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Wednesday, October 1, 2014

संगीत का आह्लाद और ईश्वर की उपस्थिती ......!!




राग भैरवी में अत्यंत मधुर प्रस्तुति से ईश्वर नमन !!संगीत की साधना की पराकाष्ठा .....भक्ति और शक्ति से ओतप्रोत ....





ज़रूर सुनें
आभार .

Friday, April 25, 2014

संतूर पर राग अहिरभैरव ....!!

क्षमा कीजिएगा बहुत समय बाद पोस्ट डाल  रही हूँ !

राग अहिरभैरव पर बहुत सुंदर कोम्पोज़ीशन सुनिए ,और साथ ही पंडित शिवकुमार शर्मा जी व संतूर के विषय मे कुछ जानकारी भी ....








आभार.

Tuesday, August 6, 2013

मेरा पीर घर आया .....राग मियां मल्हार .....!!!!











बरसते हुए पानी में पीड़ा क्यों झरने लगती है ......


ठंडी पावन पवन आर्द्रता से भरी ..एक अजीब सी टीस लिए हुए  जब बहती है ....छू जाती है हृदय को .......तब नैनो से दो बूंद आँसू ज़रूर टपकते हैं और उस समय कहना बहुत मुश्किल है ....मन क्या कह रहा है ये समझना भी बहुत मुश्किल है ....
मनन  चिंतन से बस ईश्वर के पास होने की अनुभूति होती है .....

ये तड़प कैसी है .....
आह्लाद है या विरह .....
...राग मल्हार पर एक खूबसूरत प्रस्तुति




Tuesday, July 23, 2013

कैसी बाज रही कान्हा की बांसुरिया .......!!!

बरखा की बुंदियां बरस रही हैं ......
ठंडी पावन बह रही है ....
पत्ते मानो करतल ध्वनि से इस मौसम का स्वागत कर रहे हैं .......
धरा मे कुछ नवीनता का संचार हो रहा है ..........
पाखी हैं कि भीग भीग कर कलाबाज़ियाँ कर रहे हैं ....
इन्हीं पाखियों के साथ मेरा मन उड़ा जा रहा है ....
 अनंत  उड़ान है ये ....
वर्षा में भीगती हुई ......
न जाने कहाँ जा रही हूँ मैं ......
कोई दैविक शक्ति निरंतर अपनी ओर खींच रही है ....
बेबस खींची चली जा रही हूँ मैं ....
अचरज है .....कानो में सुनाई दे रहा है .....कुछ सुकून भरा संगीत ....
जैसे कान्हा बासुरी बाजा रहे हैं ......

क्या आप भी सुन पा रहे हैं ....या मेरा ही भ्रम है .....????????



Friday, July 19, 2013

आज रात चाँद को पुकारती रही................

आज रात चाँद को पुकारती रही
व्योम मंच पर न किन्तु चाँद आ सका
बादलों की ओट में कहीं रहा छिपा
दामिनी प्रकाश पुंज वारती रही ....
आज रात चाँद  को पुकारती रही ...

देखती रही खड़ी नयन पसार कर ...
है वियोग ही मिला सदैव  प्यार कर ...
तारकों से आरती उतरती रही ...

आज रात चाँद को पुकारती रही ...

हो गई उदास और रात रो पड़ी....
वारने लगी अमोल अश्रु की लड़ी ...
दूर से खड़ी उषा निहारती रही ...
आज रात चाँद को पुकारती रही ....

*****************************************************

शोभा श्रीवास्तव का लिखा ये गीत .....
अब सुनिए मेरी आवाज़  में.......
कृपया ईयर फोन से  सुने अन्यथा आवाज़ बिखरती है ....

Saturday, July 6, 2013

वर्षा ऋतु-राग मियां मल्हार ....(.1.)....!!!


