अरुण कमल |
ठाट :कल्याण
जाती :सम्पूर्ण
समय :रात्री का प्रथम प्रहर
वादी :ग(गंधार)
संवादी:नि (निषाद)
आरोह: नि रे ग म प धनि सां
अवरोह: सां नि ध प म ग रे सा
राग कल्याण की हम चर्चा कर रहे थे|इसमें तीव्र मध्यम का प्रयोग किया जाता है|कई बार पंचम और षडज वर्जित करके गंधार और निषाद का महत्व राग की विशेषता के रूप में दिखाया जाता है |यही सच्चा यमन है |
जैसे शुरुआत में ....नि रेग , ...मधनिसां ..
यहाँ ये भी बताना चाहूंगी की प्रत्येक राग में जो मुख्य स्वर होता है वो -वादी और दूसरा मुख्य स्वर -संवादी कहलाता है |यमन में ग-वादी है और नि-संवादी है |
आज यमन की ही चर्चा करते करते मैं ये भी बताना चाहूंगी की किसी भी राग को गाने के लिए कम से कम पांच स्वरों का होना आवश्यक है |इसी के आधार पर हम राग की जाती निश्चित करते हैं |सातों स्वर लगाने पर सम्पूर्ण जाती....छः स्वर लगाने पर षाडव जाती और पांच स्वर लगाने पर औडव जाती हो जाती है |तो राग की जाती तीन हुईं :
1-संपूर्ण
2-षाडव
3-औडव
आरोह -अवरोह देखते हुए अब कुल नों जातियां बनातीं हैं:
1-संपूर्ण-संपूर्ण
2-संपूर्ण-षाडव
3-संपूर्ण-औडव
4-षाडव-संपूर्ण
5-षाडव-षाडव
6-षाडव-औडव
7-औडव- संपूर्ण
8-औडव-षाडव
5-षाडव-षाडव
6-षाडव-औडव
7-औडव- संपूर्ण
8-औडव-षाडव
9-औडव-औडव
ये राग के बारे में बहुत मूलभूत बातें हैं इन्हें समझाना बहुत ज़रूरी है |अब आप समझ ही गए होंगे की राग यमन या कल्याण सम्पूर्ण जाती का राग है |इसमें सातों स्वरों का प्रयोग किया जाता है |
बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने राग यमन के बारे में ! इसके साथ ही इसके आरोह, अवरोह और सरगम गीत भी दे देतीं तो और आनंद आ जाता ! मुझ जैसे पिपासु पाठक, जो अब सब कुछ भूल चुके हैं, इन्हें गुनगुनाते भी और बच्चों को सिखाते भी ! इतनी महत्वपूर्ण जानकारी के लिये आपका आभार ! शिक्षक दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteसाधना जी शुक्रिया आपके सुझाव के लिए ...
ReplyDeleteउस पर अमल कर दिया है ....
समझने का प्रयत्न कर रहे हैं।
ReplyDeletewow... Anupama ji mujhe meri music teacher yaad aa gai... aur aaj Teacher's day k din unko yaad dilane ke liye bahut-bahut shukriya... :)
ReplyDeleteआलेख
ReplyDeleteजानकारी से भरपूर है ... !
अभिवादन .
मुझे अपने स्कूल की म्यूजिक क्लास याद आ गई.अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना.
ReplyDeletevery good information for music lovers !!!!! wish u all the best !!!!!!!
ReplyDeletebahut hi gyanverdhal lekh .kosis ker raha hu sayed mai bhi kuch sammj jau...........aabhar
ReplyDeleteअनुपमा हमारी जानकारी बढ़ाने के लिया बहुत धन्यवाद . अगर मैं सही हू तो
ReplyDelete"जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात "
"इस मोड से जातें हैं "
"जब दीप जले आना जब साँझ ढले जाना "
"अहसान तेरा होगा मुझपर "
ये सुबह राग यमन पर ही आधारित हैं .
मीना ....आभार इस ब्लॉग पर आने का भी और इतनी उम्दा जानकारी देने का भी ...बिलकुल ठीक कहा तुमने ...जब दीप लाले आना में तो सरगम भी ली है ..और ये संध्या दीप जलने के समय का ही राग है ...शाम सात बजे का .....
ReplyDeleteआप सभी का भी आभार ...इस ब्लॉग को पढ़ कर आपने विचार देने के लिए ...मैं मानती हूँ संगीत चर्चा कठिन है...
