स्वरोज सुर मंदिर की तीसरी कड़ी प्रस्तुत है ..!!
नाद ब्रम्ह.....परब्रम्ह ...!!
प्रभु तक पहुँचाने का एक मार्ग संगीत भी है नाद के विषय में कुछ रोचक जानकारी से आज की चर्चा प्रारंभ करते हैं |आज नाद के गुण और उसके प्रकार के विषय में चर्चा करते हैं
प्रभु तक पहुँचाने का एक मार्ग संगीत भी है नाद के विषय में कुछ रोचक जानकारी से आज की चर्चा प्रारंभ करते हैं |आज नाद के गुण और उसके प्रकार के विषय में चर्चा करते हैं
नाद के दो प्रकार होते हैं :
- आहत नाद
- अनाहत नाद .
आहत नाद :जो कानो को सुनाई देता है और जो दो वस्तुओं के रगड़ या संघर्ष से पैदा होता है उसे आहत नाद कहते हैं |इस नाद का संगीत से विशेष सम्बन्ध है |यद्यपि अनाहत नाद को मुक्तिदाता मन गया है किन्तु आहात नाद को भी भाव सागर से पार लगानेवाला बताया गया है |इसी नाद के द्वारा सूर,मीरा इत्यादि ने प्रभु-सानिध्य प्राप्त किया था और फिर अनाहत की उपासना से मुक्ति प्राप्त की ...!
अनाहत नाद ::जो नाद केवल अनुभव से जाना जाता है और जिसके उत्पन्न होने का कोई खास कारन न हो ,यानि जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से उत्पन्न होता है ,उसे अनाहत नाद कहते हैं ;जैसे दोनों कान जोर से बंद अनुभव करके देखा जाये ,तो 'साँय-साँय ' की आवाज़ सुनाई देती है
इसके बाद नादोपसना की विधि से गहरे ध्यान की अवस्था में पहुँचने पर सूक्ष्म नाद सुनाई पड़ने लगता है जो मेघ गर्जन या वंशिस्वर आदि से सदृश होता है |इसी अनाहत नाद की उपासना हमारे प्राचीन ऋषि -मुनि करते थे |यह नाद मुक्ति दायक तो है ...किन्तु रक्तिदायक नहीं |इसलिए ये संगीतोपयोगी भी नहीं है ,अर्थात संगीत से अनाहत नाद का कोई सम्बन्ध नहीं है |
वास्तव में ध्वनि का वर्गीकरण वैज्ञानिक ढंग से तीन गुणों के अधर पर किया जा सकता है :
अनाहत नाद ::जो नाद केवल अनुभव से जाना जाता है और जिसके उत्पन्न होने का कोई खास कारन न हो ,यानि जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से उत्पन्न होता है ,उसे अनाहत नाद कहते हैं ;जैसे दोनों कान जोर से बंद अनुभव करके देखा जाये ,तो 'साँय-साँय ' की आवाज़ सुनाई देती है
इसके बाद नादोपसना की विधि से गहरे ध्यान की अवस्था में पहुँचने पर सूक्ष्म नाद सुनाई पड़ने लगता है जो मेघ गर्जन या वंशिस्वर आदि से सदृश होता है |इसी अनाहत नाद की उपासना हमारे प्राचीन ऋषि -मुनि करते थे |यह नाद मुक्ति दायक तो है ...किन्तु रक्तिदायक नहीं |इसलिए ये संगीतोपयोगी भी नहीं है ,अर्थात संगीत से अनाहत नाद का कोई सम्बन्ध नहीं है |
वास्तव में ध्वनि का वर्गीकरण वैज्ञानिक ढंग से तीन गुणों के अधर पर किया जा सकता है :
- तारता अर्थात नाद का ऊँचा -नीचपन (Pitch.)
