राग मधुवंती ....
इस राग में गंधार कोमल ,मध्यम तीव्र तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं |आरोह में ऋषभ तथा धैवत वर्ज्य होने के कारण इसकी जाती औडव -सम्पूर्ण मानी जाती है |ऋषभ पर षडज का कण ,गंधार पर तीव्र मध्यम का स्पर्श (कण)से इस राग की रंजकता बढ़ती है |कभी कभी कोमल निषाद का अत्यल्प प्रयोग करने से राग वैचित्र्य उत्पन्न होता है |,साथ ही माधुर्य भी बढ़ता है |वादी पंचम तथा संवादी स्वर ऋषभ है |प्रयोग काल साँय चार बजे से रात्रि के प्रथम प्रहर तक है |यह राग मुलतानी के काफी निकट है |अतः कुछ गुणी जन इसे तोड़ी ठाट के अंतर्गत भी मानते हैं |इसका आरोह-अवरोह इस प्रकार है ....
आरोह-सा ग म (तीव्र) प नी सां
अवरोह-सां नी ध प म(तीव्र) ग रे सा
राग -जोग ......
यह काफी थाट का राग है |इसका प्रचार हाल ही में हुआ है |इसमें दोनों गांधार लगते हैं |निषाद कोमल है ,और ऋषभ और धैवत वर्जित है |अन्य स्वर शुद्ध हैं |इसकी जाति औडव है |इसके आरोह में शुद्ध गंधार तथा अवरोह में कोमल गांधार का प्रयोग किया जाता है |
आरोह-नि सा ग म प (सां)नि सां
अवरोह--सां नि प म $$,ग$म प ग $$म प ग $$सा ।
शान्ति से बैठकर सुनते हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteआपको फिर से लिखता पाकर खुश हूँ
:-)
सस्नेह
अनु
अनुपमा जी आपने मेरी बात को ध्यान में रखा । आभारी हूँ । मीताजी और परवीन सुल्तान जी की आवाज में दोनों राग सुन कर आनन्दकी अनुभूति मिली ।एक बार फिर आपको धन्यवाद
ReplyDeleteअनुपमा जी आपने मेरी बात को ध्यान में रखा । आभारी हूँ । मुझे कोई जानकारी तो नही है लेकिन ऐसी प्रस्तुतियाँ मन मोह लेतीं हैं ।
ReplyDeleteKarn madhur raginiyon se saja hai aapka blog.
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