सगीत और कविता एक ही नदी की दो धाराएँ हैं ...इनका स्रोत एक ही है किन्तु प्रवाह भिन्न हो जाते हैं ...इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने ये नया ब्लॉग शुरू किया है ताकि दोनों को अपना समय दे सकूं ...!!आशा है आपका सहयोग मिलेगा.......!!
अरे श्वान तेरी मौन पीर कीकौन यहाँ सुध लेयदेख कोई लाठी चटकावेकोई सर पत्थर जड देय,घर-घर,दर-दर फिरे भटकताव्याकुल करती भूखकिन्तु हाय धनिक मनुज सेबने न कर्ण बराबर टूक,पूरा पढ़ने के लिए प्रोफाइल पर आएं।फॉलो कमेंट करके उत्साहवर्धन करें
आपका अति सुंदर प्रयास है
अरे श्वान तेरी मौन पीर की
ReplyDeleteकौन यहाँ सुध लेय
देख कोई लाठी चटकावे
कोई सर पत्थर जड देय,
घर-घर,दर-दर फिरे भटकता
व्याकुल करती भूख
किन्तु हाय धनिक मनुज से
बने न कर्ण बराबर टूक,
पूरा पढ़ने के लिए प्रोफाइल पर आएं।फॉलो कमेंट करके उत्साहवर्धन करें
आपका अति सुंदर प्रयास है
ReplyDelete