इस वर्षा ऋतु मे आपको राग मल्हार के बारे मे विस्तृत जानकारी दूँगी और इसी राग की अनेक बन्दिशें सुनवाऊंगी |
आप जानते ही होंगे राग मिया मल्हार वर्षा ऋतु का राग है |वर्षा ऋतु मे आप इसे किसी भी समय गा -बजा सकते हैं |

नदी हूँ मैं....
गिरती है ये बरसात
कुछ इस क़दर मुझ पर ...
भीगती  हूँ भरी बरसात रो भी लेती  हूँ ...

O 


मिल जाता है इसी बरखा में
मेरे आंसुओं का खारा  पानी .........
और इस तरह ...
पहुँच ही जाती है मेरी सदा  समुंदर तक ......


संवेग ,संवेदन और सिद्धान्त का ज्ञान रखने वाला कलाकार सदैव सफल रहता है ,क्योंकि उसका संगीत श्रोता को तन्मय करने की क्षमता रखता है |

राग मियां मल्हार मेँ स्वरों का प्रयोग इस प्रकार है ...........कि सुन कर ही बारिश का सा एहसास होता है ......मन भीग जाता है ....!!
म ...रे ...प $$$$$$  ग    $$$$$$$  म रे सा ....!!

नि$$$  ध  नी सा .....!!

इस प्रकार स्वरों  का प्रयोग किया जाता है ....!!






बंदिश सुनिए और बरखा का आनंद लीजिये ....

आभार .....

Friday, June 21, 2013

संगीत शास्त्र एवं गायन की जुगालबंदी है .....!!



भारतीय संगीत तो हमारी धरोहर है ही ,लेकिन एक संगीतकार की धरोहर है संगीत शास्त्र ,स्वर विज्ञानं,और संगीत प्रदर्शन |इन सबका महत्व जाने बिना संगीत के क्षेत्र में उन्नति करना कठिन है |इनमें से किसी एक का आभाव होने पर संगीत जीवन में एक अधूरापन बना रहता है जो हर संगीतकार को जीवन पर्यंत कचोटता रहता है ,भले ही वह किसी भी ऊंचाई पर क्यों न पहुच जाए |वस्तुतः यही टीस  ....यही प्यास हर संगीतकार को संगीत से जोड़े रखती है |हर संगीतकार अपना संगीत स्वयं अच्छे से पहचानता है |अपनी खामियां भी स्वयं जानता है |उन्हीं पर बार बार रियाज़ करते हुए स्वयं समझ आने लगता है कि हमारा संगीत अब उन्नति कर रहा है |यही एक छोटी सी बात है जो हर संगीतकार को खुशी देती है |
संगीतकार के लिए पुस्तकालय रखना नितांत आवश्यक है |अध्ययन करते समय वह अपना दृष्टिकोण संकीर्ण न बनाये |प्रत्येक पुस्तक का ,चाहे वो भारतीय लेखक की हो या विदेशी लेखक की ,मनन आवश्य करना चाहिए |अपने  दृष्टिकोण को उदार बनाते हुए आप जो अध्ययन करेंगे ,उससे आपका ज्ञान सर्वतोन्मुख होगा |आपके संगीत की पृष्ठभूमि उदार और गंभीर बनेगी |
संगीत का आदर्श है ,ज्ञान के सुनहले रत्नों को एकत्रित करके जाज्ज्वल्यमान प्रासाद का निर्माण करना तथा सार्वभौमिक मानव जीवन का एक्य व संगठन |संगीतज्ञों को ऎसी रचना का सृजन करना चाहिए ,जो प्रान्त व देश की सीमाओं की विभिन्नताओं में रहते हुए भी एक अव्यक्त सूत्र में मानव-हित तथा सहयोग के बिखरे हुए पल्लवों का बंदनवार कलामंदिर के चारों ओर बाँध सकने योग्य हो |इस आदर्श की पूर्ती तभी हो सकती है ,जब आप क्रियात्मक के साथ साथ शास्र का भी (theory) का भी अध्ययन करें |

इसी सबब से मैं आपको शास्त्र के बारे में भी जानकारी देती रहती हूँ कि आप संगीत के विभिन्न पहलुओं से वाबस्ता होते रहें |

आज आपको दो रागों की जुगालबंदी सुना रही हूँ ......एक अद्भुत अनुभव .....









