नमस्कार आपका स्वागत है

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Tuesday, November 11, 2014

सुनता है गुरु ज्ञानी ....

अनायास उदास है मन !!एक प्रश्न घूम रहा है मन मे .....!!
जी रहा किस हेतु जीवन ....जोड़ मन का सेतु रेमन ........!!
अविरल अश्रुधार बस रुकी हुई बहने को अँखियों के कोरों पर !!तोड़ सारे बांध ,बहने को .....आकुल .........कुछ कहने को व्याकुल ......
फिर भी आज मौन चुनता है ये मन !!
बस आँख बंद और बहता  जाता है कुमार जी की आवाज़ के साथ ......
एक अजीब सी विश्रांति पाता है ..........जाने किस लोक का भ्रमण है ये ....








Wednesday, October 1, 2014

संगीत का आह्लाद और ईश्वर की उपस्थिती ......!!




राग भैरवी में अत्यंत मधुर प्रस्तुति से ईश्वर नमन !!संगीत की साधना की पराकाष्ठा .....भक्ति और शक्ति से ओतप्रोत ....





ज़रूर सुनें
आभार .

Tuesday, August 26, 2014

राग भूपाली ......!!















आज राग भूपली की कुछ नायाब बन्दिशें हैं .....!!यह कल्याण ठाट का राग है !गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है |   जाती औडव है क्योंकि आरोह-अवरोह में सिर्फ पाँच स्वरों का प्रयोग है |सोच रही हूँ भूपाली  की बहुत सारी बन्दिशें सुना कर थोड़ा राग से आपको अवगत कराऊँ ....!!

आरोह: सा रे ग प ध सां

अवरोह:  सां  ध प ग रे सा ॰    








    




Tuesday, August 19, 2014

सखी साजन अबहूँ न आए ....!!




हृदय मे माँ की याद लिए ,आज इस मंदिर में अपने स्वरों का दीप प्रज्ज्वलित कर रही हूँ !!शांत ...नीरव ....एकांत है वातावरण ..........

With special thanks to my friend Debjeet De Sarkar and his lovely daughter Sheuli ......
आप सब की फरमाइश पर .....'Colours of music' से Ashish Raiआशीष भाई का लिखा दीपक शर्मा जी द्वारा संगीत बद्ध किया गया ये गीत .....''सखी साजन अबहूँ न आए .....


Friday, May 2, 2014

Friday, April 25, 2014

संतूर पर राग अहिरभैरव ....!!

क्षमा कीजिएगा बहुत समय बाद पोस्ट डाल  रही हूँ !

राग अहिरभैरव पर बहुत सुंदर कोम्पोज़ीशन सुनिए ,और साथ ही पंडित शिवकुमार शर्मा जी व संतूर के विषय मे कुछ जानकारी भी ....








आभार.

Thursday, February 6, 2014

संगीत और छन्दशास्त्र ....(2)



जिस पदबंध में यति,छेद इत्यादि नियत प्रमाण के आधार पर 'पाद 'बनते हैं ,तभी वह 'निबद्ध 'और पद्य कहलाता है,अन्यथा वह गद्य की श्रेणी में आता है ,जिसमे नियमित लय या गति नहीं होती |अर्थात गति के  नियमित विभाजन से छंद बनता है |
यति का अर्थ विराम है ....
छेद का अर्थ जैसे गणित में भाजक ,झटका या रुकावट से है |लय के भेद को छेद कहा गया है |
पाद अर्थात चरण ...
यहाँ पर मैं उस छन्दशास्त्र की बात कर रही हूँ जो वेदों में दिया गया है |जिसकी मात्रा  भी प्रत्येक पद में बराबर होती है |सोचकर अत्यंत खेद भी होता है की हमारे पास जो अनमोल खजाना है वेदों के रूप में ,उसे हम आसानी से विलुप्त होने दे रहे हैं |संगीत की भाषा कई बार बड़ी अटपटी लगती है लेकिन ये किताबों में लिखा गया शास्त्र है और संगीत से जुड़े लोगों को अटपटा नहीं लगता |कोशिश करती हूँ जो भी संगीत का शास्त्र  उपलब्ध हो ,उसका सरलीकरण कर के यहाँ लिख सकूँ ताकि कुछ  नया जानने को मिले संगीत के विषय मे पढ़ने वालों को |और संगीत के प्रति रुचि भी बढ़े|
वेदों के छह अंग हैं |
शिक्षा ,कल्प,निरुक्त,व्याकरण,ज्योतिष और छंद |वेदों को छंदों में ही लिखा गया है इसलिए उन्हें हम छंदस भी कहते हैं |

