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Saturday, July 21, 2012

श्याम ने न आवन की ठानी .....

इस सुर मंदिर पर आज नमन और श्रद्धा के साथ अपनी  इस नई कोशिश को रख रही हूँ ....बस बंद आँखों से कल्पना ही कर रही हूँ ...माँ आप होतीं तो आपके चेहरे के भाव क्या होते ...!!

यूँ तो किसी गीत को स्वरबद्ध  करना अपने आप मे एक अलग विधा है |जैसे कविता हर कोई नहीं लिख सकता ,उसी प्रकार धुन भी हर कोइ नहीं बना सकता |जब इसकी धुन बनाने लगी तभी समझ मे आया कितना मुश्किल है धुन बनाना |लेकिन यही धुन बनाने के लिये मुझे अपनी धुन की पक्की होना पड़ा था ...तभी इस धुन को खोज पाई मैं ...!!
श्याम धुन की खोज ही .... धुन बन गयी  थी  मेरी ....जैसे श्याम दिखते  नहीं हैं .. ... .....प्रभु को ढूंढने की ,धुन को ढूँढने की मुश्किल और भी बढ़ जाती है ... ..... पूरी आस्था से चाह रही थी ...ऐसी धुन बने जिसे मह्सूस किया जा सके ..... सुन कर धुन हृदय तक पहुंचे .....  लगी ही रही ....अपनी पूरी आस्था के साथ ...तब तक जब तक ये धुन नहीं मिली  मुझे ....
कभी कभी बहुत खुशी भी अभिव्यक्त नहीं कर पाता मन ...

इस धुन को  बना कर जो खुशी मिली है मुझे वो व्यक्त नहीं कर पा रही हूँ मैं ...

 तो चलिये अब ये गीत सुनिये ....मेरे लिये जीवन की बहुत बड़ी उपलब्द्धि ....

राग खमाज पर आधारित है ये गीत |खमाज थाट का राग है ये ...!इस राग का उपयोग उपशास्त्रीय संगीत मे बहुत किया जाता है |इस राग में बड़ा खयाल नहीं गाया जाता क्योंकि इसकी प्रकृति चंचल है ,ठहराव कम है ...और श्रिंगार रस प्रधान है ....!!टप्पे,ठुमरी ,दादरा आदि में बहुतायत से इसका प्रयोग होता है ...!!






आशा है मेरा प्रयास पसंद आया होगा ....बहुत आभार ....!!

12 comments:

  1. कृष्ण तो भक्त वत्सल है , और अपने प्रिय की पुकार पर नंगे पांव दौड़े चले आते है. आप की इस श्याम भजन में शब्दों और भावो ने भक्ति के सागर में डूबने का अनुपम अवसर दिया . सुर और संगीत इसीलिए. अप्रतिम गान .

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  2. लाजवाब! ये तकनीक तो आपसे सीखना पड़ेगा, अनुपमा जी।

    गाने के साथ-साथ जो तस्वीरें आ रही हैं और उस पर गीत के बोल जो लिखे आ रहे हैं इसने इस प्रस्तुति में चार चांद लगा दिए हैं। अब आप अपने सहृदयता से कहेंगी कि यह मुश्किल काम नहीं है, पर जब तक न आता हो मुश्किल तो लगता ही है। इसलिए इसी ब्लॉग पर इसकी भी कक्षा लगाएं।

    गीत के बोल के साथ जो स्वर देने का काम आपने यहां किया है, यही मैं आपसे आपकी हर कविता के साथ चहता हूं। आपके स्वर देने से इसका सौन्दर्य कई गुना बढ़ जाता है।

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  3. सुनी अनुपमा जी आपकी मीठी प्यारी आवाज़ ...
    राग का तो हमें पता नहीं पर आपको तो साक्षात् सरस्वती जी की देन है ...

    नमन आपके हुनर को ....!!

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    1. अरे नहीं हरकीरत जी ..ज्ञान का क्षेत्र बहुत व्यापक है ...उसे देखते हुए मुझ तो कुछ भी नहीं आता ...बस अपना प्रयत्न करती रहती हूँ ...कुछ सार्थक कर सकूँ ...!!
      आभार आपका ....आशीर्वचनों के लिये ...!!

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  4. स्पीकर खराब होने से सुन नहीं पाया था आपकी सस्वर प्रस्तुतियों को...
    आज सुनने का सौभाग्य मिला....
    आनंद आ गया... आनंद आ गया...
    आदरणीय अनुपमा जी, सादर बधाई स्वीकारें/आभार भी मधुर प्रस्तुति के लिए।
    सादर।

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भाव, बधाई .

    कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .

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  6. कान्हा ने आपको धुन दे ही दी और क्या धुन दी है । गीत, आपकी आवाज और चित्र वृंदावन में ले चले ।

    मै तो नही पर मेरी दीदी शास्त्रीय संगीत सीखी थीं ।
    उन्ही से सुना था
    राग खमाज सुनाये सुलक्षण ......

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  7. वाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
    एक भजन मैनें भी अपने ब्लाग पर पोस्ट किया है, जिसमे धुन और रचना दोनों मेरी है।

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  8. सुना। स्वर और संगति दोनों काबिले तारीफ़ है। गीत की मर्यादा के एकदम अनुरूप।

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  9. अनुपमा जी,आपके मधुर कंठ से भजन सुना.आँख बंद करके सुनता ही चला गया .अन्दर तक आपकी आवाज उतरती ही चली गयी.क्या कहीं से आपके और भजनों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो सकता है.आजकल के परिवेश में आवाज की मौलिकता कहीं गुम सी हो गयी है. पीछे रह गया है तो मात्र कानो में नश्तर जैसे चुभने वाले बाजों का शोर. ज्योतिषी होने के नाते कह सकता हूँ की शुक्र की महत्वपूर्ण भूमिका है आपके जीवन में.माता सरस्वती की असीम अनुकम्पा है आप पर. ईश्वर सदा आपके कंठ को मौलिकता प्रदान करे,और शायद आपको ज्ञात हो की स्वर की मौलिकता ही प्रभु के निकट करती है मनुष्य को

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