सगीत और कविता एक ही नदी की दो धाराएँ हैं ...इनका स्रोत एक ही है किन्तु प्रवाह भिन्न हो जाते हैं ...इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने ये नया ब्लॉग शुरू किया है ताकि दोनों को अपना समय दे सकूं ...!!आशा है आपका सहयोग मिलेगा.......!!
नमस्कार आपका स्वागत है
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Thursday, March 26, 2015
प्रभास से पूर्ण ....!!
भोर का राग .....कितना आह्लादकारी ....कितना सुखद ....!!ऊर्जा से प्रखर ....प्रभास से पूर्ण ....!!
साधना की पराकाष्ठा ..........!!
चल मन उड़ चलें विस्तृत आकाश के विस्तार में......
अनुपमा जी ,इस मधुर प्रस्तुति के लिए आपका विशेष आभार . इस होनहार कलाकार को दिल से दुआएं .
ReplyDeleteमधुर संगीत ... भैरव के स्वर स्वतः ही भोर का अनुभव करा देते हैं ...
ReplyDeleteआपकी इस सुमधुर प्रस्तुति का उल्लेख कल सोमवार (30-03-2015) की चर्चा "चित्तचोर बने, चित्रचोर नहीं" (चर्चा - 1933) पर भी होगा.
ReplyDeleteसूचनार्थ
bahut bahut abhar Anusha !!
Deleteचेतना से नियंत्रण ही हट गया सुनते सुनते ,बेहद शानदार प्रस्तुति
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