वाद्यवृन्द या वृंदवादन ...!
इसे अंग्रेजी में ऑर्केस्ट्रा कहते है ।दक्षिण में इसे वाद्य कचहरी कहा जाता है ।पाणिनि -काल में वाद्यवृन्द के लिए 'तूर्य' शब्द का प्रयोग किया जाता था ।उसमे भाग लेने वाले तूर्यांग कहलाते थे ।मुग़ल काल में नौबत कहते थे ।
वाद्यवृन्द में शास्त्रीय,अर्धशास्त्रीय तथा लोकधुनो पर आधारित रचनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं।आधुनिक वाद्यवृन्द की शुरुआत अठारवीं सदी के अंत से मानी जाती है ।विदेशों में ऑर्केस्ट्रा शब्द का प्रयोग सत्रहवीं शताब्दी से शुरू हुआ जिसे symphony कहा जाने लगा ।इसमें कई वाद्य मिलकर रचना को प्रस्तुत करते हैं जिसके द्वारा भिन्न भिन्न भावों की सृष्टी की जाती है ।इसके प्रस्तुतीकरण में ऐसा लगता है मानो वाद्यों की कोई गाथा प्रस्तुत की जा रही हो ।
वर्त्तमान में वाद्यावृन्दा के विकास में उस्ताद अल्लाउद्दीन खान ,'स्ट्रिंग "नमक प्रथम भारतीय 'मैहर -बैंड ' के संस्थापक ,विष्णुदास शिरली,पंडित रविशंकर,लालमणि मिश्र ,जुबिन मेहता ,तिमिर्बरण,अनिल बिस्वास ,पन्नालाल घोष,टी .के .जैराम अय्यर ,विजयराघव राव और आनंदशंकर ने बहुत योगदान दिया है ।
वाद्यवृन्द और ऑर्केस्ट्रा वाद्यों की एक ऐसी भाषा है जो एकता और सामाजिक भावना का सन्देश देती है ।
nice information...............
ReplyDeletethanks.
बहुत आभार अनु जी ....
Deleteजीवन में भी तो सब मिलकर ही रहते हैं।
ReplyDeleteतभी तो कहते हैं ...शास्त्रीय संगीत जीवन जीने की कला भी सिखाता है ....!!
Deleteसुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ...!!
Deleteनौबत बजती रहती का अर्थ पचपनवे वर्ष में समझ में आया -आभार :)
ReplyDeleteबहुत आभार ...!
Deleteदेर आये दुरुस्त आये ...
सही कहा संगीत जीने की कला भी सिखाता है ,सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत आभार .
DeleteAapke blog per aaker mann sangeetmay ho gaya ... bahut hi achcha va jankarik laga aapka blog ... yuhi sangeet se judi rahiye ... All the best ... fir milenge aise hi blog to blog ghumte hue ... :))))
ReplyDeleteबहुत आभार ...!!
Deleteअरे ? इस एक शब्द के पीछे भी इतनी सारी बातें हैं ?
ReplyDeleteजी ...संगीत शास्त्र अपने आप में एक अलग ही विषय है |
Deleteachchi aur rochak jankari :)
ReplyDeleteमत भेद न बने मन भेद- A post for all bloggers
आभार ...
Delete