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Sunday, April 29, 2012

भारतीय संगीत कला की उत्पत्ति ......!!

भारतीय संगीत कला की उत्पत्ति कब और कैसे हुई इस विषय पर विद्वानों के विभिन्न मत हैं  जिनमे कुछ इस प्रकार हैं :
संगीत की उत्पत्ति आरंभ में वेदों के निर्माता ब्रह्मा द्वारा हुई |ब्रह्मा ने यह कला शिव को दी और शिव जी के द्वारा सरस्वती  जी को प्राप्त हुई |सरस्वती जी को इसीलिए 'वीणा पुस्तक धारिणी 'कहकर संगीत और साहित्य की अधिष्ठात्री माना  गया है |सरस्वती जी से संगीत कला का ज्ञान नारद जी को प्राप्त हुआ |नारद जी ने स्वर्ग के गन्धर्व ,किन्नर और अप्सराओं को संगीत शिक्षा दी|पृथ्वी  पर ऋषिओं ,जैसे भरत मुनि 
के माध्यम से संगीत कला आई |
                                'संगीत-दर्पण' के लेखक  दामोदर पंडित  पंडित सन-१६२५ई .के मतानुसार ,संगीत की उत्पत्ति ब्रह्मा से ही हुई |भरत मुनि ने महादेव के सामने जिसका प्रयोग किया ,वो मुक्ति दायक मार्गी संगीत कहलाता है |
 फारसी के एक विद्वान का मत है कि हज़रात मूसा जब पहाड़ों पर घूम घूम कर वहाँ की छटा देख रहे थे ,उसी वक्त गैब ,आकाशवाणी हुई कि 'या मूसा हकीकी,तू अपना असा (एक प्रकार का डंडा ,जो फकीरों के पास होता है )इस पत्थर पर मार !' यह आवाज़ सुनकर हज़रात मूसा ने अपना असा जोर से उस पत्थर पर मारा ,तो पत्थर के सात टुकड़े हो गए और हर एक टुकड़े में से पानी की अलग अलग धार बहने लगी |उसी जल धारा की आवाज़ से अस्सामलेक हज़रात मूसा ने सात स्वरों की रचना की |जिन्हें सा,रे,ग,म,प,ध ,नी कहते हैं |


पाश्चात्य विद्वान फ्रायड के मतानुसार ,संगीत कि उत्पत्ति एक शिशु के समान ,मनोविज्ञान के आधार पर हुई |जिस प्रकार बालक रोना,चिल्लाना,हंसना अदि क्रियाएँ आवश्यकतानुसार स्वयं सीख जाता है ,उसी प्रकार मानव में संगीत का प्रादुर्भाव मनोविज्ञान के अधर पर स्वयं हुआ |
               इस प्रकार संगीत कि उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत पाए जाते हैं |

Saturday, April 14, 2012

वाद्यवृन्द या वृंदवादन ...!

                                                       

                                                           वाद्यवृन्द  या वृंदवादन ...!


इसे अंग्रेजी में ऑर्केस्ट्रा कहते है ।दक्षिण में इसे वाद्य कचहरी कहा जाता है ।पाणिनि -काल में वाद्यवृन्द के लिए 'तूर्य' शब्द का प्रयोग किया जाता था ।उसमे भाग लेने वाले तूर्यांग कहलाते  थे ।मुग़ल काल में नौबत कहते थे ।
वाद्यवृन्द में शास्त्रीय,अर्धशास्त्रीय तथा लोकधुनो पर आधारित रचनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं।आधुनिक वाद्यवृन्द की शुरुआत अठारवीं सदी के अंत से मानी जाती है ।विदेशों में ऑर्केस्ट्रा शब्द का प्रयोग सत्रहवीं शताब्दी से शुरू हुआ जिसे symphony कहा जाने लगा ।इसमें कई वाद्य मिलकर रचना को प्रस्तुत करते हैं जिसके द्वारा भिन्न भिन्न भावों की सृष्टी की जाती है ।इसके प्रस्तुतीकरण में ऐसा लगता है मानो  वाद्यों की कोई गाथा  प्रस्तुत की जा रही हो ।
    वर्त्तमान में वाद्यावृन्दा के विकास में उस्ताद अल्लाउद्दीन  खान ,'स्ट्रिंग "नमक प्रथम भारतीय 'मैहर -बैंड ' के संस्थापक ,विष्णुदास शिरली,पंडित रविशंकर,लालमणि मिश्र ,जुबिन मेहता ,तिमिर्बरण,अनिल बिस्वास ,पन्नालाल घोष,टी .के .जैराम  अय्यर ,विजयराघव राव और आनंदशंकर ने बहुत योगदान दिया है ।
वाद्यवृन्द और ऑर्केस्ट्रा वाद्यों की एक ऐसी भाषा है जो एकता और सामाजिक भावना का सन्देश देती है ।

Sunday, April 8, 2012

tabla ...झपताल

                                                      झपताल 

इसमें दस मात्राएँ होतीं हैं ।२-३-२-३ मात्र के चार विभाग होते  हैं ।इसके बोल हैं ....
धी  ना ।धी  धी   ना ।ती  ना ।धी  धी  ना .
X          2                 0         3

1,3,8 पर ताली   और  छटवीं मात्र खाली ।

संगीत क्रियात्मक शास्त्र है इसलिए ये बहुत सुंदर झपताल पर कुछ ऐसी सामग्री मिली ,सोचा आपको बताऊँ ।झपताल क्या है कुछ तो समझ आइयेगा ही ।



Monday, April 2, 2012

वृन्दगान .......!!

गायक और वादकों द्वारा सामूहिक रूप से जो संगीत प्रस्तुत किया जाता है उसे वृन्दगान कहते हैं ।
शास्त्रीय संगीत में वृन्दगान या समूहगान की परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है ।इसे अंगरेजी में CHOIR  या  CHOROUS कहते हैं ।ब्राह्मणों द्वारा मन्त्रों का सामूहिक उच्चारण ,देवालय में सामूहिक प्रार्थना ,कीर्तन ,भजनाथावा लोक में विभिन्न अवसरों पर गाये जाने वाले लोक गीत समूह गान या समवेत गान के अंतर्गत आते हैं ।सभी वृन्दगानों का विषय प्रायः राष्ट्रीय ,सामाजिक अथवा सांस्कृतिक होता है ।पारंपरिक एकता,राष्ट्र के प्रति प्रेम,समाज की गौरवशाली परम्पराओं का उद्घोष वृन्दगान के द्वारा ही सिद्ध होता है ।

वृन्दगान रचना के मुक्य तत्त्व इस प्रकार निर्धारित किये जा सकते हैं :

  • साहित्यिक तत्व
  • सांगीतिक तत्व 
  • श्रेणी विभाजन
  • सञ्चालन .
वृन्दगान के विकास में वर्त्तमान कालीन जिन कलाकारों का उल्लेखनीय योगदान रहा है ,उनके नाम  हैं :
  • विक्टर प्रानज्योती ,
  • एम .वी .श्रीनिवासन,
  • विनयचन्द्र मौद्गल्य ,
  • सतीश भाटिया 
  • वसंत देसाई 
  • जीतेन्द्र अभिषेकी 
  • पंडित शिवप्रसाद .