आज निज घाट बिच फाग मचैहों
ध्यान चरनन में लागैहों .....
इक सुर साधे तम्बूरा तन का ..
सांस के तार मिलैहों ...
मोद-मृदंग मंजीरा मनसा ...
तो विनय कि बीन बजैहों ..
भजन सतनाम को गईहों ...
ये भक्ति फाग ...
राग मिश्र काफी ......ताल दीपचंदी ....
अब सुनिए ......
ध्यान चरनन में लागैहों .....
इक सुर साधे तम्बूरा तन का ..
सांस के तार मिलैहों ...
मोद-मृदंग मंजीरा मनसा ...
तो विनय कि बीन बजैहों ..
भजन सतनाम को गईहों ...
ये भक्ति फाग ...
राग मिश्र काफी ......ताल दीपचंदी ....
अब सुनिए ......
बहुत ही सुन्दर प्यारा होली गीत.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteशरीर की तरंगें जाग्रत हो गयीं
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteअनुपमा जी ,मुझे अपने बचपन की याद दिलादी इस गीत ने जब होली के अवसर पर मेरे पिताजी --आवागमन मिट जावै ,कोई ऐसी होरी खिलावै ...और वन कौं चले दोऊ भाई ,इन्हें कोऊ बरजै री माई आदि गीत गाते थे । बडा मधुर समां बँध जाता था । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबंदिश और प्रस्तुति दोनों अप्रतिम .शुक्रिया .
ReplyDeleteअतिसुन्दर कोमल पदावली भाव राग आह्लादित करता हुआ ..
ReplyDeleteवाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
Sagit ke setra me aapka prihas sharaniye hai.
ReplyDeleteSangit ke setra me aapka prihas srahaniye hai
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