक विद्यार्थी को लगन और मेहनत से जोड़े रखती है |
अब ये वीडियो ज़रूर देखें .......तभी आप कविता में छुपी हुई वेदना समझ पाएंगे .....
Friday, January 25, 2013
राग मधुवंती तथा जोग का परिचय ।
राग मधुवंती ....
इस राग में गंधार कोमल ,मध्यम तीव्र तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं |आरोह में ऋषभ तथा धैवत वर्ज्य होने के कारण इसकी जाती औडव -सम्पूर्ण मानी जाती है |ऋषभ पर षडज का कण ,गंधार पर तीव्र मध्यम का स्पर्श (कण)से इस राग की रंजकता बढ़ती है |कभी कभी कोमल निषाद का अत्यल्प प्रयोग करने से राग वैचित्र्य उत्पन्न होता है |,साथ ही माधुर्य भी बढ़ता है |वादी पंचम तथा संवादी स्वर ऋषभ है |प्रयोग काल साँय चार बजे से रात्रि के प्रथम प्रहर तक है |यह राग मुलतानी के काफी निकट है |अतः कुछ गुणी जन इसे तोड़ी ठाट के अंतर्गत भी मानते हैं |इसका आरोह-अवरोह इस प्रकार है ....
आरोह-सा ग म (तीव्र) प नी सां
अवरोह-सां नी ध प म(तीव्र) ग रे सा
राग -जोग ......
यह काफी थाट का राग है |इसका प्रचार हाल ही में हुआ है |इसमें दोनों गांधार लगते हैं |निषाद कोमल है ,और ऋषभ और धैवत वर्जित है |अन्य स्वर शुद्ध हैं |इसकी जाति औडव है |इसके आरोह में शुद्ध गंधार तथा अवरोह में कोमल गांधार का प्रयोग किया जाता है |
आरोह-नि सा ग म प (सां)नि सां
अवरोह--सां नि प म $$,ग$म प ग $$म प ग $$सा ।
Saturday, May 26, 2012
संगीत और आत्मा के सम्बन्ध .....!!
संगीत के विषय में बात करते करते आज मैं आपको संगीत की शास्त्रीय संगीत के अलावा भी ....अन्यविधाओं के बारे में बताना चाहती हूँ .....
भावुकता से हीन कोई कैसा भी पषान ह्रदय क्यों न हो ,किन्तु संगीत विमुख होने का दावा उसका भी नहीं माना जा सकता |कहावत है गाना और रोना सभी को आता है|संगीत की भाषा मे जिन व्यक्तियों ने अपने विवेक ,अभ्यास और तपश्चर्य के बल से स्वर और ताल पर अपना अधिकार कर लिया है ,उनका विज्ञ समाज में आदर है,उन्हें बड़ा गवैया समझा जाता है |परंतु अधिकांश जन समूह ऐसा होता है ,जो इस ललित कला की साधना और तपस्या से सर्वथा वंचित रह जाता है |ऐसे लोग भले ही घरानेदार गायकी ना करें,किंतु इन लोगों के जीवन का सम्बंध भी संगीत से प्रचुर मात्रा मे होता है |गाँव मे गाये जानेवाले लोकगीतों के विभिन्न प्रकार ,कपड़े धोते समय धोबियों का गीत,भीमकाय पषाणों को ऊपर चढ़ाते समय श्रमिकों का गाना ,खेतों मे पानी देते समय किसानों द्वारा गाये जाने वाले गीत,पनघट पर ग्रामीण युवतियों के गीत,पशु चराते समय ग्वालों का संगीत,इस कथन की पुष्टि के लिये यथेष्ट प्रमाण हैं|इस प्रकार के गीत तो दैनिक चर्या मे गाये जाते हैं |किसी विशेष अवसर पर जैसे ....
*शिशु जमोत्सव पर गाये जाने वले सोहर ......
*विवाह उत्सव पर गाये जाने वाले बन्ना-बन्नी
*उलहना और छेड़खानी से भरे दादरे.....
आपके लिए आज एक विशेष अनुभूती लिए हुए सुश्री नगीन तनवीर का गाया ये लोकगीत ......... ज़रूर सुनिए ......
