अरुण कमल .. |
आज स्वरोज सुर मंदिर की दूसरी कड़ी लिख रही हूँ |राग यमन का परिचय आपको दिया था |राग यमन सुनते जाइये |आज कुछ मूलभूत बातें आपको बताती हूँ |
सबसे पहले स्वर क्या है ?
नियमित आन्दोलन -संख्या वाली ध्वनी स्वर कहलाती है|यही ध्वनी संगीत के काम आती है ,जो कानो को मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्न करती है |इस ध्वनी को संगीत की भाषा में नाद कहते हैं |इस आधार पर संगीतोपयोगी नाद 'स्वर'कहलाता है अब आप समझ गए होंगे कि संगीत के स्वर और कोलाहल में फर्क है |और यहाँ संगीत विज्ञान से जुड़ गया है |संगीत में सातों स्वरों के नाम इस प्रकार हैं ....
सा-षडज
रे-रिशब
ग-गंधार
म-मध्यम
प-पंचम
ध-धैवत
नि-निषाद
अब हम आरोह- अवरोह पर आते हैं |जब हम स्वरों को गाते हैं तो स्वरों के चढ़ते हुए क्रम को आरोह कहते हैं | जैसे :
आरोह :सा ,रे, ग,म,,प ,ध,नि ,सं||
उसी तरह उतरते हुए क्रम को अवरोह कहते हैं |जैसे :
अवरोह :सां,नि ,ध ,प,म ,ग ,रे ,सा ||
अलंकार: स्वर स्थान समझने के लिए ..या यूँ कहूं की ये जानने के लिए की सा से रे ,रे से ग ,ग से म क्रमशः स्वरों की दूरी परस्पर कितनी है हमें अलंकारों का अभ्यास करना पड़ता है |जैसे :
आरोह :सारेग ,रेगम ,गमप,मपध ,पधनी ,धनिसां ||
अवरोह :सांनिध ,निधप,धपम ,पमग ,मगरे ,गरेसा ||
संगीत का प्रभाव :
संगीत से केवल आनंदानुभूति ही नहीं होती |ध्वनियाँ मानसिक स्थितियों की भी सूचक होती हैं |साथ ही ये हमारे मनोभावों को भी प्रभावित करतीं हैं |संगीत हमारी आत्मा में भक्तिमय अनुभूतियाँ भर देता है |भक्ति भी एक प्रकार का आवेग है जो हमारी आत्मा को प्रभावित करता है |
संगीत में एक गति है |और हमारी क्रियाएं भी गत्यात्मक हातीं हैं |दोनों में सदृश्य होने के कारण ही मात्र ध्वनिमय राग -रागिनियाँ हमारी आत्मा को प्रभावित कर लेती हैं |जो संगीत हम आत्मसात कर लेते हैं वो ईश्वरीय बन कर सदा सदा ...हमारे पास ..हमारे साथ ही रहता है|प्राकृतिक गति हमें आनंद देती है |बच्चे जन्म से ही इससे प्रभावित हो जाते हैं |राग और लय में प्रभावित करने की शक्ति उनकी नियमितता के कारण ही आती है ,क्योंकि असंतुलन में संतुलन ,अव्यवस्था में व्यवस्था और असामंजस्य में सामंजस्य लेन की अपेक्षा नियमितता या संयम से हम अधिक प्रभावित होते हैं|स्वर और लय का संयम तथा सामंजस्य ही हमें प्रभावित करता है |
संगीत हमें आनंद ही नहीं देता बल्कि एक जीवन शैली भी देता है ..!!
क्रमशः ......
अलंकार: स्वर स्थान समझने के लिए ..या यूँ कहूं की ये जानने के लिए की सा से रे ,रे से ग ,ग से म क्रमशः स्वरों की दूरी परस्पर कितनी है हमें अलंकारों का अभ्यास करना पड़ता है |जैसे :
आरोह :सारेग ,रेगम ,गमप,मपध ,पधनी ,धनिसां ||
अवरोह :सांनिध ,निधप,धपम ,पमग ,मगरे ,गरेसा ||
स्वरों से समूह को ले कर आरोह और अवरोह करते हैं विभिन्न अलंकार |
ये कई प्रकार से किये जा सकते हैं |
संगीत का प्रभाव :
संगीत से केवल आनंदानुभूति ही नहीं होती |ध्वनियाँ मानसिक स्थितियों की भी सूचक होती हैं |साथ ही ये हमारे मनोभावों को भी प्रभावित करतीं हैं |संगीत हमारी आत्मा में भक्तिमय अनुभूतियाँ भर देता है |भक्ति भी एक प्रकार का आवेग है जो हमारी आत्मा को प्रभावित करता है |
संगीत में एक गति है |और हमारी क्रियाएं भी गत्यात्मक हातीं हैं |दोनों में सदृश्य होने के कारण ही मात्र ध्वनिमय राग -रागिनियाँ हमारी आत्मा को प्रभावित कर लेती हैं |जो संगीत हम आत्मसात कर लेते हैं वो ईश्वरीय बन कर सदा सदा ...हमारे पास ..हमारे साथ ही रहता है|प्राकृतिक गति हमें आनंद देती है |बच्चे जन्म से ही इससे प्रभावित हो जाते हैं |राग और लय में प्रभावित करने की शक्ति उनकी नियमितता के कारण ही आती है ,क्योंकि असंतुलन में संतुलन ,अव्यवस्था में व्यवस्था और असामंजस्य में सामंजस्य लेन की अपेक्षा नियमितता या संयम से हम अधिक प्रभावित होते हैं|स्वर और लय का संयम तथा सामंजस्य ही हमें प्रभावित करता है |
संगीत हमें आनंद ही नहीं देता बल्कि एक जीवन शैली भी देता है ..!!