अक्षरों को एक निश्चित क्रम तथा संख्या में व्यवस्थित करने से रचना में संगीतात्मकता , लयात्मकता तथा सहज प्रवाह उत्पन्न होता है |

हृस्व-दीर्घ या लघु-गुरु ईकाइयों के आधार पर लय की विशेष आकृति से छंद के रूप का निर्माण होता है |लय का प्रयोजन काल का नियमित विभाजन मात्र है |जबकि छंद का प्रयोजन विभाजित काल को निश्चित स्वरूप और आकार देना है |लय के निश्चित स्वरूप से ही छंद साकार होता है |जैसे राम राम राम राम या सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम अथवा जय जय राम जय जय राम अलग अलग लय मे दिखाई पड़ते हैं |लय के इन्हीं विभिन्न आकारों के आधार पर भाषाशास्त्र मे विभिन्न छंदों का नामांकरण कर दिया गया है |
छंद  का अनुभव केवल सुनने से संबंध रखता है |क्योंकि वह शब्द रचना ,स्वर रचना या पद रचना के अंदर रहने वाला विशेष तत्व है |अक्षर स्वर और पद की उलट पुलट से छंद का स्वरूप बदलता रहता है |शब्दात्मक छंद और स्वरात्मक छंद में एक विशेष अंतर यह होता है कि शब्दों का विशेष नियोजन निश्चित छंद का निर्माण करता है परंतु स्वर के प्रवेश द्वारा उस छंद का स्वरूप बदला जा सकता है |तब उसे संगीतात्मक छंद कहते हैं ,जिसका आधार शब्द न होकर स्वर होते हैं |
हिन्दी काव्य में शब्दात्मक काव्य की बहुलता मिलती है और फिल्मी काव्य अधिकांश रूप में संगीतकमक छंद पर निर्भर रहता है |इसलिए जब किसी फिल्मी गाने को बिना धुन के काव्य रूप में बोला जाए तो उसमें शब्दों की कोई निश्चित लय दिखाई नहीं पड़ती |उर्दू शायरी में भी साहित्यिक छंद की अपेक्षा संगीतात्मक छंद का अधिक प्रयोग पाया जाता है |
छंद कहीं भी हो ,आनंद की अनुभूति कराने मे समर्थ होता है |स्वर और शब्द इंद्रियगोचर हैं |लेकिन लय और छंद की केवल सूक्ष्म मानस अनुभूति ही होती है |इसलिए तबला ,सितार जैसे वाद्य और नृत्य के पदाघात हमें अपने आघातों द्वारा लय के रस में डुबाते हुए आनंद प्रदान करते हैं |


यहाँ सुनिए राहुल देशपांडे जी का गाया हुआ -राग अहिरभैरव ...प्रातः का राग है ....
                                                                                                                                     


....किस प्रकार संगीत एकसूत्र में पिरोता है ....ईश्वर की उपस्थिती अनुभूत कीजिये ....
अद्भुत आह्लादकारी प्रस्तुति है ....
यहाँ उसका दूसरा भाग ......


Thursday, January 2, 2014

राग देस ....!!



नींद जैसे कोसों ....मीलों ...दूर है ....!!..रात गहन अंधकार में डूब चुकी है ...... ....कोहरे से ढँकी ....!!नीरवता गहरा रही है ...!!किन्तु स्वर अपना कार्य नहीं भूलते .....ओस की तरह ...ओस के मोती  धीरे धीरे जमते  हुए फूलों पर ...शास्त्रीय संगीत में इतनी दिव्यता है स्वर अपना अस्तित्व  कैसे भूल सकते हैं भला ...!!....राग देस तो है ही मध्य रात्रि का राग |किन्तु प्रकृति चंचल है ........कुछ छटपटाहट  इस तरह है कि तरंगित होना है ....मन को अंधकार में डूबने नहीं देना है ...!!जाने कैसी ध्वनि है मन का सारा क्लेश हर ले रही है ......सूर्य के उज्ज्वल प्रकाश की राह जो तकनी है .....राग देस सुनते सुनते ही सुबह की आमद सी होती प्रतीत होती है ....

नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ ....राग देस सुनिए ...
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इसे भी सुनिए दिव्य अनुभूति हो रही ....लगता है कृष्ण भगवान की बांसुरी सुन रहे हैं  ....
ईश्वर की उपस्थिती इस तरह महसूस हो रही है ...