भावुकता से हीन कोई कैसा भी पषान ह्रदय क्यों न हो ,किन्तु संगीत विमुख होने का दावा उसका भी नहीं माना जा सकता |कहावत है गाना और रोना सभी को आता है|संगीत की भाषा मे जिन व्यक्तियों ने अपने विवेक ,अभ्यास और तपश्चर्य के बल से स्वर और ताल पर अपना अधिकार कर लिया है ,उनका विज्ञ समाज में आदर है,उन्हें बड़ा गवैया समझा जाता है |परंतु अधिकांश जन समूह ऐसा होता है ,जो इस ललित कला की साधना और तपस्या से सर्वथा वंचित रह जाता है |ऐसे लोग भले ही घरानेदार गायकी ना करें,किंतु इन लोगों के जीवन का सम्बंध भी संगीत से प्रचुर मात्रा मे होता है |गाँव मे गाये जानेवाले लोकगीतों के विभिन्न प्रकार ,कपड़े धोते समय धोबियों का गीत,भीमकाय पषाणों को ऊपर चढ़ाते समय श्रमिकों का गाना ,खेतों मे पानी देते समय किसानों द्वारा गाये जाने वाले गीत,पनघट पर ग्रामीण युवतियों के गीत,पशु चराते समय ग्वालों का संगीत,इस कथन की पुष्टि के लिये यथेष्ट प्रमाण हैं|इस प्रकार के गीत तो दैनिक चर्या मे गाये जाते हैं |किसी विशेष अवसर पर जैसे ....
*शिशु जमोत्सव पर गाये जाने वले सोहर ......
*विवाह उत्सव पर गाये जाने वाले बन्ना-बन्नी
*उलहना और छेड़खानी से भरे दादरे.....
घर-परिवार का कोइ भी अवसर क्यों ना हो ,इन गीतों और नृत्य के बिना परिपूर्ण होता ही नहीं है ।
संगीत मे जादू जैसा असर है ,इस वाक्य को चाहे जिस व्यक्ति के सम्मुख कह दीजिये ,वह स्वीकृती -सूचक उत्तर ही देगा,नकारात्मक नहीं|यद्यपि उसने इस वाक्य को परीक्षा की कसौटी पर कभी नहीं कसा है,तब भी अनुभवहीन होने पर भी सभी इसे क्यों मानलेते हैं यह एक विचारणीय प्रश्न है ।उसकी यह स्वीकृति
संगीत और आत्मा के सम्बन्ध की पुष्टि करती है ।आत्मा सत्य का स्वरुप है ।अतः वह सत्य की सत्ता को तुरंत स्वीकार कर लेता है । इसका एक कारण संगीत की व्यापकता का रहस्य तथा संगीत के सम्बन्ध में कुछ सुनी हुई बातों का अनुभव भी हो सकता है ।
पावस की लाजवंती संध्याओं को श्वेत-श्याम मेघ मालाओं से प्रस्फुटित नन्हीं-नन्हीं बूँदों का रिमझिम -रिमझिम राग सुनते ही कोयल कूक उठाती है ....पपीहे गा उठाते हैं ....मोर नाचने लगते हैं ....मन-मंजीरे बोल उ ठते हैं .....।लहलहाते हरे-भरे खेतों को देखकर कृषक आ नंद विभोर हो जाता है और अनायास ही अलाप उठता है किसी परिचित मल्हार के बोल ।यही वो समय होता है जबकि प्रकृति के कण -कण में संगीत की सजीवता भासमान होती है ।इन चेतनामय घड़ियों में प्रत्येक जीवधारी पर संगीत की मादकता का व्यापक प्रभाव पड़ता है ।
जीवन-पथ के किसी भी मोड़ पर रुक कर देख लीजिये ,वहीँ आपको अलग-अलग विधाओं में संगीत मिलेगा ....!!दुःख से सुख से ,रुदन से हास से ,योगसे वियोग से ,मृत्यु से जीवन से ,जीवन की प्रत्येक अ वस्था में सगीत की कड़ी ........जुड़ी ही रहती है ......!!!!!
पावस की लाजवंती संध्याओं को श्वेत-श्याम मेघ मालाओं से प्रस्फुटित नन्हीं-नन्हीं बूँदों का रिमझिम -रिमझिम राग सुनते ही कोयल कूक उठाती है ....पपीहे गा उठाते हैं ....मोर नाचने लगते हैं ....मन-मंजीरे बोल उ ठते हैं .....।लहलहाते हरे-भरे खेतों को देखकर कृषक आ नंद विभोर हो जाता है और अनायास ही अलाप उठता है किसी परिचित मल्हार के बोल ।यही वो समय होता है जबकि प्रकृति के कण -कण में संगीत की सजीवता भासमान होती है ।इन चेतनामय घड़ियों में प्रत्येक जीवधारी पर संगीत की मादकता का व्यापक प्रभाव पड़ता है ।
जीवन-पथ के किसी भी मोड़ पर रुक कर देख लीजिये ,वहीँ आपको अलग-अलग विधाओं में संगीत मिलेगा ....!!दुःख से सुख से ,रुदन से हास से ,योगसे वियोग से ,मृत्यु से जीवन से ,जीवन की प्रत्येक अ वस्था में सगीत की कड़ी ........जुड़ी ही रहती है ......!!!!!
