''संगीत- दर्पण'' के लेखक दामोदर पंडित (सन १६२५ ई .)के मतानुसार ,संगीत की उत्पत्ति वेदों के निर्माता ,ब्रह्मा द्वारा ही हुई ।ब्रह्मा ने जिस संगीत को शोधकर निकाला ,भारत मुनि ने महादेव के सामने जिसका प्रयोग किया ,तथा जो मुक्तिदायक है वो मार्गी संगीत कहलाता है|
इसका प्रयोग ब्रह्मा के बाद भारत ने किया ।वह अत्यंत प्राचीन तथा कठोर सांस्कृतिक व धार्मिक नियमों से जकड़ा हुआ था ,अतः आगे इसका प्रचार ही समाप्त हो गया ।
एक विवेचन में सात स्वरों की उत्पत्ति पशु-पक्षियों द्वारा इस प्रकार बताई गयी है :
मोर से षडज (सा)
चातक से रिशब (रे)
बकरे से गंधार (ग )
कौआ से मध्यम (म)
कोयल से पंचम (प)
मेंडक से धैवत (ध)
हाथी से निषाद (नि)
स्वर की उत्पत्ति हुई ।
एक मात्र मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो सातों स्वरों की नाद निकाल सकता है ...!
ये बहुत सुन्दर जानकारी दी आपने...
ReplyDeleteसादर आभार.
आभार आपका|
Deleteईश्वर की प्रदत्त पूँजी अगर हम जान लें ....अपने अंदर छुपी हुई शक्ति अगर हम पहचान लें तो शायद ये धरा का रूप कुछ बदल सकें ....!!
हमें तो कोयल का पंचम स्वर ही सुहाता है..
ReplyDeleteकोयल का पंचम सुर तो सच में ह्रदय के तार झंकृत करता है |याद दिलाता है ,सदियों से चली आ रही परंपरा को सहेजने का जिम्मा अब हमारा है ...!!मैं सोचती हूँ अँधेरे में दिए की रौशनी की तरह ...अगर कुछ लोगों को ही शास्त्रीय संगीत सिखा सकूं ,या बता सकूं ...लगेगा शायद कुछ ज़िम्मेदारी निभा रही हूँ ,अपनी संस्कृति के प्रति ....!!अब जब भी कोयल की कूक सुने याद रखें जल्दी ही आपको संगीत सीखना शुरू करना है ...!!
Deleteआपके इस ब्लॉग को पहली भी देखती रही हूँ....
ReplyDeleteसोचती हूँ इंसान सातों सुर निकाल सकता है फिर भी अकसर कर्कश वाणी क्यूँ निकाला करता है???
सात्विक सा ब्लॉग है ये आपका...
स्नेह व शुभकामनाएँ......
अपने जीवन के शिल्पकार तो हम स्वयं ही हैं न ...?कोई दूसरा हमें क्या ही बता सकता है ...!!जो कर्कश वाणी निकालते हैं उन्होंने शास्त्रीय संगीत नहीं सीखा होगा ...!!
Deleteआभार .....इस ब्लॉग से जुड़ने के लिए ...!!
महत्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteइसे महत्व देने के लिए ,आपका भी आभार ...
Deleteउपयोगी जानकारी के लिए आभार।
ReplyDeleteआभार महेंद्र जी .....इस उत्साहवर्धन के लिए ....
Deleteप्रकृति ने इंसान को बेशुमार दौलत बक्सी है मगर इंसान सहेजने की जगह लूट-खसोट रहा है .,पूरी कायनात अपने में संगीत का खजाना छुपाये हुए है , नदी नाले पेड़ पहाड़ हर कहीं संगीत बिखरा पड़ा है . बहुत सुन्दर जानकारी ,आभार
ReplyDeleteसच कहा आपने|आभार आपको जानकारी पसंद आई ..!
ReplyDeleteकक्षा में देरी से आने के लिए सॉरी मैम!
ReplyDeleteआज जाकर जाना कि एक बार किसी ब्लॉग पर सप्तम सुर को लेकर हाथियों सा चिग्घाड़ और घमासान क्यों मचा हुआ था, और यह भी जाना कि पंचम सुर में बोलना क्यों इतना मीठा कहलाता है।
क्या ऊपर जो सुर मैंने लिखा है वह सही है, या मुझे इसे स्वर कर देना चाहिए?
आभार मनोज जी ....आप इस ब्लॉग को, संगीत चर्चा को ,इतने ध्यान से पढ़ते हैं ,समझते हैं ,बहुत अच्छा लगता है |मेरे लिए बड़ी बात है ...!आपने बिलकुल ठीक लिखा है |सुर भी लिख सकते है |
Deleteशुक्रिया ....शांति जी ...!
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