संधि प्रकाश राग क्या हैं ...?
स्पंदन ...जीवन ...और संगीत ...एक चोटी की तरह गुंथे हुए हैं...!जब से मनुष्य का जीवन है तभी से ही संगीत का अधिपत्य इस धरा पर है ...!जन-जन के हृदय में बसा लोक-संगीत ...जन्म पर गाये जाने वाले सोहर से लेकर मृत्यु पर राम नाम सत्य का जाप ....संगीत से कुछ भी तो अछूता नहीं है .....!!किसी श्राप से श्रपित हो हम उसे अपने हृदय से दूर कर देते हैं किन्तु इतिहास गवाह है इस बात का ...जहाँ संगीत है वहां खुशहाली हमेशा रहती है ...!!और जहाँ खुशहाली है वहां संगीत का दर्जा बहुत ऊपर रहता है ...!!दोनों ही बातें हैं |
साधक को यह बात ध्यान देना है कि स्वरों का आन्दोलन किस प्रकार हो कि हृदय के आन्दोलन को छू जाये |एक सफल संगीतज्ञ का कार्य ही यही है |कला में अपनी बात मनवाने की ताक़त होती है अगर उसे साधना की तरह लिया जाये ...!मैंने पहले चर्चा कि है कि समय के आधार पर रागों का वर्गीकरण हुआ है |अब पूरे चौबीस घंटों में दो बार ऐसा होता है कि अन्धकार और प्रकाश का मिलन होता है |या दोनों कि संधि होती है ........एक बार अन्धकार प्रकाश में विलीन हो जाता है और एक बार प्रकाश अपना तेज त्याग ...अन्धकार में घुप्प हो.. सो जाता है ...!!शायद जीवन की आपा धापी से थका हुआ ...या ...कर्तव्य बोध से फिर भी बंधा हुआ ...कि कुछ क्षण नींद ज़रूरी है ...!तो...इन दोनों समय को संगीत कि भाषा में संधिप्रकाश काल कहते हैं |और इस समय गाए जाने वाले राग संधिप्रकाश राग कहलाये जाते हैं |ये संधिप्रकाश राग दो तरह के होते :
1-प्रातःकालीन संधिप्रकाश राग
2-सांयकालीन संधिप्रकाश राग
प्रातःकालीन संधिप्रकाश राग गायन का समय प्रातः चार से सात बजे का है |भैरव,तोड़ी ,उसके सभी प्रकार और रामकली इस समय के राग हैं |
सांयकालीन संधिप्रकाश राग में पूरिया ,मारवा ,पूरिया धनाश्री आदि आते हैं |
इनको किस प्रकार लिया जाता है इसी चर्चा अगले अंक में ....
स्पंदन ...जीवन ...और संगीत ...एक चोटी की तरह गुंथे हुए हैं...!जब से मनुष्य का जीवन है तभी से ही संगीत का अधिपत्य इस धरा पर है ...!जन-जन के हृदय में बसा लोक-संगीत ...जन्म पर गाये जाने वाले सोहर से लेकर मृत्यु पर राम नाम सत्य का जाप ....संगीत से कुछ भी तो अछूता नहीं है .....!!किसी श्राप से श्रपित हो हम उसे अपने हृदय से दूर कर देते हैं किन्तु इतिहास गवाह है इस बात का ...जहाँ संगीत है वहां खुशहाली हमेशा रहती है ...!!और जहाँ खुशहाली है वहां संगीत का दर्जा बहुत ऊपर रहता है ...!!दोनों ही बातें हैं |
साधक को यह बात ध्यान देना है कि स्वरों का आन्दोलन किस प्रकार हो कि हृदय के आन्दोलन को छू जाये |एक सफल संगीतज्ञ का कार्य ही यही है |कला में अपनी बात मनवाने की ताक़त होती है अगर उसे साधना की तरह लिया जाये ...!मैंने पहले चर्चा कि है कि समय के आधार पर रागों का वर्गीकरण हुआ है |अब पूरे चौबीस घंटों में दो बार ऐसा होता है कि अन्धकार और प्रकाश का मिलन होता है |या दोनों कि संधि होती है ........एक बार अन्धकार प्रकाश में विलीन हो जाता है और एक बार प्रकाश अपना तेज त्याग ...अन्धकार में घुप्प हो.. सो जाता है ...!!शायद जीवन की आपा धापी से थका हुआ ...या ...कर्तव्य बोध से फिर भी बंधा हुआ ...कि कुछ क्षण नींद ज़रूरी है ...!तो...इन दोनों समय को संगीत कि भाषा में संधिप्रकाश काल कहते हैं |और इस समय गाए जाने वाले राग संधिप्रकाश राग कहलाये जाते हैं |ये संधिप्रकाश राग दो तरह के होते :
1-प्रातःकालीन संधिप्रकाश राग
2-सांयकालीन संधिप्रकाश राग
प्रातःकालीन संधिप्रकाश राग गायन का समय प्रातः चार से सात बजे का है |भैरव,तोड़ी ,उसके सभी प्रकार और रामकली इस समय के राग हैं |
सांयकालीन संधिप्रकाश राग में पूरिया ,मारवा ,पूरिया धनाश्री आदि आते हैं |
इनको किस प्रकार लिया जाता है इसी चर्चा अगले अंक में ....
