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Sunday, November 20, 2011

संधि प्रकाश राग से प्रकाशित ..गुंजित...धरा ....!!

संधि प्रकाश  राग क्या हैं ...?


स्पंदन ...जीवन ...और संगीत ...एक चोटी  की तरह गुंथे हुए हैं...!जब से मनुष्य का जीवन है तभी से ही संगीत का अधिपत्य इस धरा पर है ...!जन-जन के हृदय  में बसा लोक-संगीत ...जन्म पर गाये  जाने वाले सोहर से लेकर मृत्यु पर राम नाम सत्य का जाप ....संगीत से कुछ भी तो अछूता नहीं है .....!!किसी श्राप से श्रपित हो हम उसे अपने हृदय  से दूर कर देते हैं किन्तु इतिहास गवाह है इस बात का ...जहाँ संगीत है वहां खुशहाली हमेशा रहती है ...!!और जहाँ खुशहाली है वहां संगीत का दर्जा बहुत ऊपर रहता है ...!!दोनों ही बातें हैं |
                   साधक को यह बात ध्यान देना है कि स्वरों का आन्दोलन किस प्रकार हो कि हृदय  के आन्दोलन को छू जाये |एक सफल संगीतज्ञ का कार्य ही यही है |कला में अपनी बात मनवाने की ताक़त होती है अगर उसे साधना की तरह लिया जाये ...!मैंने पहले चर्चा कि है कि समय के आधार पर रागों का वर्गीकरण हुआ है |अब पूरे चौबीस घंटों में दो बार ऐसा होता है कि अन्धकार और प्रकाश का मिलन होता है |या दोनों कि संधि होती है ........एक बार अन्धकार प्रकाश में विलीन हो जाता है और एक बार प्रकाश अपना तेज त्याग ...अन्धकार में घुप्प हो.. सो जाता है ...!!शायद जीवन की आपा धापी से थका हुआ  ...या ...कर्तव्य बोध से फिर भी बंधा हुआ ...कि कुछ क्षण नींद ज़रूरी है ...!तो...इन दोनों समय को संगीत कि भाषा में संधिप्रकाश काल कहते हैं |और इस समय गाए जाने वाले राग संधिप्रकाश राग कहलाये जाते हैं |ये संधिप्रकाश राग दो तरह के होते :


1-प्रातःकालीन संधिप्रकाश राग
2-सांयकालीन  संधिप्रकाश राग


प्रातःकालीन संधिप्रकाश राग गायन का समय प्रातः चार से सात बजे का है |भैरव,तोड़ी ,उसके सभी प्रकार और रामकली इस समय के राग हैं |


सांयकालीन संधिप्रकाश राग में पूरिया ,मारवा ,पूरिया धनाश्री आदि आते हैं |


इनको किस प्रकार लिया जाता है इसी चर्चा अगले अंक में ....

Thursday, November 10, 2011

संगीत में मध्यम स्वर का महत्व ..!!

भारतीय संगीत के सात स्वरों में से मध्यम स्वर बड़े महत्व का है |इस स्वर के प्रयोग से हमें यह मालूम पड़ता है कि अमुक राग का गायन समय दिन है या रात्री |संगीत के शास्त्रकारों ने चौबीस घंटों के समय को दो बराबर भागों में विभाजित किया है |प्रथम भाग को पूर्वार्ध कहा  ,जिसका  गायन समय रात्री के बारह बजे से दिन के बारह बजे माना अर्थात A.M में |दूसरे भाग को उत्तरार्ध कहा जिसका गायन समय दिन  के बारह बजे से रात्री  के बारह बजे तक माना अर्थात P.M में |
दिन के पहले भाग में शुद्ध म की और दूसरे भाग में तीव्र म की प्रधानता मानी गयी है |


उदाहरण:1-भैरव व बहार लीजिये |इन दोनों रागों में शुद्ध मध्यम का प्रयोग होता है तो ये अनुमान लगाया जा सकता है किये राग  दिन के पूर्वार्ध में  ,अर्थात रात्री के बारह बजे से दिन के बारह बजे तक गाये-बजाये जाते हैं |


2-यमन में तीव्र मध्यम का प्रयोग है इसलिए ये राग उत्तरार्ध में यानी रात के प्रथम प्रहर में गाया बजाया जाता है |


इस नियम के कुछ अपवाद भी हैं |तोड़ी ,हिंडोल,भीमपलासी दुर्गा,देश,बागेश्वरी आदि इस नियम का खंडन करते हैं |
इस नियम का पालन संधिप्रकाश रागों में निश्चित रूप से होता है


संधिप्रकाश राग क्या है इसकी चर्च अगली पोस्ट   में करेंगे ....                     


                                                                                                क्रमशः ...

Sunday, November 6, 2011

कठिनाईयों से लड़ता ...शास्त्रीय संगीत का जीवन ....!!

 एक जादू की तरह कार्य करता है शास्त्रीय संगीत|जोड़ देता है मन के कोमल तारों को प्रभु से |देता है एक ऐसा नशा जो चढ़ जाए तो कभी उतरता ही नहीं है |किन्तु उस राह पर चलना ....संगीत से जुड़े रहना ....बहुत आसान नहीं है |एक तरह का योग है ....एक साधना है ...!!कम से कम १०-१२ वर्ष तक संगीत लगातार सीखने के बाद कुछ समझ में आती  है इसकी भाषा |मेरी समझ से छोटे बच्चों के लिए संगीत की शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए|जो लोग बचपन से ही इस विधा से जुड़े रहते हैं वे बहुत खुशकिस्मत होते हैं क्योंकि उनके दिमाग की कल्पनाशक्ति बहुत बढ़ जाती है और याददाश्त भी तेज़ हो जाती है |आजकल जिसे हम  ''multitasking '' कहते हैं वो संगीत की साधना से आसान हो जाता है |इस व्यस्त जीवन में ,आपाधापी में, एक रूचि का होना अनिवार्य है जो आपको हमेशा सकारात्मक उर्जा देती रहे |आजकल ''life is on a fast track'' इसलिए संगीत की साधना की ओर किसी का ध्यान  नहीं जाता|सभी को लगता है थोड़ा सा सीख कर कैसे जल्दी-जल्दी टी.वी पर आया जाये |कला का ज्ञान लेना कम  लोग चाहते  हैं | आज इन्हीं धूमिल होती हुई परम्पराओं को जीवित रखने की आवश्यकता है |गागर भरने के बाद छलकने ही लगती है ....!!पर धैर्य से हमें गागर भरने का इंतज़ार करना होता है |घरों घर शास्त्रीय संगीत का दीप प्रज्ज्वलित हो यही कोशिश  है ...!!