आभार ... ......

Tuesday, April 2, 2013

भक्ति फाग ......

आज निज घाट बिच फाग मचैहों
ध्यान चरनन में लागैहों .....

इक सुर साधे तम्बूरा तन का ..
सांस के तार मिलैहों ...
मोद-मृदंग मंजीरा मनसा ...
तो विनय कि बीन बजैहों ..
भजन सतनाम को गईहों ...


ये भक्ति फाग ...
राग मिश्र काफी ......ताल दीपचंदी ....
अब सुनिए ......




Tuesday, January 29, 2013

स्वर सत्य से साक्षात्कार ....(राग मारवा )









तेज दुपहरी बीत चुकी ...
गहराती  स्वनिल  नीली सी साँझ ...
समर्पित ही रही मैं ..कर्तव्य की डोर से बंधी .....हर स्वर पर स्थिर  ....
अनुनादित अविचलित ..अकंपित  ...हे जीवन  .....तुम्हारे द्वार ...


सांध्य  दीपक जल रहा .. ...
है यह साँझ की बेला .....
तानपुरे की नाद गुंजित हृदय में...

संधिप्रकाश राग मारवा  है छेड़ा  ...
उदीप्त दृग ....अन्तःकरण तृषा शेष...
एक स्वर लहरी मेरी ..किन्तु फिर भी अशेष ......
आज .....क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??

मेरा  समर्पण है .....
मेरे जीवन की पूंजी ...
मेरी  आत्मा की प्रतिमा ...
एक अंजुरी जल की मेरी ....
मेरे स्वरों में ...मेरी आराधन  का प्रमाण ...
फिर भी ....आज क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??

तब ...
मेरे हृदय से रिस रहे  ...
ढेरों भावों में  से ...
अथाह पीड़ा कहती .....
स्वाति  सी ....
आँसू की बस एक बूंद मेरी .......
बन जाती है ....
मेरे ह्रदय स्त्रोत से फूटी हुई ..
हर कविता  मेरी ....!!
किन्तु आज ...नहीं लगता ...नहीं लगता है स्वर ......!!


स्वर की रचना कैसे रचूँ .....??
स्वर से वियोग ....कैसे सहूँ ....???
हे जीवन ...

नतमस्तक हूँ ...
आज भी तुम्हारे द्वार ....
बस कह दो एक बार ...
अपने छल को भूल ..........
क्या कर पाओगे मुझसे  साक्षात्कार ....?

खुले हैं मेरे उर द्वार ...
भेज दो वो स्वर मुझ तक निर्विकार .....
जहां मैं अभी भी खड़ी हूँ ....
प्रातः से साँझ तक ....
कर्तव्य की डोर से बंधी ...
हर स्वर पर स्थिर ...
अनुनादित ...अविचलित ...अकंपित ...
अपने ही द्वार .....
करने उस स्वर सत्य से साक्षात्कार .....

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गाना गाना और शास्त्रीय संगीत गाना दो अलग अलग बातें हैं ....!!शास्त्रीय संगीत को करत की विद्या कहा जाता है |सुर साधना पड़ता है तभी आप उसे ग्रहण कर सकते हैं |साल दर साल सुर साधते जाइए तब कहीं जाकर सरस्वती कंठ में विराजमान होतीं हैं ...!!राग को सही प्रकार गाने की चाह ही प्रत्येक विद्यार्थी को लगन और मेहनत से जोड़े रखती है |

अब ये वीडियो ज़रूर देखें .......तभी आप कविता में छुपी हुई वेदना समझ पाएंगे .....








Thursday, December 6, 2012

छाई हेमंत की बहार .....


छाई हेमंत की बहार .....

 खिल गईं ....
धरा पर  कलियाँ हज़ार ....
अम्बर से ओस झरे ...
धरा हृदय प्रीत भरे ...
ओस सी फूल पर प्रीत पगे ...
पोर-पोर    भीगे ......!!



