संगीत के विषय में बात करते करते आज मैं आपको संगीत की शास्त्रीय संगीत के अलावा भी ....अन्यविधाओं के बारे में बताना चाहती हूँ .....
भावुकता से हीन कोई कैसा भी पषान ह्रदय क्यों न हो ,किन्तु संगीत विमुख होने का दावा उसका भी नहीं माना जा सकता |कहावत है गाना और रोना सभी को आता है|संगीत की भाषा मे जिन व्यक्तियों ने अपने विवेक ,अभ्यास और तपश्चर्य के बल से स्वर और ताल पर अपना अधिकार कर लिया है ,उनका विज्ञ समाज में आदर है,उन्हें बड़ा गवैया समझा जाता है |परंतु अधिकांश जन समूह ऐसा होता है ,जो इस ललित कला की साधना और तपस्या से सर्वथा वंचित रह जाता है |ऐसे लोग भले ही घरानेदार गायकी ना करें,किंतु इन लोगों के जीवन का सम्बंध भी संगीत से प्रचुर मात्रा मे होता है |गाँव मे गाये जानेवाले लोकगीतों के विभिन्न प्रकार ,कपड़े धोते समय धोबियों का गीत,भीमकाय पषाणों को ऊपर चढ़ाते समय श्रमिकों का गाना ,खेतों मे पानी देते समय किसानों द्वारा गाये जाने वाले गीत,पनघट पर ग्रामीण युवतियों के गीत,पशु चराते समय ग्वालों का संगीत,इस कथन की पुष्टि के लिये यथेष्ट प्रमाण हैं|इस प्रकार के गीत तो दैनिक चर्या मे गाये जाते हैं |किसी विशेष अवसर पर जैसे ....
*शिशु जमोत्सव पर गाये जाने वले सोहर ......
*विवाह उत्सव पर गाये जाने वाले बन्ना-बन्नी
*उलहना और छेड़खानी से भरे दादरे.....
आपके लिए आज एक विशेष अनुभूती लिए हुए सुश्री नगीन तनवीर का गाया ये लोकगीत ......... ज़रूर सुनिए ......
भावुकता से हीन कोई कैसा भी पषान ह्रदय क्यों न हो ,किन्तु संगीत विमुख होने का दावा उसका भी नहीं माना जा सकता |कहावत है गाना और रोना सभी को आता है|संगीत की भाषा मे जिन व्यक्तियों ने अपने विवेक ,अभ्यास और तपश्चर्य के बल से स्वर और ताल पर अपना अधिकार कर लिया है ,उनका विज्ञ समाज में आदर है,उन्हें बड़ा गवैया समझा जाता है |परंतु अधिकांश जन समूह ऐसा होता है ,जो इस ललित कला की साधना और तपस्या से सर्वथा वंचित रह जाता है |ऐसे लोग भले ही घरानेदार गायकी ना करें,किंतु इन लोगों के जीवन का सम्बंध भी संगीत से प्रचुर मात्रा मे होता है |गाँव मे गाये जानेवाले लोकगीतों के विभिन्न प्रकार ,कपड़े धोते समय धोबियों का गीत,भीमकाय पषाणों को ऊपर चढ़ाते समय श्रमिकों का गाना ,खेतों मे पानी देते समय किसानों द्वारा गाये जाने वाले गीत,पनघट पर ग्रामीण युवतियों के गीत,पशु चराते समय ग्वालों का संगीत,इस कथन की पुष्टि के लिये यथेष्ट प्रमाण हैं|इस प्रकार के गीत तो दैनिक चर्या मे गाये जाते हैं |किसी विशेष अवसर पर जैसे ....
*शिशु जमोत्सव पर गाये जाने वले सोहर ......
*विवाह उत्सव पर गाये जाने वाले बन्ना-बन्नी
*उलहना और छेड़खानी से भरे दादरे.....
घर-परिवार का कोइ भी अवसर क्यों ना हो ,इन गीतों और नृत्य के बिना परिपूर्ण होता ही नहीं है ।
संगीत मे जादू जैसा असर है ,इस वाक्य को चाहे जिस व्यक्ति के सम्मुख कह दीजिये ,वह स्वीकृती -सूचक उत्तर ही देगा,नकारात्मक नहीं|यद्यपि उसने इस वाक्य को परीक्षा की कसौटी पर कभी नहीं कसा है,तब भी अनुभवहीन होने पर भी सभी इसे क्यों मानलेते हैं यह एक विचारणीय प्रश्न है ।उसकी यह स्वीकृति
संगीत और आत्मा के सम्बन्ध की पुष्टि करती है ।आत्मा सत्य का स्वरुप है ।अतः वह सत्य की सत्ता को तुरंत स्वीकार कर लेता है । इसका एक कारण संगीत की व्यापकता का रहस्य तथा संगीत के सम्बन्ध में कुछ सुनी हुई बातों का अनुभव भी हो सकता है ।
पावस की लाजवंती संध्याओं को श्वेत-श्याम मेघ मालाओं से प्रस्फुटित नन्हीं-नन्हीं बूँदों का रिमझिम -रिमझिम राग सुनते ही कोयल कूक उठाती है ....पपीहे गा उठाते हैं ....मोर नाचने लगते हैं ....मन-मंजीरे बोल उ ठते हैं .....।लहलहाते हरे-भरे खेतों को देखकर कृषक आ नंद विभोर हो जाता है और अनायास ही अलाप उठता है किसी परिचित मल्हार के बोल ।यही वो समय होता है जबकि प्रकृति के कण -कण में संगीत की सजीवता भासमान होती है ।इन चेतनामय घड़ियों में प्रत्येक जीवधारी पर संगीत की मादकता का व्यापक प्रभाव पड़ता है ।
जीवन-पथ के किसी भी मोड़ पर रुक कर देख लीजिये ,वहीँ आपको अलग-अलग विधाओं में संगीत मिलेगा ....!!दुःख से सुख से ,रुदन से हास से ,योगसे वियोग से ,मृत्यु से जीवन से ,जीवन की प्रत्येक अ वस्था में सगीत की कड़ी ........जुड़ी ही रहती है ......!!!!!