क्लास में उपस्थिति दर्ज़ करते हुए यह भी अर्ज़ करना है कि इस विषय में जानकारी मिली।
ReplyDeletebahut achha lagta hai tumse jante rahna
ReplyDeleteअनुपमा जी,
ReplyDeleteसंगीत एवं राग का सुंदर आलेख सुंदर पोस्ट...
मेरे पोस्ट में स्वागत है...
मैं ने भी तीन साल संगीत पर काफी ध्यान दिया था ... सुर पर पकड़ को ले कर मेरी संगीत टीचर मुझसे बेहद प्रसन्न रहती थी... आज भी याद आता है... जब सब मिल कर सितार बजाते ... और टेबल की थाप ... मेरे गीत नृत्य करते थे... मेरी आत्मा में आज भी संगीत ही संगीत है... लेकिन विज्ञान की पढाई और फिर मेडिकल की पढाई में सब भूल गयी ... सिर्फ बाथरूम सिंगर बन कर रह गयी... आपके क्लास में आ कर बहुत अच्छा लगा... आपकी कविताओं में भी संगीत का पुट उसे संगीतमय बना देता है... आभार आपका इस सुन्दर ब्लॉग के लिए...मैं ब्लॉग को फोलो नहीं कर सकती... फोलो करते हुवे जाने क्यों मेरा ब्लॉग वेब से गायब हो जाता है... बड़ी मुश्किल से इसे वापस लायी हूँ... लेकिन आपकी पोस्ट पर आती रहूंगी... सादर
ReplyDeleteसचमुच संगीत में अद्भुत शक्ति होती है.....
ReplyDeleteयह दस्तावेजी संकलन बहुमूल्य है....
सादर बधाई/आभार...
बहुत अच्छा लेख ....
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आइये स्वागत है,....
ReplyDeleteसमझने की कोशिश अनाड़ियों की तरह कर रहा हूँ गुरुश्री ...
ReplyDelete:-)
सुंदर अगले अंक का इंतज़ार रहेगा
ReplyDeleteमैं ने भी तीन साल संगीत पर काफी ध्यान दिया था ... सुर पर पकड़ को ले कर मेरी संगीत टीचर मुझसे बेहद प्रसन्न रहती थी... आज भी याद आता है... जब सब मिल कर सितार बजाते ... और टेबल की थाप ... मेरे गीत नृत्य करते थे... मेरी आत्मा में आज भी संगीत ही संगीत है... लेकिन विज्ञान की पढाई और फिर मेडिकल की पढाई में सब भूल गयी ... सिर्फ बाथरूम सिंगर बन कर रह गयी... आपके क्लास में आ कर बहुत अच्छा लगा... आपकी कविताओं में भी संगीत का पुट उसे संगीतमय बना देता है... आभार आपका इस सुन्दर ब्लॉग के लिए...मैं ब्लॉग को फोलो नहीं कर सकती... फोलो करते हुवे जाने क्यों मेरा ब्लॉग वेब से गायब हो जाता है... बड़ी मुश्किल से इसे वापस लायी हूँ... लेकिन आपकी पोस्ट पर आती रहूंगी... सादर
ReplyDeleteBy डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति on संधि प्रकाश राग से प्रकाशित ..गुंजित...धरा ....!!... on 11/21/11
क्लास में उपस्थिति दर्ज़ करते हुए यह भी अर्ज़ करना है कि इस विषय में जानकारी मिली।
ReplyDeleteBy मनोज कुमार on संधि प्रकाश राग से प्रकाशित ..गुंजित...धरा ....!!... on 11/20/11
पता नहीं कैसे कुछ कमेंट स्पैम में जा रहे हैं ...उन्हें पेस्ट कर रही हूँ ....
ReplyDeleteअनुपमा जी नमस्कार !
ReplyDeleteसबसे पहले मेरे ब्लॉग पे आने तथा नई पुरानी हलचल में लिंक देने के लिए आपको दिल से शुक्रिया !
ब्लॉग सम्बन्धी समस्या को लेकर आप चाहे तो वनीत नागपाल जी से इन लिंक http://cityjalalabad.blogspot.com/ पे जाकर ईमेल के माधाम से निदान पा सकती है ! वे एक कुशल आईटी टेक्नीशियन है !
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवाह... बहत खूब ..मुझे भी गाना अच्छा लगता है संगीत की शिक्षा तो नहीं ली पर सुरों से मिलने वाली तृप्ति को भली भांति समझती हूँ आपने बहत खूबसूरत वर्णन किया है ... बधाई
ReplyDeleteजानकारी के लिये धन्यवाद ।
ReplyDeletebahut achha lga ... ak prshn mn ko bar bar sochne pr vivash karta hai ...... akhir etna sb kuchh kaise lekar chalti hain ?
ReplyDeleteआप सभी का बहुत आभार ..!कृपया विभिन्न कड़ियों को बार बार पढ़ते रहें ....उसी से ही संगीत की कुछ बातें धीरे धीरे समझ पड़ने लगेंगी |
ReplyDeleteसतीश जी आभार आपका संगीत में रूचि लेने के लिए ...!!मुझे उम्मीद है आपको संगीत शास्त्र समझ में आने लगेगा ...!
नवीन जी आभार आपका संगीत पढ़ने के लिए ...जो पसंद की चीज़ है उसको लेकर चलने में आनंद ही आनंद है
Thank you for sharing The God Study
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