कभी जब अपनी पहचान ढूंढती हूँ .....एक ही आवाज़ आती है ....
मेरी आवाज़ ही पहचान है .....गर याद रहे ......!!स्वर आत्मा के साथी हैं ..!कभी साथ नहीं छोड़ते |कोई भी कला हो उसे आत्मा आत्मसात करती है |तभी कहते हैं मनुष्य कुछ मूलभूत चीज़ों के साथ जन्मता है |
विभिन्न देशों में संगीत के प्रकार चाहे भिन्न भिन्न हों ,परन्तु प्रचार और गुणों का रूपांतर नहीं होता |संगीत का मौलिक रूप और उसके सृजनात्मक तत्त्व सभी स्थानों के संगीत में समान होते हैं |संगीत के परमाणुओं में मानव की वृत्तियों को प्रशस्त करने के साथ-साथ आत्मिक शक्ति भी निहित है |चारित्रिक उत्थान का सर्वोत्तम साधन भी संगीत ही है |इस ललित कला की गहराई मापी नहीं जा सकती |
ये तो हुईं कुछ शास्त्र की बातें ....अब ....
हमारी फिल्मों में भी कुछ ऐसे नायब नगमे हैं जिनको सुन कर झूम उठता है मन ....!
आप सभी को , अनुपमा फिल्म का ....आज मैं अपना पसंदीदा गीत सुनाना चाहती हूँ ....
...धीरे धीरे मचल ...
अरे वाह क्या बात है ! अनुपमा का यह गीत मेरा बहुत ही प्रिय गीत है ! आपके मधुर स्वर ने इसमें चार चाँद लगा दिये हैं ! आनंद आ गया ! मदर्स डे की आपको हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteअनुपमा जी की आवाज़ में “अनुपमा” का गाना सुनना बड़ा मधुर अनुभव रहा। उसके पहले का लेख पिछले अंक के विस्तार के रूप में संगीत के महत्व पर प्रकाश डालता हुआ ज्ञानवर्धक रहा।
ReplyDeleteबहुत मधुर आवाज और लय ।
ReplyDeleteगीत के बोल भी बहुत अच्छे हैं ।
धन्यवाद ।
बहुत मधुर गायिका अनुपमा जी .
ReplyDeleteबहुत पसंद आया यह गीत.