क्रमशः ......
सधी हुई भाषा में संगीत की अच्छी जानकारी
ReplyDeleteआशा
श्री गुरुदेवाय नम:
ReplyDeleteईश्वर मुझे सुबुद्धि दे कि मैं आपका शिष्य बन पाऊं.
अब तो कभी नही कहूँगा 'सा रे गा मा पा..'
नही तो आपकी डांट पड़ सकती है न.
अलंकार और सरगम में क्या भेद है जी.
बहुत सुंदर,
ReplyDeleteक्या कहने
अच्छी जानकारी
राकेश जी नम्र नमस्कार ,
ReplyDeleteमाफ़ कीजियेगा ,आप बड़े हैं फिर भी मैंने आपको स्वर के ठीक उच्चारण के लिए टोका था |बहुत अल्प ज्ञान है मुझे संगीत का किन्तु जो भी मुझे स्वयं आता है मैं उसे बाँटना चाहती हूँ इसी उद्देश्य से संगीत
के विषय में लिखती हूँ |
सा ,रे ,ग ,म ,प ...ये सरगम है किन्तु जब इसका एक व्यवस्थित प्रारूप लेकर आरोह-अवरोह करते हैं तो वो अलंकार कहलाता है ...आशा करती हूँ समझ में आ गया होगा
when the sargam is taken in a definite pattern ,it becomes alankar.
'संगीत हमें आनंद ही नहीं देता बल्कि एक जीवन शैली भी देता है ..!!'
ReplyDeleteसच है...!
आप बहुत ही अच्छे से समझातीं हैं,अनुपमा जी.
ReplyDeleteसुन्दर जानकारी देने के लिए बहुत बहुत आभार आपका.
इसका मतलब किसी गाने को संगीत में ढालने के लिए
अलंकारों का ही प्रयोग किया जाता है.
अच्छा लगा | आदर्श शिक्षक की तरह आपने प्रकाश डाला है | थोड़ी बहुत टाइपिंग की ग़लतियां तो रह ही जाती हैं | संगीत के जिज्ञासुओं की पिपासा को शांत करने के लिए आपका प्रयास बहुत बढ़िया लगा | मेरी भी संगीत में अटूट रूचि है | मैं आपका लेख पढ़ते रहने की कोशिश करूंगा |
ReplyDeleteबलदेव साँख्यायन, दिल्ली
आदरणीय मेम,
ReplyDeleteआपको सादर प्रणाम
मैं श्रवण झा वेदिक शास्त्र पुराण पर शोध कर रहा हूँ । उस शोध में एक जगह स्वर की व्यख्या की गयी है किन्तु सुर ज्ञान नहीं होने के कारण उसे ठीक-ठीक समझने में असर्मथ महसुस कर रहा हूँ । सुर का मतलब समझने के लिए इंटनेट पर सर्च करते हुए आपके ब्लॉग पर आया जिसमे शास्त्र के अनुसार ही कुछ बाते बताई गयी है, उसको आप ब्लॉग के द्वारा अतिसुन्दर ढंग से बतला रही है । जिसे पढ़कर मन में जिज्ञासा जागा है की मेरे कुछ जिज्ञासा का समाधान आपके द्वारा हो सकता है । इस कारण यह मेल आपको किया है । क्या मैं आदरणीय मेम से स्वर के ऊपर कुछ जिज्ञासा रख सकता हूँ ?
अगर आपके पास कुछ समय हो तो मुझे इन्टरनेट के माध्यम से मेरी जिज्ञासा को शांत करने में हमारी सहायता करे । मैं आपका अति आभारी रहूंगा ।
श्रवण झा
दिल्ली
बहुत सुंदर व्यख्या मैडम ,मैने अभी अभी ब्लोगिग सुरु किया है, कुछ सुझाव होगाhttps://bheemi.blogspot.com/2018/12/blog-post_31.html?m=1 तो अवश्य प्रेसित करें।
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