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Tuesday, March 20, 2012

आज फिर जीने की तमन्ना है ....!!

आज आपको अपना गाया  हुआ एक गीत सुनाने का मन है ..!गीत ज़रूर सुनिए ...पर उससे पहले कुछ संगीत शास्र भी ....

रस-परिपाक में राग और वाणी के अतिरिक्त लय भी एक प्रमुख तत्व  है ।भाव के अनुकूल शब्दों की प्रकृति जान कर उचित लय का प्रयोग संगीत के सौंदर्य वर्द्धन   में होता है ।ठीक उसी प्रकार ,जैसे करुना की अभिव्यंजना के समय मनुष्य की क्रीडाओं में ठहराव आ जाता है और चपलता नष्ट हो जाती है ,परन्तु उत्साह और क्रोध के अवसर पर उसकी क्रियाओं में तीव्रता आ जाती है ।इसीलिए करुण रस के परिपाक के लिए विलंबित लय हास्य और श्रृंगार के लिए मध्य लय ,तथा वीर,रौद्र,अद्भुत एवं विभत्स रस  के  लिए द्रुत लय का प्रयोग प्रभावशाली सिद्ध होता है ।गीत की रसमयता ,छंद और ताल का सामंजस्य ,गायक-वादकों की परस्पर अनुकूलता तथा स्वर और लय की रसानुवर्तिता इत्यादि विशेषताएं मिलकर संगीत में सौंदर्य बोध  का कारण बनती हैं ।
  




10 comments:

  1. मेरा फ़ेवरिट गीत है यह।
    अय्र आज लय के तेज, मध्य और धीमे होने पर जो प्रकाश डाला गया है वह भलिभांति समझ में आया।
    आभार।

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    1. सोचा गीत के साथ कुछ शास्त्र चर्चा भी होनी चाहिए ...!

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  2. lovely...............

    is it ur music class???

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  3. very nice ...chhand or taal ki samnjasy ..bhi sath me ...aap koi geet rag kaharwa me gaiye n sunane ki iksha ho rahi aapki aawaz me ..!!

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    1. बहुत आभार साधना जी .....

      रेकोर्ड करके पोस्ट करती हूँ ......शायद कुछ पिछला रेकोर्डिंग होगा तो देख कर जल्दी ही पोस्ट करती हूँ ....!!

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  4. वाह, बहुत अच्छा लगता है यह गीत।

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  5. हाँ ...इस गीत में बहुत जोश है ....जिसको भी यह गाना आता था ...सब साथ साथ गा रहे थे ,झूम रहे थे ....यही संगीत कि खासियत है .....

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