पावस की लाजवंती संध्याओं को श्वेत-श्याम मेघ मालाओं से प्रस्फुटित नन्हीं-नन्हीं बूँदों का रिमझिम -रिमझिम राग सुनते ही कोयल कूक उठाती है ....पपीहे गा उठाते हैं ....मोर नाचने लगते हैं ....मन-मंजीरे बोल उ ठते हैं .....।लहलहाते हरे-भरे खेतों को देखकर कृषक आ नंद विभोर हो जाता है और अनायास ही अलाप उठता है किसी परिचित मल्हार के बोल ।यही वो समय होता है जबकि प्रकृति के कण -कण में संगीत की सजीवता भासमान होती है ।इन चेतनामय घड़ियों में प्रत्येक जीवधारी पर संगीत की मादकता का व्यापक प्रभाव पड़ता है ।
जीवन-पथ के किसी भी मोड़ पर रुक कर देख लीजिये ,वहीँ आपको अलग-अलग विधाओं में संगीत मिलेगा ....!!दुःख से सुख से ,रुदन से हास से ,योगसे वियोग से ,मृत्यु से जीवन से ,जीवन की प्रत्येक अ वस्था में सगीत की कड़ी ........जुड़ी ही रहती है ......!!!!!
आपके लिए आज एक विशेष अनुभूती लिए हुए सुश्री नगीन तनवीर का गाया ये लोकगीत ......... ज़रूर सुनिए ......
संगीत की कोई जाति नहीं होती , कोई रूप नही होता .....इसे तो बस अनुभव किया जा सकता है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
आभार
निश्चय ही लोक संगीत पहले प्रसूत हुआ शाश्त्र बाद में गढ़ा गया .एक चाव था ज़िन्दगी में हर अवसर के गीत हुआ करते थे ,अब भी होतें हैं लेकिन शहरी आबोहवा से दूर .अच्छी प्रस्तुति .. . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
शनिवार, 26 मई 2012
दिल के खतरे को बढ़ा सकतीं हैं केल्शियम की गोलियां
http://veerubhai1947.blogspot.in/तथा यहाँ भी ज़नाब -
बहुत प्यारा आलेख अनुपमा जी.....
ReplyDeleteसंगीत के सभी सुरों को समेट लिया आपने....
और लोकगीत तो आनंददायी...................
शुक्रिया...
सस्नेह
आपने सही कहा -- गाना और रोना सबको आता है, पर जब मैं गाता हूं तो लोग रोने लगते हैं।
ReplyDelete:):):)
पहले विभिन्न अवसरों पर घर की महिलाएं गाया करती थीं। आज सोहर, आदि सब लुप्त होते जा रहे हैं।
:))ये तो सुन कर पता चलेगा ...!!
Deleteउन लोकगीतों की मिठास का कोइ मुकाबला नहीं है ....!!
आत्मा की अमरता का गीत, चोला माटी के राम..
ReplyDeleteमुझे तो बस इतना सा पता है कि जो संगीत नहीं सुनते वे दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत चीज़ से महरूम हैं
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आनंददायी लोकगीत.
ReplyDeleteसंगीत से जुड़ी कोई भी पोस्ट मुझे हमेशा ही आकर्षित करती है ...आप की पोस्ट बहुत प्यारी है ....लोकगीत बहुत मधुर !
ReplyDeleteबार बार गीत सुनूँ या आपको कुछ लिखूं ?
ReplyDeletesundar post ......
ReplyDeleteसंगीत आत्मा की ज़रूरत है। यही कारण है कि वह सबको न सिर्फ अच्छा लगता है,बल्कि अपने-अपने राग में हर कोई गाता भी है।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteअहा! बहुत दिनों के बाद क्लास सजी है। एक अच्छे विषय पर आपने पूरी भावुकता के साथ लिखा है। संगीत तो आत्मा का औषध है।
ReplyDeleteबढ़िया आलेख।
ReplyDeleteप्रत्येक समाज में जन्म से लेकर मृत्यु तक के अवसरों पर गीत-संगीत की परंपरा रही है।
जो संगीत विमुख है उसे तो निरा पशुतुल्य कहा गया है।
बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश भरी अनुभूति ..
ReplyDeleteआभार
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
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