संगीत का कार्य मन के सोये भाव जगाना है |मन को सुकून देना आह्लाद देना है ...!!मन मे उठी सुख और दुख की अनुभूतियाँ जब गीत बनकर गूंजने लगती है तो उन्हीं को विभिन्न नामों से पुकार कर किसी राग का नाम दे दिया जाता है |
राग हंसध्वनी मे एक भजन सुनिए ।यह कर्नाटक पद्धति का राग है |इसका ठाट बिलावल है |गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है |
दिन विश्राम चाहता है .....और रात्रि अपनी शीतलता लिए .....धीरे धीरे उतर रही है ....
थका हारा प्राणी जब थोड़ी विश्रांति चाहता है ,जीवन की जद्दोजहद के लिए थोड़ी ऊर्जा चाहता है ...आइये सुनते हैं ये भजन .....एक एक स्वर सुकून देता हुआ सा ....दिव्य आनंद की पराकाष्ठा है यहाँ ....!!सुर और ताल का भेद अभेद है .....जाने कैसी स्वर लहरियाँ है ...जो सीधे हृदय तक पहुँचती हैं ......और देतीं हैं सिर्फ आनंद ....