.डाल-डाल  ....
पात पात ...
प्रीत बोले .....
हिंडोली  मन  हिंडोला झूले .......
जिया  ले हिचकोले .....
हिया  में छब पिया की ...
चितवन  में  सपन  डोले ......
री सखी .....
पपीहा पिउ-पिउ बोले ....!!!!
हेमंत की चले मंद बयार.....
''हिंडोली '' हौले हौले अवगुंठन खोले .....
आज धरा का  तन-मन  डोले ....!!!!!!!!


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* ''हिंडोली '' राग -भिन्न षडज  का ही दूसरा नाम है ,जो हेमंत ऋतु  में गया जाने वाला राग है ।आइये सुश्री अश्विनी देशपांडे जी से राग भिन्न षडज सुने ...जो इसी ऋतु  का राग है ....



Sunday, August 26, 2012

सामवेदकालीन संगीत .....!!



वैदिक युग भारत के सांस्कृतिक इतिहास में प्राचीनतम माना जाता है |इस युग में चार वेदों का विस्तार हुआ |जिनके नाम हैं-ऋगवेद ,यजुर्वेद,अथर्ववेद और सामवेद |इनमें ऋगवेद विश्व का प्रचीनतम ग्रंथ है जिसमें संग्रहीत मंत्रों को ऋक या हिन्दी में ऋचा कहते हैं |सभी मंत्र छंदोबद्ध हैं जिनमे विभिन्न देवताओं की स्तुतियाँ उपलब्ध होती हैं |
यजुर्वेद छंदोबद्ध नहीं है तथा उसमे यज्ञों का विधान है|
अथर्ववेद में सुखमूलक   एवम कल्यानप्रद मंत्रों का संग्रह तथा तांत्रिक विधान दिया गया है |
सामवेद  मंत्रों का गेय रूप है |ऋगवेद को अन्य वेदों का मूल बताया गया है |

जब किसि वाक्य का स्वरहीन उच्चारण किया जता है तो उसे वाचन कहते हैं |यदि वाक्य मे ध्वनि ऊँची-नीची तो हो लेकिन स्वर अपने ठीक स्थान पर ना लगें तो इस क्रिया को पाठ कहते हैं |और जब किसि वाक्य को इस ढंग से गाया जये कि उसमे स्वर अपने ठीक ठीक स्थान पर लगें तो उस क्रिया को गान कहते हैं |इसलिये  संगीत के विद्यार्थी को बताया जाता है कि संगीत का मूल सामवेद (ऋग्वेद का  गेय रूप है )....!
वेद का पाठ्य रूप उन लोगों के लिये उपयोगी है ,जो नाट्य के विद्यार्थी हैं |

पाठ्य का मूल ऋग्वेद ,
गीत का मूल सामवेद ,
अभिनय का मूल यजुर्वेद ,
तथा ...
रसों का मूल अथर्ववेद में है |

Saturday, July 21, 2012

श्याम ने न आवन की ठानी .....

इस सुर मंदिर पर आज नमन और श्रद्धा के साथ अपनी  इस नई कोशिश को रख रही हूँ ....बस बंद आँखों से कल्पना ही कर रही हूँ ...माँ आप होतीं तो आपके चेहरे के भाव क्या होते ...!!

यूँ तो किसी गीत को स्वरबद्ध  करना अपने आप मे एक अलग विधा है |जैसे कविता हर कोई नहीं लिख सकता ,उसी प्रकार धुन भी हर कोइ नहीं बना सकता |जब इसकी धुन बनाने लगी तभी समझ मे आया कितना मुश्किल है धुन बनाना |लेकिन यही धुन बनाने के लिये मुझे अपनी धुन की पक्की होना पड़ा था ...तभी इस धुन को खोज पाई मैं ...!!
श्याम धुन की खोज ही .... धुन बन गयी  थी  मेरी ....जैसे श्याम दिखते  नहीं हैं .. ... .....प्रभु को ढूंढने की ,धुन को ढूँढने की मुश्किल और भी बढ़ जाती है ... ..... पूरी आस्था से चाह रही थी ...ऐसी धुन बने जिसे मह्सूस किया जा सके ..... सुन कर धुन हृदय तक पहुंचे .....  लगी ही रही ....अपनी पूरी आस्था के साथ ...तब तक जब तक ये धुन नहीं मिली  मुझे ....
कभी कभी बहुत खुशी भी अभिव्यक्त नहीं कर पाता मन ...

