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Tuesday, August 26, 2014

राग भूपाली ......!!















आज राग भूपली की कुछ नायाब बन्दिशें हैं .....!!यह कल्याण ठाट का राग है !गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है |   जाती औडव है क्योंकि आरोह-अवरोह में सिर्फ पाँच स्वरों का प्रयोग है |सोच रही हूँ भूपाली  की बहुत सारी बन्दिशें सुना कर थोड़ा राग से आपको अवगत कराऊँ ....!!

आरोह: सा रे ग प ध सां

अवरोह:  सां  ध प ग रे सा ॰    








    




Sunday, March 4, 2012

हार्मनी ....और....मेलोडी

हार्मनी :  दो या दो से अधिक स्वरों को एक साथ बजने से उत्पन्न मधुर भाव को हार्मनी या स्वर संवाद कहते हैं ।उदाहरण के लिए सा,ग,प या ... सां स्वरों को एक साथ बजने से हार्मनी की रचना होगी।पाश्चात्य संगीत हार्मनी पर ही आधारित है ।


मेलोडी :  स्वरों के क्रमिक उच्चारण या वादन को मेलोडी कहा गया है ।जैसे सा,ग,प आदि एक दुसरे के बाद गाये  बजाये जाएँ तो मेलोडी किन्तु यदि इन्हें एक साथ बजाय जाये तो सम्मिलित स्वर हार्मनी कहलायेंगे ।हमारी हिन्दुस्तानी संगीत मेलोडी प्रधान है क्योंकि क्रमिक स्वर उच्चारण इसकी विशेषता है ।
  • मेलोडी व्यक्ति की आतंरिक भावनाओं को और हार्मनी बाह्य वातावरण को व्यक्त करने में सफल होती है । 
  • व्यक्तिगत भावों के लिए मेलोडी और सामूहिक भाव प्रदर्शन के लिए हार्मनी उपयुक्त है ।जैसे -एक व्यक्ति जब अपनी माँ से विदा मांग रहा है तो उसके मनोभावों को व्यक्त करने के लिए मेलोडी उपयुक्त होगी ।किन्तु एक सुंदर दृश्य जैसे -नदी का किनारा ,पक्षियों का कलरव ,डूबता सूर्य,दूर से आती हुई संगीत-ध्वनी आदि को व्यक्त करने में हार्मनी उपयुक्त होगी ।

Saturday, December 10, 2011

जीवन से कैसे जुड़ा शास्त्रीय संगीत ...!!

शास्त्र में उस स्वर सन्दर्भ को राग का नाम दिया गया है जो मधुर स्वर और वर्ण से विभूषित होकर ह्रदय का रंजन करे| किसी एक स्वर से मन रंजित  नहीं होता |जब तक अन्य स्वरों का सहयोग न हो ..तब तक उसमे भाव या ..रस की उत्पत्ति नहीं होती |जब अनेक सुर मिलकर किसी धुन में बंध जाते हैं ,या किसी एक राह पर चलते हैं ...तो वह धुन राग का संचार करने में समर्थ होती है |उसी धुन को राग कहते है |अब हम राग को ''चुने हुए सुरों की रंगोली बनाते हुए किसी राह पर चलना ''...इस तरह की कल्पना भी दे सकते हैं|

राग में निम्नलिखित बातों का होना ज़रूरी है ...
१-राग किसी ठाट से उत्पन्न होनी चाहिए |
२-ध्वनी  की एक विशेष रचना हो |
३-उसमे स्वर तथा वर्ण हों
४-रंजकता यानि सुन्दरता हो |
५-राग में कम से कम पञ्च स्वर आवश्य होने चाहिए |
६- राग में एक ही स्वर के पास-पास उपयोग को शास्त्रकारों ने विरोध किया है |जैसे  ग और ग ,
७- राग में आरोह-अवरोह होना आवश्यक है |क्योंकि उसके बिना राग को पहचाना नहीं जा सकता |
८-किसी भी राग से षडज स्वर वर्जित नहीं होता |
९-मध्यम और पंचम दोनों एक साथ कभी वर्जित नहीं होते |एक न एक स्वर राग में होगा ही |
१०-राग में वादी-संवादी स्वर ज़रूर होना चाहिए |

अब साधारण भाषा में ये कहा जा सकता है कि बहुत सरे नियम को मानते हुए जब हम स्वरों का प्रयोग करते हैं ,तो राग कि उत्पत्ति होती है | तब ही बनती है ऐसी रचना जो मन रंजित करे |बिना कुछ नियम निभाए ,या बिना कुछ बंधन में बंधे ........बिना अथक प्रयास के ....राग की संरचना  नहीं होती ...!!


इसलिए कहते हैं  जीवन से जुड़ी बहुत सारी बातें शास्त्रीय संगीत बताता है ..!और  हमें  अपनी  सभ्यता  और  संस्कृति  से  जोड़े  रखता  है  ...!


*षडज-सा  स्वर को संगीत की भाषा में षडज कहते हैं .
रिशब- रे
गंधार -ग
मध्यम -म
पंचम -प
धैवत -ध
निषाद -नि 

Sunday, November 6, 2011

कठिनाईयों से लड़ता ...शास्त्रीय संगीत का जीवन ....!!

 एक जादू की तरह कार्य करता है शास्त्रीय संगीत|जोड़ देता है मन के कोमल तारों को प्रभु से |देता है एक ऐसा नशा जो चढ़ जाए तो कभी उतरता ही नहीं है |किन्तु उस राह पर चलना ....संगीत से जुड़े रहना ....बहुत आसान नहीं है |एक तरह का योग है ....एक साधना है ...!!कम से कम १०-१२ वर्ष तक संगीत लगातार सीखने के बाद कुछ समझ में आती  है इसकी भाषा |मेरी समझ से छोटे बच्चों के लिए संगीत की शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए|जो लोग बचपन से ही इस विधा से जुड़े रहते हैं वे बहुत खुशकिस्मत होते हैं क्योंकि उनके दिमाग की कल्पनाशक्ति बहुत बढ़ जाती है और याददाश्त भी तेज़ हो जाती है |आजकल जिसे हम  ''multitasking '' कहते हैं वो संगीत की साधना से आसान हो जाता है |इस व्यस्त जीवन में ,आपाधापी में, एक रूचि का होना अनिवार्य है जो आपको हमेशा सकारात्मक उर्जा देती रहे |आजकल ''life is on a fast track'' इसलिए संगीत की साधना की ओर किसी का ध्यान  नहीं जाता|सभी को लगता है थोड़ा सा सीख कर कैसे जल्दी-जल्दी टी.वी पर आया जाये |कला का ज्ञान लेना कम  लोग चाहते  हैं | आज इन्हीं धूमिल होती हुई परम्पराओं को जीवित रखने की आवश्यकता है |गागर भरने के बाद छलकने ही लगती है ....!!पर धैर्य से हमें गागर भरने का इंतज़ार करना होता है |घरों घर शास्त्रीय संगीत का दीप प्रज्ज्वलित हो यही कोशिश  है ...!!