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Thursday, February 6, 2014

संगीत और छन्दशास्त्र ....(2)



जिस पदबंध में यति,छेद इत्यादि नियत प्रमाण के आधार पर 'पाद 'बनते हैं ,तभी वह 'निबद्ध 'और पद्य कहलाता है,अन्यथा वह गद्य की श्रेणी में आता है ,जिसमे नियमित लय या गति नहीं होती |अर्थात गति के  नियमित विभाजन से छंद बनता है |
यति का अर्थ विराम है ....
छेद का अर्थ जैसे गणित में भाजक ,झटका या रुकावट से है |लय के भेद को छेद कहा गया है |
पाद अर्थात चरण ...
यहाँ पर मैं उस छन्दशास्त्र की बात कर रही हूँ जो वेदों में दिया गया है |जिसकी मात्रा  भी प्रत्येक पद में बराबर होती है |सोचकर अत्यंत खेद भी होता है की हमारे पास जो अनमोल खजाना है वेदों के रूप में ,उसे हम आसानी से विलुप्त होने दे रहे हैं |संगीत की भाषा कई बार बड़ी अटपटी लगती है लेकिन ये किताबों में लिखा गया शास्त्र है और संगीत से जुड़े लोगों को अटपटा नहीं लगता |कोशिश करती हूँ जो भी संगीत का शास्त्र  उपलब्ध हो ,उसका सरलीकरण कर के यहाँ लिख सकूँ ताकि कुछ  नया जानने को मिले संगीत के विषय मे पढ़ने वालों को |और संगीत के प्रति रुचि भी बढ़े|
वेदों के छह अंग हैं |
शिक्षा ,कल्प,निरुक्त,व्याकरण,ज्योतिष और छंद |वेदों को छंदों में ही लिखा गया है इसलिए उन्हें हम छंदस भी कहते हैं |

अक्षरों को एक निश्चित क्रम तथा संख्या में व्यवस्थित करने से रचना में संगीतात्मकता , लयात्मकता तथा सहज प्रवाह उत्पन्न होता है |

हृस्व-दीर्घ या लघु-गुरु ईकाइयों के आधार पर लय की विशेष आकृति से छंद के रूप का निर्माण होता है |लय का प्रयोजन काल का नियमित विभाजन मात्र है |जबकि छंद का प्रयोजन विभाजित काल को निश्चित स्वरूप और आकार देना है |लय के निश्चित स्वरूप से ही छंद साकार होता है |जैसे राम राम राम राम या सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम अथवा जय जय राम जय जय राम अलग अलग लय मे दिखाई पड़ते हैं |लय के इन्हीं विभिन्न आकारों के आधार पर भाषाशास्त्र मे विभिन्न छंदों का नामांकरण कर दिया गया है |
छंद  का अनुभव केवल सुनने से संबंध रखता है |क्योंकि वह शब्द रचना ,स्वर रचना या पद रचना के अंदर रहने वाला विशेष तत्व है |अक्षर स्वर और पद की उलट पुलट से छंद का स्वरूप बदलता रहता है |शब्दात्मक छंद और स्वरात्मक छंद में एक विशेष अंतर यह होता है कि शब्दों का विशेष नियोजन निश्चित छंद का निर्माण करता है परंतु स्वर के प्रवेश द्वारा उस छंद का स्वरूप बदला जा सकता है |तब उसे संगीतात्मक छंद कहते हैं ,जिसका आधार शब्द न होकर स्वर होते हैं |
हिन्दी काव्य में शब्दात्मक काव्य की बहुलता मिलती है और फिल्मी काव्य अधिकांश रूप में संगीतकमक छंद पर निर्भर रहता है |इसलिए जब किसी फिल्मी गाने को बिना धुन के काव्य रूप में बोला जाए तो उसमें शब्दों की कोई निश्चित लय दिखाई नहीं पड़ती |उर्दू शायरी में भी साहित्यिक छंद की अपेक्षा संगीतात्मक छंद का अधिक प्रयोग पाया जाता है |
छंद कहीं भी हो ,आनंद की अनुभूति कराने मे समर्थ होता है |स्वर और शब्द इंद्रियगोचर हैं |लेकिन लय और छंद की केवल सूक्ष्म मानस अनुभूति ही होती है |इसलिए तबला ,सितार जैसे वाद्य और नृत्य के पदाघात हमें अपने आघातों द्वारा लय के रस में डुबाते हुए आनंद प्रदान करते हैं |


यहाँ सुनिए राहुल देशपांडे जी का गाया हुआ -राग अहिरभैरव ...प्रातः का राग है ....
                                                                                                                                     


....किस प्रकार संगीत एकसूत्र में पिरोता है ....ईश्वर की उपस्थिती अनुभूत कीजिये ....
अद्भुत आह्लादकारी प्रस्तुति है ....
यहाँ उसका दूसरा भाग ......


Sunday, August 26, 2012

सामवेदकालीन संगीत .....!!



वैदिक युग भारत के सांस्कृतिक इतिहास में प्राचीनतम माना जाता है |इस युग में चार वेदों का विस्तार हुआ |जिनके नाम हैं-ऋगवेद ,यजुर्वेद,अथर्ववेद और सामवेद |इनमें ऋगवेद विश्व का प्रचीनतम ग्रंथ है जिसमें संग्रहीत मंत्रों को ऋक या हिन्दी में ऋचा कहते हैं |सभी मंत्र छंदोबद्ध हैं जिनमे विभिन्न देवताओं की स्तुतियाँ उपलब्ध होती हैं |
यजुर्वेद छंदोबद्ध नहीं है तथा उसमे यज्ञों का विधान है|
अथर्ववेद में सुखमूलक   एवम कल्यानप्रद मंत्रों का संग्रह तथा तांत्रिक विधान दिया गया है |
सामवेद  मंत्रों का गेय रूप है |ऋगवेद को अन्य वेदों का मूल बताया गया है |

जब किसि वाक्य का स्वरहीन उच्चारण किया जता है तो उसे वाचन कहते हैं |यदि वाक्य मे ध्वनि ऊँची-नीची तो हो लेकिन स्वर अपने ठीक स्थान पर ना लगें तो इस क्रिया को पाठ कहते हैं |और जब किसि वाक्य को इस ढंग से गाया जये कि उसमे स्वर अपने ठीक ठीक स्थान पर लगें तो उस क्रिया को गान कहते हैं |इसलिये  संगीत के विद्यार्थी को बताया जाता है कि संगीत का मूल सामवेद (ऋग्वेद का  गेय रूप है )....!
वेद का पाठ्य रूप उन लोगों के लिये उपयोगी है ,जो नाट्य के विद्यार्थी हैं |

पाठ्य का मूल ऋग्वेद ,
गीत का मूल सामवेद ,
अभिनय का मूल यजुर्वेद ,
तथा ...
रसों का मूल अथर्ववेद में है |