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Saturday, September 29, 2012

सप्रेम हरि स्मरण .....!!!!





शरीर से भगवान का भजन और भगवतस्वरूप जगत के प्राणियों की सेवा बने ,तभी शरीर की सार्थकता है ,नहीं तो शरीर नरकतुल्य है अर्थात ऐसा जीना कोई सार्थक जीना नहीं है ...!!


श्री शंकरचार्य जी ने कहा है ''को वास्ति  घोरो नरकः स्वदेहः ।"

और तुलसीदास जी कहते हैं ..

."ते नर नरक रूप जीवत जग भव-भंजन -पद -बिमुख अभागी ।"

भजन और सेवा भाव तब तक जीवित रहे हमारे अन्दर जब तक किसी भीषण रोग से आक्रान्त हो हम शैया ही न पकड़ ले ...!!रात दिन सिर्फ शरीर को धोने पोछने और सजाने में ही लगे रहना ....आत्मा का चिंतन नहीं करना ....ज़रा भी बुद्धिमानी नहीं है ...!!
किसी भी प्रकार की कला साधना आत्मा की यात्रा है .....!
आत्मा की यात्रा है जो प्रभु तक पहुंचेगी ही ...!!मनुष्य की योनि  मिली तो है ....किन्तु जन्म-मृत्यु और जरा व्याधि से ग्रस्त इस देह का कोई भरोसा नहीं ...,कब नष्ट हो जाय ....!!!जो समय हाथ आया है उसका सदुपयोग  करना हमारे ही हाथ में है ...!!

खेद की बात है ...मनुष्य शरीर की सेवा में ,इसके लिए भोगों को जुटाने में ही दिन-रात व्यस्त रहता है ........!!अप्राकृत भगवदीय  प्रेमरस के तो समीप भी वह नहीं जाना चाहता ...!!जिसके ध्यान मात्र से प्राणों मे अमृत का झरना फूट निकलता है ,उस भगवान से सदा दूर रहना चाहता है...!!श्रीमद्भागवत में कहा -वह हृदय पत्थर के तुल्य है ,जो भगवान के नाम -गुण-कीर्तन को सुनकर  गद्गद् नहीं होता ,जिसके शरीर मे रोमांच नहीं होता और आँखों मे आनंद के आँसू नहीं उमड़ आते |

''हिय फाटहु फूटहु नयन जरौ सो तन केही काम |
द्रवइ स्त्रवई पुलकई नहीं तुलसी सुमिरत राम || "

जब प्रभु कृपा सुन कर ...भजन सुन कर ही इतना आनंद है ...तो गाने वाले की हृदय की बात सोचिए ....प्रभु की उपस्थिति  सदैव बनी ही रहती है ...!!
श्रीचरणों मे नत मस्तक ही रहता है मन |अपने सुरों के ....अपने ईश्वर के पीछे ही भागता रहता है और इस तरह आत्मसात करता है स्वरों को अपनी आत्मा में ...निरंतर प्रभु की ओर अग्रसर होता हुआ ॥...हर क्षण प्रभु से दूरी घटती हुई ....!!

लता जी सुरों की देवी ही हैं ....
स्वरों से इतना प्रेम ....आज के युग में साक्षात मीरा बाई स्वरूप ही .....!!

बहुत ढूँढकर आपके लिए ये भजन लाई हूँ .....स्वर और ईश्वर का क्या रिश्ता है ...ये भजन सुन कर आप समझ पाएंगे ....



हरि हरि हरि हरि सुमिरन 
हरि हरि हरि हरि सुमिरन करो हरि चरणारविन्द उर धरो .. 
हरि की कथा होये जब जहाँ गंगा हू चलि आवे तहां .. 
यमुना सिंधु सरस्वती आवे गोदावरी विलम्ब न लावे .. 
सर्व तीर्थ को वासा तहाँ सूर हरि कथा होवे जहां .. 

अपनी धरोहर ...
संगीत से ...शास्त्रीय संगीत से जुड़े रहें ...
बहुत आभार .....

Monday, September 24, 2012

आज श्याम मोह लीनो बाँसुरी बजाये के ...!!


आज श्याम मोह लीनो बाँसुरी बजाये के ...!!
मुझे तो स्पष्ट सुनाई दे रही है कानो में बाँसुरी की वो आवाज़ जैसे दे रही हो संदेसा हरि  की उपस्थिति का ...


