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Friday, September 20, 2013

संगीत और छंदशास्त्र .....!!

अक्षर या वाक का लयात्मक स्वरूप जब निश्चित मात्राओं मेन विभक्त होता है तो वही छंद कहलाता है !!ताल जगत में इसी को निश्चित मात्राओं में आबद्ध 'ताल 'कहते हैं !!इस प्रकार से काल की नियमित गति ही ताल या छंद को जन्म देती है ||अक्षरों के नियमित कंपन स्वर को जन्म देते हैं |संगीत में स्वर ,छंद और ताल का विशेष महत्व है |

                 भरत ने अत्यंत व्यापक रूप में वाक्  तत्व को शब्द और काल तत्व को छंद कहा है |उन्होने कहा है कि  कोई शब्द (ध्वनि)छंद  रहित नहीं और न कोई छंद  ,शब्द रहित है ;क्योंकि ध्वनि काल के बिना व्यक्त नहीं होती और काल का ज्ञान ध्वनि के बिना संभव नहीं |काल सीमा रहित है |अतः उसका ज्ञान तभी संभव है जबकि उसे खंड बनाकर बांध लिया जाये |इसके बिना काल की अभिव्यक्ति संभव नहीं होगी |भूत,भविष्य और वर्तमान की गणना ,माने गए काल -खण्डों (कल्पित )पर ही अवलंबित है |

                                      जिस पदबंध में यति,छेद इत्यादि नियत प्रमाण के आधार पर 'पाद 'बनते हैं ,तभी वह 'निबद्ध 'और पद्य कहलाता है,अन्यथा वह गद्य की श्रेणी में आता है ,जिसमे नियमित लय या गति नहीं होती |अर्थात गति को नियमित विभाजन से छंद बनता है |
आज के लिए इतना ही अगली बार इसी चर्चा को आगे बढ़ाएंगे। ….!!

यति का अर्थ विराम है ....
छेद का अर्थ जैसे गणित में भाजक ,झटका या रुकावट से है |लय के भेद को छेद कहा गया है |
पाद अर्थात चरण ...

यहाँ ताल को ध्यान से सुनिए और स्वर और ताल का आनंद लीजिये ....
                                                                                                                                          क्रमशः