ReplyDelete@ Pravin ji ..बार बार पढ़ने से कुछ बातें समझ में आने लगेंगी ...इसीलिए इसे करत की विद्या कहा जाता है ...बहुत लगन चाहिए ...आपका आभार संगीत चर्चा के इस ब्लॉग को अपना समय देने के लिए ..आगे भी देते रहिएगा...
Thanks to Pooja ji ,Danish ji,Shikha ji ,Amarendra ji and my dear friend Suman ...
ReplyDeleteThanks for taking interest in the blog ....
मुझे बहुत अफ़सोस होता है कि संगीत की मेरी शिक्षा अधूरी रह गयी...
ReplyDeleteकक्षा में राग यमन और भैरव मुझे ज्यादा ही भाते थे और अभ्यास में इन्हीं पर डटे रहने के कारण कई बार गुरूजी की झिड़की भी मिलती थी कि बाकी रागों से क्या दुश्मनी है.... ::)), पर तीव्र 'म' के ऊपर जब अंगुलियाँ वायलिन के तारों में प्रकम्पित होती थीं तो एक अजाब उत्साह महसूस होता था... इसी प्रकार जब कोमल 'ध' पर उंगली फिसलती थी तो मन में मिठास भर जाया करता था.... सचमुच संगीत प्राणी को दूसरी ही दुनिया में ले जाता है....
चलिए अब यहाँ आपके साथ आगे सीखने और समझने का प्रयास करता चलता हूँ...
सादर...
संजय जी ..आभार सुर मंदिर में आने का ...!संगीत में सभी की रूचि और ज्ञान बढे यही प्रयास है मेरा क्योंकि हम अपनी संस्कृति और सभ्यता से हर उस चीज़ से दूर होते जा रहे हैं जो वाकई हमें शांति प्रदान करती हैं...!!हाँ सच में संगीत से ज्यादा शांति प्रदायक और कुछ नहीं है ....!!
ReplyDeleteकक्षा में देरी से आने के लिए सॉरी।
ReplyDeleteआज का पाठ याद कर लिया।
कोई बात नहीं ...देर आये दुरुस्त आये मनोज जी ...देर से ही सही ...पाठ याद करना ज्यादा ज़रूरी है ...!!आभार आपका ..
ReplyDeleteइस ब्लॉग को पढ़ने का अपना ही मज़ा है बहुत ध्यान से समझने की कोशिश कर रहा हूँ।
ReplyDeleteसादर
आभार यशवंत.....कोशिश करना ही तो ज़रूरी है ...जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है ....हाँ संगीत में मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है ...दीदा लगाना पड़ता है ....बार बार पढना पड़ेगा ...तभी कुछ भी समझ में आएगा ....aap prayas karte rahen ...samajh aa jayega chinta n karen..
ReplyDeleteजी यहां मैं पहली बार आया हूं, ईमानदारी से कहूं तो ये मेरा विषय नहीं है, राग के बारे में बहुत बेसिक जानकारी ही मुझे है। फिर भी मुझे पढने मे वाकई आनंद आया, अच्छी जानकारी है।
ReplyDeleteअनुपमा हमारी जानकारी बढ़ाने के लिया बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteमहेंद्र श्रीवास्तव जी संजय भास्कर जी ...आप दोनों का आभार इस ब्लॉग पर आने के लिए ....
ReplyDeleteराग यमन के बारे में इतनी खूबसूरत जानकारी का बहुत - बहुत शुक्रिया दोस्त जी ::)
ReplyDeleteमिनाक्षी जी आभार आपका जानकारी पसंद करने के लिए ...
ReplyDeleteसंगीत सीखने के लिए तो साधना चाहिए,पर हम जैसे रसिकों के लिए तमाम जिज्ञासाओं का जवाब यहाँ मिल सकता है.कृपया इसकी नियमितता बनाए रखें. यहाँ आने की नियमितता का जिम्मा हम पर रहेगा.
ReplyDeleteआभार.
संजय व्यास जी आभार आपका इस ब्लॉग पर पधारने के लिए ......आप आते रहिएगा ...नियमितता यहाँ ज़रूर मिलेगी.....
ReplyDeleteमुझे इस ब्लॉग की जानकारी समाचार पत्र के माध्यम से हुई |ये कार्य बहुत अच्छा है. इससे बहुत से लोगो को सुविधा होगी|
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