शास्त्र में उस स्वर सन्दर्भ को राग का नाम दिया गया है जो मधुर स्वर और वर्ण से विभूषित होकर ह्रदय का रंजन करे| किसी एक स्वर से मन रंजित नहीं होता |जब तक अन्य स्वरों का सहयोग न हो ..तब तक उसमे भाव या ..रस की उत्पत्ति नहीं होती |जब अनेक सुर मिलकर किसी धुन में बंध जाते हैं ,या किसी एक राह पर चलते हैं ...तो वह धुन राग का संचार करने में समर्थ होती है |उसी धुन को राग कहते है |अब हम राग को ''चुने हुए सुरों की रंगोली बनाते हुए किसी राह पर चलना ''...इस तरह की कल्पना भी दे सकते हैं|
राग में निम्नलिखित बातों का होना ज़रूरी है ...
१-राग किसी ठाट से उत्पन्न होनी चाहिए |
२-ध्वनी की एक विशेष रचना हो |
३-उसमे स्वर तथा वर्ण हों
४-रंजकता यानि सुन्दरता हो |
५-राग में कम से कम पञ्च स्वर आवश्य होने चाहिए |
६- राग में एक ही स्वर के पास-पास उपयोग को शास्त्रकारों ने विरोध किया है |जैसे ग और ग ,
७- राग में आरोह-अवरोह होना आवश्यक है |क्योंकि उसके बिना राग को पहचाना नहीं जा सकता |
८-किसी भी राग से षडज स्वर वर्जित नहीं होता |
९-मध्यम और पंचम दोनों एक साथ कभी वर्जित नहीं होते |एक न एक स्वर राग में होगा ही |
१०-राग में वादी-संवादी स्वर ज़रूर होना चाहिए |
अब साधारण भाषा में ये कहा जा सकता है कि बहुत सरे नियम को मानते हुए जब हम स्वरों का प्रयोग करते हैं ,तो राग कि उत्पत्ति होती है | तब ही बनती है ऐसी रचना जो मन रंजित करे |बिना कुछ नियम निभाए ,या बिना कुछ बंधन में बंधे ........बिना अथक प्रयास के ....राग की संरचना नहीं होती ...!!
इसलिए कहते हैं जीवन से जुड़ी बहुत सारी बातें शास्त्रीय संगीत बताता है ..!और हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति से जोड़े रखता है ...!
*षडज-सा स्वर को संगीत की भाषा में षडज कहते हैं .
रिशब- रे
गंधार -ग
मध्यम -म
पंचम -प
धैवत -ध
निषाद -नि
राग में निम्नलिखित बातों का होना ज़रूरी है ...
१-राग किसी ठाट से उत्पन्न होनी चाहिए |
२-ध्वनी की एक विशेष रचना हो |
३-उसमे स्वर तथा वर्ण हों
४-रंजकता यानि सुन्दरता हो |
५-राग में कम से कम पञ्च स्वर आवश्य होने चाहिए |
६- राग में एक ही स्वर के पास-पास उपयोग को शास्त्रकारों ने विरोध किया है |जैसे ग और ग ,
७- राग में आरोह-अवरोह होना आवश्यक है |क्योंकि उसके बिना राग को पहचाना नहीं जा सकता |
८-किसी भी राग से षडज स्वर वर्जित नहीं होता |
९-मध्यम और पंचम दोनों एक साथ कभी वर्जित नहीं होते |एक न एक स्वर राग में होगा ही |
१०-राग में वादी-संवादी स्वर ज़रूर होना चाहिए |
अब साधारण भाषा में ये कहा जा सकता है कि बहुत सरे नियम को मानते हुए जब हम स्वरों का प्रयोग करते हैं ,तो राग कि उत्पत्ति होती है | तब ही बनती है ऐसी रचना जो मन रंजित करे |बिना कुछ नियम निभाए ,या बिना कुछ बंधन में बंधे ........बिना अथक प्रयास के ....राग की संरचना नहीं होती ...!!
इसलिए कहते हैं जीवन से जुड़ी बहुत सारी बातें शास्त्रीय संगीत बताता है ..!और हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति से जोड़े रखता है ...!
*षडज-सा स्वर को संगीत की भाषा में षडज कहते हैं .
रिशब- रे
गंधार -ग
मध्यम -म
पंचम -प
धैवत -ध
निषाद -नि
राग का अनुराग।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़ कर।
ReplyDeleteसादर
कल 12/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अनुपमा जी और बेसिक पर जाईये प्लीज...षडज क्या है ठाट क्या है आदि आदि ...आभार!
ReplyDeleteअनुपमा जी,..शास्त्रीय संगीत की अनुपम जानकारी,.बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी नई रचना,...
नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मात्रभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूलसे हमने शासन देडाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,
में आपका इंतजार है
अरविन्द जी बहुत आभार संगीत में रूचि लेने के लिए .*षडज-सा स्वर को संगीत की भाषा में षडज कहते हैं .
ReplyDeleteरिशब- रे
गंधार -ग
मध्यम -म
पंचम -प
धैवत -ध
निषाद -नि
ठाट के बारे में विस्तृत जानकारी मैंने पहले की पोस्ट में दी है |आपको पहले की पोस्ट पढ़ना पड़ेगी तो विस्तार से ठाट समझ में आ जायेगा |
कृपया अन्य किसी विषय पर भी जानकारी चाहिए हो ज़रूर पूछ लीजिये .
आभार.
अनुपमा...
ReplyDeleteशुक्रिया आपका इस ब्लॉग तक मुझे पहुंचाने के लिए..!!मुझे "नयी पुरानी हलचल " में शामिल करने के लिए...!!
लगा अपनी कोर्स की पुस्तक पलट रही हूँ फिर एक बार....
जीवन का प्रत्येक क्षण संगीतमय हो।
ReplyDeleteसुंदर आलेख।
bahut sunder aur prabhavi prastuti
ReplyDelete.शास्त्रीय संगीत की अनुपम जानकारी,अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteयह ठाट क्या होता है अनुपमा जी.
ReplyDeleteराग के बारे में आपने बहुत सुन्दर जानकारी दी है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
राकेश जी सितम्बर के महीने में स्वरोज सुर मंदिर-३ और (४)में मैंने इसके बारे में लिखा है ठाट क्या है इसकी विस्तृत जानकारी दी है ...उसमे पढ़ लीजियेगा |
ReplyDeleteअनूठा ब्लॉग अनूठी रचना ....
ReplyDeleteआभार !
bahut sundar... bahut sundar jaankaari... aur yah bhi ki niyamo ka paalan kare to sundar sageet banta hai..jiwan bhi sangeet kee tarah niyam me bandhne se ban jaata hai...
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन अनुपमा मैडम
ReplyDeleteकक्षा में देर से उपस्थिति के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।
ReplyDeleteआज के सबक याद कर लिया।
बहुत सरे नियम को मानते हुए जब हम स्वरों का प्रयोग करते हैं ,तो राग कि उत्पत्ति होती है | तब ही बनती है ऐसी रचना जो मन रंजित करे |बिना कुछ नियम निभाए ,या बिना कुछ बंधन में बंधे ........बिना अथक प्रयास के ....राग की संरचना नहीं होती ...!!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
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