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Tuesday, January 29, 2013

स्वर सत्य से साक्षात्कार ....(राग मारवा )









तेज दुपहरी बीत चुकी ...
गहराती  स्वनिल  नीली सी साँझ ...
समर्पित ही रही मैं ..कर्तव्य की डोर से बंधी .....हर स्वर पर स्थिर  ....
अनुनादित अविचलित ..अकंपित  ...हे जीवन  .....तुम्हारे द्वार ...


सांध्य  दीपक जल रहा .. ...
है यह साँझ की बेला .....
तानपुरे की नाद गुंजित हृदय में...

संधिप्रकाश राग मारवा  है छेड़ा  ...
उदीप्त दृग ....अन्तःकरण तृषा शेष...
एक स्वर लहरी मेरी ..किन्तु फिर भी अशेष ......
आज .....क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??

मेरा  समर्पण है .....
मेरे जीवन की पूंजी ...
मेरी  आत्मा की प्रतिमा ...
एक अंजुरी जल की मेरी ....
मेरे स्वरों में ...मेरी आराधन  का प्रमाण ...
फिर भी ....आज क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??

तब ...
मेरे हृदय से रिस रहे  ...
ढेरों भावों में  से ...
अथाह पीड़ा कहती .....
स्वाति  सी ....
आँसू की बस एक बूंद मेरी .......
बन जाती है ....
मेरे ह्रदय स्त्रोत से फूटी हुई ..
हर कविता  मेरी ....!!
किन्तु आज ...नहीं लगता ...नहीं लगता है स्वर ......!!


स्वर की रचना कैसे रचूँ .....??
स्वर से वियोग ....कैसे सहूँ ....???
हे जीवन ...

नतमस्तक हूँ ...
आज भी तुम्हारे द्वार ....
बस कह दो एक बार ...
अपने छल को भूल ..........
क्या कर पाओगे मुझसे  साक्षात्कार ....?

खुले हैं मेरे उर द्वार ...
भेज दो वो स्वर मुझ तक निर्विकार .....
जहां मैं अभी भी खड़ी हूँ ....
प्रातः से साँझ तक ....
कर्तव्य की डोर से बंधी ...
हर स्वर पर स्थिर ...
अनुनादित ...अविचलित ...अकंपित ...
अपने ही द्वार .....
करने उस स्वर सत्य से साक्षात्कार .....

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गाना गाना और शास्त्रीय संगीत गाना दो अलग अलग बातें हैं ....!!शास्त्रीय संगीत को करत की विद्या कहा जाता है |सुर साधना पड़ता है तभी आप उसे ग्रहण कर सकते हैं |साल दर साल सुर साधते जाइए तब कहीं जाकर सरस्वती कंठ में विराजमान होतीं हैं ...!!राग को सही प्रकार गाने की चाह ही प्रत्येक विद्यार्थी को लगन और मेहनत से जोड़े रखती है |

अब ये वीडियो ज़रूर देखें .......तभी आप कविता में छुपी हुई वेदना समझ पाएंगे .....








Friday, January 25, 2013

राग मधुवंती तथा जोग का परिचय ।


राग मधुवंती ....

इस राग में गंधार कोमल ,मध्यम तीव्र तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं |आरोह में ऋषभ तथा धैवत वर्ज्य होने के कारण  इसकी जाती  औडव -सम्पूर्ण मानी जाती है |ऋषभ पर षडज का कण ,गंधार पर तीव्र मध्यम का स्पर्श (कण)से इस राग की रंजकता बढ़ती है |कभी कभी कोमल निषाद का अत्यल्प प्रयोग करने से राग वैचित्र्य उत्पन्न होता है |,साथ ही माधुर्य भी बढ़ता है |वादी पंचम तथा संवादी स्वर ऋषभ है |प्रयोग काल साँय चार बजे से रात्रि के प्रथम प्रहर तक है |यह राग मुलतानी के काफी निकट है |अतः कुछ गुणी जन इसे तोड़ी ठाट के अंतर्गत भी मानते हैं |इसका आरोह-अवरोह इस प्रकार है ....

आरोह-सा  ग    (तीव्र) प नी सां

अवरोह-सां नी ध प  (तीव्र)  रे सा












राग -जोग ......

यह काफी थाट का राग है |इसका प्रचार हाल ही में हुआ है |इसमें दोनों गांधार लगते हैं |निषाद कोमल है ,और ऋषभ और धैवत वर्जित है |अन्य स्वर शुद्ध हैं |इसकी जाति औडव है |इसके आरोह में शुद्ध गंधार तथा अवरोह में कोमल गांधार का प्रयोग किया जाता है |

आरोह-नि सा ग   म प  (सां)नि  सां
अवरोह--सां नि प म $$,ग$म प$$म प ग $$सा ।