आज यह पोस्ट लिखते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है ,इसी महीने मेरे इस अतिप्रिय ब्लॉग को एक वर्ष हो गया ।

जहाँ तक हो सका है शास्त्रीय संगीत के प्रति आप लोगों में रूचि जगाने का प्रयत्न किया है ।इस विधा को सीखने के लिए अत्यंत धैर्य ,लगन और समय की आवश्यकता  होती है ।सुर साधना एक आराधना ही है ।क्योंकि सुर शरीर के नहीं ...आत्मा के साथी होते हैं ...!!और उन्हीं की आराधना में मन ऐसा लिप्त होता है  कि फिर  छोटी से छोटी उपलब्द्धि  भी साधक को  किसी बड़े पुरस्कार से कम नहीं लगती ।ईश्वर का प्रसाद ही लगती है ।सालों तक रियाज़ करे तब कहीं कुछ गुण  गाने लायक बनता है एक साधक ।जब सुर ,मन का मीत बन ,समझ में आने लगते हैं ,साथ साथ चलते हैं ...मन की प्रसन्नता अवर्णनीय हो जाती है ।उन्हीं सुरों से किसी भी कारण  जब दूर होता है मन ...एक वेदना से घिर जाता है ...!!यही एक साधक की जीवन यात्रा है ...!!

   संगीत की यात्रा बहुत कठिन है ...क्योंकि अपनी साधना से ,इस राह से ..हटने पर साधक अभिशप्त हो कुछ भी हासिल नहीं कर सकता ..!!सुर साधते हुए समस्त दुनिया भूल कर ही सुर लगाना पड़ता है ।
   "जग त्यक्त कर ही तुममे अनुरक्त हुई ...!!"  इसीलिए इसे ध्यान का एक रूप माना जाता है ।

माँ को श्रद्धांजलि देते हुए इस ब्लॉग पर लिखना प्रारंभ किया था ।आज अत्यंत हर्ष है कि उन्हीं के आशीर्वाद से ही ये संगीत यात्रा चलती रही है ...!!आप सभी गुणीजनों का आशीर्वाद  एवं स्नेह भी मिलता रहा है ...!!किसी भी संगीत साधक की ये ख़्वाहिश   होती है कि उसके सुर श्रोता के ह्रदय तक पहुंचें .....और उन सुरों पर जब श्रोताओं की प्रशंसा मिलती है ...तो हाथ जोड़ नमन ही करता है एक साधक ...!!मैं भी ह्रदय से आभार प्रकट करती हूँ सुधि पाठकों का ...श्रोताओं का ...!!आपको समय समय पर शास्त्र के विषय में जानकारी दी और अपने गाये हुए कुछ गीत और भजन भी सुनाये ...!!
श्याम भजन मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्द्धि है ...वो भजन जिसे मैंने लिखा .....धुन बनाई .. और स्वयं ही गाया भी ..!!आभारी हूँ आप सभी की पुनश्च आप सभी ने बहुत मन से उसे सराहा भी ...!!

भरसक प्रयत्न रहता है कि शास्त्रीय संगीत को,भारतीय संगीत को ... वो मान वो मर्यादा मिलती रहे जिसका वो हक़दार  है ।इस प्रकार अपनी संस्कृति की थोड़ी भी रक्षा कर सकूं तो ईश्वर के प्रति अपना आभार मानूँगी ...!!अपना जीवन सफल समझूँगी  ।


आइये अब संजीव अभ्यंकर जी से आरत  ह्रदय से उनका गाया  एक खूबसूरत मीरा भजन सुनिए ....और आँख मूँद कर खो जाइए उस दुनियां में जिसे शास्त्रीय संगीत कहते हैं ....!!दावे से कहती हूँ ....प्रभु दर्शन हो  ही जायेंगे .......!!



कोई कहियो  रे  प्रभु  अवन  की , अवन  की  मन -भवन  की  |
आप  न  आवे  लिख  नहीं  भेजे , बाण   पड़ी  ललचावन  की  |
ये  दो  नैन  कह्यो  नहीं  माने , नदिया  बहे  जैसे सावन  की  |
कहा  करू , कछु  नहीं  बस  मेरो , पाख  नहीं उड़ जावन   की
मीरा  कहे  प्रभु  कब रे  मिलोगे , चेरी  भाई  हु  तेरे  दावन   की  |









आगे भी इसी तरह अपना स्नेह एवं आशीर्वाद बनाये रहिएगा ...!!और इस ब्लॉग को अपना अमूल्य  समय देते रहिएगा .........!!
बहुत आभार ....!!