आपके लिए आज एक विशेष अनुभूती लिए हुए सुश्री नगीन तनवीर का गाया ये लोकगीत ......... ज़रूर सुनिए ......
Sunday, May 6, 2012
संगीत की शक्ति .....(१)
ज्ञान विज्ञानं से परिपूर्ण मानव जगत में नित नए प्रयोग हो रहे हैं |जब ये प्रयोग जीवन के विभिन्न अंग बन जाते हैं ,तब मानव फिर अभिनव अनुसन्धान में प्रवृत्त हो जाता है |यद्यपि संगीत स्वयं एक विज्ञानं है ,किन्तु अभी इसकी सिद्धी के लिए वर्षों की तपस्या अपेक्षित है |इधर कुछ समय से वैज्ञानिकों का ध्यान संगीत की ओर गया है ,किन्तु संगीत के क्रियात्मक ज्ञान के आभाव के कारण हर वैज्ञानिक इस ओर ध्यान नहीं दे सकता
संसार परमाणु की सत्ता स्वीकार कर चुका है और नाद के गुण से भी वो परिचित है |किन्तु नाद कि विलक्षण शक्ति अभी अप्रकट है |जिस दिन वो प्रकट हो जायेगी ,संसार एकमत से संगीत को सर्वोपरि विज्ञानं स्वीकार कर लेगा |अणु और परमाणु का अस्तित्व उसके समक्ष नगण्य हो जायेगा |प्राचीन काल में ध्वनि के भौतिक प्रभाव पर जो प्रयोग किये गए थे ,वे आज केवल किंवदंती के रूप में अवशिष्ट हैं |किन्तु जो भी उन किंवदंतियों सुनता है ,वह भविष्य में उनकी सफलता के लिए आज के वैज्ञानिक उत्कर्ष को देख कर आस्थावान हो जाता है |हमारे प्राचीन आचार्य और महर्षियों ने हाइड्रोजन बम निश्चय ही नहीं बनाये थे ,किन्तु ध्वनि विज्ञानं पर उन्होंने जो विचार व्यक्त किये थे,वे आज भी कसौटी पर खरे उतरते हैं |नाद की शक्ति पर विवेचन करने वाले अनेक ग्रन्थ आज लुप्त हैं |
क्रमशः .........
संसार परमाणु की सत्ता स्वीकार कर चुका है और नाद के गुण से भी वो परिचित है |किन्तु नाद कि विलक्षण शक्ति अभी अप्रकट है |जिस दिन वो प्रकट हो जायेगी ,संसार एकमत से संगीत को सर्वोपरि विज्ञानं स्वीकार कर लेगा |अणु और परमाणु का अस्तित्व उसके समक्ष नगण्य हो जायेगा |प्राचीन काल में ध्वनि के भौतिक प्रभाव पर जो प्रयोग किये गए थे ,वे आज केवल किंवदंती के रूप में अवशिष्ट हैं |किन्तु जो भी उन किंवदंतियों सुनता है ,वह भविष्य में उनकी सफलता के लिए आज के वैज्ञानिक उत्कर्ष को देख कर आस्थावान हो जाता है |हमारे प्राचीन आचार्य और महर्षियों ने हाइड्रोजन बम निश्चय ही नहीं बनाये थे ,किन्तु ध्वनि विज्ञानं पर उन्होंने जो विचार व्यक्त किये थे,वे आज भी कसौटी पर खरे उतरते हैं |नाद की शक्ति पर विवेचन करने वाले अनेक ग्रन्थ आज लुप्त हैं |
विज्ञानं द्वारा ये सिद्ध हो गया है कि द्रव्य (मैटर )और शक्ति (एनर्जी ),ये दोनों एक ही वस्तु हैं |मैटर को एनर्जी और एनर्जी को मैटर में परिवर्तित किया जा सकता है ,अर्थात परम तत्व एक ही है |अतः शब्द का प्रभाव बड़ा विलक्षण है |जिस प्रकार मिटटी का गुण 'गंध ' और अग्नि का गुण 'उष्णता ' है ,उसी प्रकार आकाश का गुण 'शब्द 'है |वह सदा आकाश में विद्यमान रहता है ।इस सत्य को जान लेने पर कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि वे शीघ्र ही किसी उपकरण की सहायता से तानसेन का गायन और भगवन श्री कृष्ण के मुख से कही गई गीता को आकाश से ग्रहण कर उन्हीं की आवाज़ में सुनवा सकेंगे ।
क्रमशः .........
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