इस धुन को  बना कर जो खुशी मिली है मुझे वो व्यक्त नहीं कर पा रही हूँ मैं ...

 तो चलिये अब ये गीत सुनिये ....मेरे लिये जीवन की बहुत बड़ी उपलब्द्धि ....

राग खमाज पर आधारित है ये गीत |खमाज थाट का राग है ये ...!इस राग का उपयोग उपशास्त्रीय संगीत मे बहुत किया जाता है |इस राग में बड़ा खयाल नहीं गाया जाता क्योंकि इसकी प्रकृति चंचल है ,ठहराव कम है ...और श्रिंगार रस प्रधान है ....!!टप्पे,ठुमरी ,दादरा आदि में बहुतायत से इसका प्रयोग होता है ...!!






आशा है मेरा प्रयास पसंद आया होगा ....बहुत आभार ....!!

Saturday, July 14, 2012

भूली बिसरी बातें .....

विभिन्न प्रांतोंमे प्रादेशिक संस्कृति की आवश्यकता के अनुसार भिन्न-भिन्न अवसरों पर जो गीत गाये जाते हैं ,उसे लोक-संगीत कहा गया है |लोक-संगीत के संस्कार - युक्त संस्करण को शास्त्रीय संगीत की संज्ञा दी गयी है |क्लिष्ट्ता बढ़ जाने के कारण शास्त्रीय संगीत समाज के लिये अरंजक और दुरूह होता चला गया |
                                 

कलाओं का उद्देश्य भावनाओं के उत्कर्ष द्वारा रसानुभूति कराना है |स्वर,ताल और लय ,मन और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं ,इसलिये संगीत का महत्व बहुत ज्यादा है |शास्त्रीया संगीत में तकनीकी विशेषतायें अधिक आ जाने के कारण वह लोक-संगीत की तरह जन-मन तक नहीं पहुंचता .....!लोग इसके नाम से ही घबरा जाते हैं ...!!बहुत मेह्नत और सतत प्रयास की वजह से ....ना तो आम लोग सीख पाते हैं ...ना सुन पाते हैं ...ना समझ पाते है ....!!और इसके  विपरीत लोक-संगीत सहज ग्राह्य होने के कारण जन-मन को आकर्षित करता है |जीवन से जुड़ी हुई स्थितियाँ जब लोक्गीतों के माध्यम से फूटतीं हैं ,तो अनायास ही रस की वर्षा करने लगती हैं |सरल शब्दावली सभी की समझ मे आ जाती है इसलिये सभी लोगों के हृदय से जुड़ती है ...!!जन्म से लेकर मृत्यु तक के गीत इतनी स्वछंदतापूर्वक प्रकट होते हैं कि मनुष्य अपने  समाज और अपनी मिट्टी से अनायास ही जुड़ जाता है ...!!
व्यक्ति और समाज के सुख और दुख का प्रतिबिम्ब लोक संगीत है ,यह कहना कोइ अत्युक्ति नहीं|

लोक संगीत का छंद यद्यपि संक्षिप्त होता है ,परंतु भाव के अनुकूल होने से वह मन मस्तिष्क पर पूरा प्रभाव डालता है|भावों की सनातनता के कारण लोक संगीत कभी पुराना नहीं पड़ता वह सदाबहार है ...|गायक और श्रोता के बीच सीधा जुड़ाव होने के कारण भाव सम्प्रेषण की प्रक्रिया में लोक-संगीत सबसे अधिक सक्षम है |लोक-संगीत से प्रभावित होकर ही श्री रवींद्रनाथ टैगोर ने शास्त्रीय संगीत के धरातल पर हृदय को छूनेवाले स्वारों को शब्दों का चोला पहनाकर ,एक नई गान पद्धतिका निर्माण किया था,जो रवींद्र-संगीत के नाम से जानी जाती है |

सावन के इस मौसम मे आइये एक  कजरी सुनिये ........