- तीव्रता या प्रबलता अथवा नाद का छोटा बड़ापन (Loudness)
- गुण या प्रकार (Timbre)
चलिए अब लौट चलते हैं राग यमन पर |आपको आज राग यमन की विस्तृत जानकारी देती हूँ|
ठाट :कल्याण जाती :सम्पूर्ण समय :रात्री का प्रथम प्रहार
वादी :ग(गंधार) संवादी:नि (निषाद)
आरोह: नि रे ग म प धनि सां
अवरोह: सां नि ध प म ग रे सा
मध्यकालीन ग्रंथों में यमन का उल्लेख मिलाता है |परन्तु प्राचीन ग्रंथों में केवल कल्याण राग दिखाई देता है यमन नहीं |आधुनिक ग्रंथों में यमन एक सम्पूर्ण जाती का राग माना गया है |
राग का अध्ययन करते करते ही अब आपको राग वर्णन में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न सब्दों की जानकारी देती हूँ सबसे पहले देखें ठाट क्या है ...?
ठाट स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे राग उत्पन्न हो सके | पंद्रहवीं शताब्दी के अंतिम काल में 'राग तरंगिणी ' के लेखक लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परंपरागत 'ग्राम और मूर्छना -प्रणाली' का परिमार्जन करके मेल अथवा ठाट को सामने रखा |उस समय तक लोचन कवि के अनुसार सोलह हज़ार राग थे ,जिन्हें गोपियाँ कृष्ण के सामने गया करती थीं;किन्तु उनमे से छत्तीस राग प्रसिद्द थे |सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अंतर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचार में आ गया,जो उस समय के प्रसिद्द ग्रन्थ 'संगीत -पारिजात'और 'राग विबोध'में स्पष्ट है |इस प्रकार लोचन कवी से आरंभ होकर यह ठाट पद्धति चक्कर काटती हुई श्री भातखंडे जी के समय में आकर वैधानिक रूप से स्थिर हो गई |
रागों का अध्ययन करने के हिसाब से सात स्वरों के प्रयोग के आधार पर ठाट का निर्माण किया गया |इस प्रकार हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अनुसार अब हम भातखंडे जी द्वारा बताये गए दस ठाट मानते हैं |जो इस प्रकार हैं:
बिलावल ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (सभी स्वर शुद्ध प्रयोग)
यमन या कल्याण ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (म तीव्र )
खमाज ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (नी कोमल)
भैरव ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ध कोमल )
पूर्वी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ध कोमल म तीव्र )
मारवा ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे कोमल म तीव्र )
काफी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (ग नी कोमल)
असावरी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (ग ध नी कोमल )
भैरवीं ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ग ध नी कोमल )तोड़ी ठाट :
सा रे ग म प ध नी सां | (रे ग ध नी कोमल म तीव्र )
अब आप ये बात समझ सकेंगे कि राग यमन कल्याण ठाट का राग है क्योंकि उसमे म तीव्र प्रयोग होता है |
आज के लिए इतना बहुत है ... कोई बात समझ न आई हो तो कृपया निसंकोच पूछ लें ...फिर शीघ्र मिलेंगे ...
क्रमशः ........
रागों का अध्ययन करने के हिसाब से सात स्वरों के प्रयोग के आधार पर ठाट का निर्माण किया गया |इस प्रकार हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अनुसार अब हम भातखंडे जी द्वारा बताये गए दस ठाट मानते हैं |जो इस प्रकार हैं:
बिलावल ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (सभी स्वर शुद्ध प्रयोग)
यमन या कल्याण ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (म तीव्र )
खमाज ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (नी कोमल)
भैरव ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ध कोमल )
पूर्वी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ध कोमल म तीव्र )
मारवा ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे कोमल म तीव्र )
काफी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (ग नी कोमल)
असावरी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (ग ध नी कोमल )
भैरवीं ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ग ध नी कोमल )तोड़ी ठाट :
सा रे ग म प ध नी सां | (रे ग ध नी कोमल म तीव्र )
अब आप ये बात समझ सकेंगे कि राग यमन कल्याण ठाट का राग है क्योंकि उसमे म तीव्र प्रयोग होता है |
आज के लिए इतना बहुत है ... कोई बात समझ न आई हो तो कृपया निसंकोच पूछ लें ...फिर शीघ्र मिलेंगे ...
क्रमशः ........
संगीत से परिचय कराने हेतु शुक्रिया
ReplyDeleteसभी ठाठो की सारगर्भित जानकारी....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....
सादर बधाई/आभार...
आपकी हलचल से यहाँ चला आया हूँ
ReplyDeleteसुन्दर ज्ञान दीप प्रज्वलित किया है आपने.
सादर बधाई/आभार जी.
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ReplyDeleteThanks for nad information
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