किसी भी कला के लिए ये ज़रूरी है कि उससे मानव ह्रदय में स्थित स्थायी भाव जागें और उन भावों से तत्सम्बन्धी रस की उत्पत्ति होती हो ;तभी मनुष्य आनंद की अनुभूति कर सकता है |इसी को सौंदर्य बोध कहते हैं |
साहित्य में नौ रसों का उल्लेख किया गया है :
१-श्रृंगार रस
२- करुण रस
३-वीर रस
४-भयानक रस
५-हास्य रस
६-रौद्र रस
७-वीभत्स रस
८-अद्भुत रस
९-शांत रस
संगीत में श्रृंगार,वीर,करुण और शांत इन चारों रसों में अन्य सभी रसों का समावेश मानते हुए ताल और लय को भी रसों में सम्बंधित माना गया है |
शब्द,स्वर,लय और ताल मिल कर संगीत में रस की उत्पत्ति करते हैं |साहित्य में छंद की विविधता और संगीत में ताल एवं लय के सामंजस्य द्वारा विभिन्न रसों की सृष्टि की जाती है |
ताल विहीन संगीत नासिका विहीन मुख की भांति बताया गया है |ताल से अनुशासित होकर ही संगीत विभिन्न भावों और रसों को उत्पन्न कर पता है |ताल की गतियाँ स्वरों की सहायता के बिना भी रस -निष्पत्ति में सक्षम होती हैं |
मध्य लय -हास्य एवं श्रृंगार रसों की पोषक है |
विलम्बित लय -वीभत्स और भयानक रसों की पोषक है |
द्रुतलय -वीर,रौद्र एवं अद्भुत रसों की पोषक है |
साहित्य में नौ रसों का उल्लेख किया गया है :
१-श्रृंगार रस
२- करुण रस
३-वीर रस
४-भयानक रस
५-हास्य रस
६-रौद्र रस
७-वीभत्स रस
८-अद्भुत रस
९-शांत रस
संगीत में श्रृंगार,वीर,करुण और शांत इन चारों रसों में अन्य सभी रसों का समावेश मानते हुए ताल और लय को भी रसों में सम्बंधित माना गया है |
शब्द,स्वर,लय और ताल मिल कर संगीत में रस की उत्पत्ति करते हैं |साहित्य में छंद की विविधता और संगीत में ताल एवं लय के सामंजस्य द्वारा विभिन्न रसों की सृष्टि की जाती है |
ताल विहीन संगीत नासिका विहीन मुख की भांति बताया गया है |ताल से अनुशासित होकर ही संगीत विभिन्न भावों और रसों को उत्पन्न कर पता है |ताल की गतियाँ स्वरों की सहायता के बिना भी रस -निष्पत्ति में सक्षम होती हैं |
मध्य लय -हास्य एवं श्रृंगार रसों की पोषक है |
विलम्बित लय -वीभत्स और भयानक रसों की पोषक है |
द्रुतलय -वीर,रौद्र एवं अद्भुत रसों की पोषक है |
संगीत विधा की अच्छी जानकारी से युक्त सुन्दर पोस्ट
ReplyDeletevikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
मध्य लय -हास्य एवं श्रृंगार रसों की पोषक है |
ReplyDeleteविलम्बित लय -वीभत्स और भयानक रसों की पोषक है |
द्रुतलय -वीर,रौद्र एवं अद्भुत रसों की पोषक है |
इस तथ्य पर अब तक ध्यान नहीं गया था, आभार बताने का..
बहुत अच्छी जानकारी मिली।
ReplyDeleteसादर
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteकल 18/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, जिन्दगी की बातें ... !
धन्यवाद!
ताल और लय संगीत की जान और आत्मा है..अच्छी जाकारी..आभार..
ReplyDeleteअच्छी जानकारी देती पोस्ट
ReplyDeleteachhi jaankari.
ReplyDelete|ताल से अनुशासित होकर ही संगीत विभिन्न भावों और रसों को उत्पन्न कर पता है |ताल की गतियाँ स्वरों की सहायता के बिना भी रस -निष्पत्ति में सक्षम होती हैं |
ReplyDeletesahi hai....
lagta hai kai saal ke baad fir se music class mein baithi hun..
|ताल से अनुशासित होकर ही संगीत विभिन्न भावों और रसों को उत्पन्न कर पता है |ताल की गतियाँ स्वरों की सहायता के बिना भी रस -निष्पत्ति में सक्षम होती हैं |
ReplyDeletesahi kaha...lagta hai ki kai saal ke baad fir se music class mein baithi hu...
बहुत सी नयी बातें पता चलीं आपकी इस पोस्ट से ...........
ReplyDeleteबधाई ...
मेरी नयी कविता तो नहीं उस जैसी पंक्तियाँ "जोश "पढने के लिए मेरे ब्लॉग पे आयें...
http://dilkikashmakash.blogspot.com/
बढ़िया जानकारी देती पोस्ट।
ReplyDeleteकल 28/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
यह सुन्दर प्रस्तुति पढ़ने से रह गयी थी...
ReplyDeleteसादर आभार.