Wednesday, May 16, 2012

संगीत की शक्ति ........(२)


भारतीय संगीत साहित्य में तानसेन से सम्बंधित कई चमत्कारिक किम्वदंतियां हैं ,जिनमे से दीपक राग द्वारा दीपक जला देना ,मेघ द्वारा वृष्टि कराना और स्वर के प्रभाव से हिरन आदि पशुओं को पास बुला लेना मुख्या रूप से प्रचलित है |इसी प्रकार ग्रीक साहित्य में  ऑरफेंस का वर्णन मिलता है ,जो संगीत के प्रभाव से चराचर जगत को हिला देता था ,समुद्र की उत्ताल तरंगों को शांत कर देता था और वायु के वेग को रोक सकता था |
                             मिल्टन ने 'पैराडाईज़ लॉस्ट ' में लिखा है कि जब ईश्वर ने सृष्टि रची,तब उसने पहले संगीत कि शक्ति से बिखरे हुए नकारात्मक तत्वों को एकत्रित किया ,तत्पश्चात सृष्टी की रचना की |ट्राइडन इसी बात को अपने सेंट असीलिया कि प्रार्थना के गीत में दिखता है |वह कहता है कि संगीत में केवल वास्तु के सृजन कि ही नहीं,लय उत्पन्न करने की भी शक्ति है ;जिस प्रकार जगत कि उत्पत्ति संगीत से है ,उसी प्रकार उसका लय भी संगीत  से ही होता है |जैसे संगीत भौतिक तत्वों का समन्वय करता है ,वैसे ही अध्यात्मक तत्वों का भी |स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही सृष्टि संगीत कि शक्ति के अधीन हैं ,इस सत्य को स्टीवेंसन ने भी स्वीकार किया है |उन्होंने अपने एक लेख में बंसी बजाते हुए प्रकृति-देव की कल्पना की है |

शास्त्र के साथ कुछ क्रियात्मक हो तो अपनी बात कि सार्थकता सिद्ध होती है खास तौर पर तब जब संगीत की शक्ति  की बात हो ...!
राग पूरिया कल्याण सुनिए .....
मरवा थाट का राग है ...

Friday, May 11, 2012

धीरे धीरे मचल ...


कभी जब अपनी पहचान ढूंढती हूँ .....एक ही आवाज़ आती है ....
मेरी आवाज़ ही पहचान है .....गर याद रहे ......!!स्वर आत्मा के साथी हैं ..!कभी साथ नहीं छोड़ते |कोई भी कला हो उसे आत्मा आत्मसात करती है |तभी कहते हैं मनुष्य कुछ मूलभूत चीज़ों के साथ जन्मता है |
        विभिन्न देशों में संगीत के प्रकार चाहे भिन्न भिन्न हों ,परन्तु प्रचार और गुणों का रूपांतर नहीं होता |संगीत का मौलिक रूप और उसके सृजनात्मक तत्त्व सभी स्थानों के संगीत में समान होते हैं |संगीत के परमाणुओं में मानव की वृत्तियों को प्रशस्त करने के साथ-साथ आत्मिक शक्ति भी निहित है |चारित्रिक उत्थान का  सर्वोत्तम साधन भी संगीत ही है |इस ललित कला  की गहराई मापी नहीं जा सकती |


ये तो हुईं कुछ शास्त्र की बातें ....अब ....
हमारी फिल्मों में भी कुछ ऐसे नायब नगमे हैं जिनको सुन कर झूम उठता है मन ....!

 आप सभी को , अनुपमा फिल्म का ....आज मैं अपना पसंदीदा गीत सुनाना चाहती हूँ ....
  ...धीरे धीरे मचल ...