राग दरबारी कान्हड़ा ।
रात्रि के अंतिम प्रहर मे गाया बजाया जाता है ...!!
मंद्र सप्तक का ज्यादा प्रयोग होता है क्यूंकी रात का अंतिम प्रहर है !ऐसा प्रतीत होता है मानो अंधकार हार गया है लड़ते लड़ते .....स्वर क्षीण से ...अवरोह पर हैं .....और .............बस भोर होने को ही है ......प्रकृति भी धीर है ,गंभीर है ,चंचल नहीं है ......
पूरी राग सुनने के पश्चात भोर की सी अनुभूति होती है .....यही संगीत की ताकत है ....
कहते हैं तानसेन ने अकबर बादशाह को प्रसन्न करने के लिए ये राग गाया था !