नींद जैसे कोसों ....मीलों ...दूर है ....!!..रात गहन अंधकार में डूब चुकी है ...... ....कोहरे से ढँकी ....!!नीरवता गहरा रही है ...!!किन्तु स्वर अपना कार्य नहीं भूलते .....ओस की तरह ...ओस के मोती धीरे धीरे जमते हुए फूलों पर ...शास्त्रीय संगीत में इतनी दिव्यता है स्वर अपना अस्तित्व कैसे भूल सकते हैं भला ...!!....राग देस तो है ही मध्य रात्रि का राग |किन्तु प्रकृति चंचल है ........कुछ छटपटाहट इस तरह है कि तरंगित होना है ....मन को अंधकार में डूबने नहीं देना है ...!!जाने कैसी ध्वनि है मन का सारा क्लेश हर ले रही है ......सूर्य के उज्ज्वल प्रकाश की राह जो तकनी है .....राग देस सुनते सुनते ही सुबह की आमद सी होती प्रतीत होती है ....
नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ ....राग देस सुनिए ...
इसे भी सुनिए दिव्य अनुभूति हो रही ....लगता है कृष्ण भगवान की बांसुरी सुन रहे हैं ....
ईश्वर की उपस्थिती इस तरह महसूस हो रही है ...