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Saturday, March 23, 2013

नमन संगीत महानायक कुमार गन्धर्व जी को ...!!

स्वर आत्मा का नाद है |इस बात की चर्चा मैं पहले की पोस्ट में कर चुकी हूँ ...!!संगीत हमारी आत्मा ग्रहण करती है इसलिए संगीत सीखना कभी भी व्यर्थ नहीं जाता |इसीलिए कुछ लोग संगीत के साथ ही पैदा होते हैं ...विरासत में संगीत लेकर ....!!संगीत जन्मो जन्मो की तपस्या है ....!!





संगीत के महानायक  कुमार गन्धर्व जी के बारे में आज आपको कुछ जानकारी देने का मन है ...

कुमार जी का जन्म बेलगाम जिले के सुले भावी ग्राम में ८ अप्रैल १९२४ को एक लिंगायत परिवार में हुआ |उनका मूल नाम शिवपुत्र था |आपके पिता श्री सिद्रामप्पा कोमकली भी एक अच्छे गायक थे |

आयु के पांचवें वर्ष में ही एक दिन यकायक कुमार की प्रतिभा दृष्टिगोचर हुई |यह बालक उस दिन सवाई गन्धर्व के एक गायन जलसे में गया था |वाहन से लौटकर जब वह घर आया तो सवाई गन्धर्व द्वारा गई हुई बसंत राग की बंदिश तान और आलापों के साथ ज्यों की त्यों नक़ल करने लगा !यह देखकर इनके पिताजी आश्चर्य चकित रह गए |लोगों ने कहा ''इस बालक में पूर्वा जन्मा के संगीत संस्कार हैं अतः इसकी संगीत भावना को बल देने के लिए इसे शास्त्रीय संगीत आवश्य सिखाइये| ''फलस्वरूप कुमार जी की संगीत शिक्षा शुरू हो गई |दो ही वर्ष की तालीम में ही कुमार जी के अंदर यह विलक्षण शक्ति पैदा हो गई कि बड़े बड़े गायकों के ग्रामोफोन रिकॉर्डों की  हू -ब-हू नक़ल करने लगे | सात वर्ष की आयु में ही एक मठ  के गुरु ने उन्हें 'कुमार गन्धर्व 'की उपाधि प्रदान की |

नौं  वर्ष की आयु में कुमार गन्धर्व जी का सर्व प्रथम गायन जलसा बेलगाँव में हुआ | इसके पश्चात मुंबई के प्रोफ़ेसर देवधर ने कुमार जी को अपने संगीत विद्यालय में रख लिया | फरवरी सन १९३६ में ,मुंबई में एक संगीत परिषद हुई |उसमें कुमार गन्धर्व जी कि कला का सफल प्रदर्शन हुआ ,जिसमे श्रोतागण मुग्धा हो गए और उनका नाम संगीतज्ञों तथा संगीत कला प्रमियों में प्रसिद्द हो गया |

२३ वर्ष कि उम्र में अर्थात मई सन १९४७ ईo में कराची की एक संगीत निपुण महिला भानुमती जी से उनका विवाह हो गया |लेकिन उनका देहांत हो गया और कुमार जी को दूसरा ब्याह करना पड़ा|

दुर्भाग्य से कुमार जी तपेदिक जैसी बीमारी के शिकार हो गए |वायु परिवर्तन के लिए ही वे अपने परिवार के साथ मालवा की एक सुन्दर पहाड़ी पर बने शहर देवास में निवास करने लगे |पत्नी ने छाया कि तरह रहकर उनकी सेवा की जिसके परिणाम स्वरुप कुमार जी स्वस्थ हो गए ||तब से देवास को ही उन्होंने अपना निवास बना  लिया |

कुमार जी एक केवल मधुर गायक ही नहीं अपितु एक प्रखर कल्पनाशील कलाकार थे |लोक गीतों में शास्त्रीय संगीत का मधुर मिश्रण करके कुमार जी ने परंपरा की लीक से हटकर एक नई शैली को जन्म दिया ,जो श्रोताओं को भाव विभोर करती है |

१२ जनवरी १९९२ में आपका देहावसान हुआ ......!!