संगीतकार के लिए पुस्तकालय रखना नितांत आवश्यक है |अध्ययन करते समय वह अपना दृष्टिकोण संकीर्ण न बनाये |प्रत्येक पुस्तक का ,चाहे वो भारतीय लेखक की हो या विदेशी लेखक की ,मनन आवश्य करना चाहिए |अपने दृष्टिकोण को उदार बनाते हुए आप जो अध्ययन करेंगे ,उससे आपका ज्ञान सर्वतोन्मुख होगा |आपके संगीत की पृष्ठभूमि उदार और गंभीर बनेगी |
संगीत का आदर्श है ,ज्ञान के सुनहले रत्नों को एकत्रित करके जाज्ज्वल्यमान प्रासाद का निर्माण करना तथा सार्वभौमिक मानव जीवन का एक्य व संगठन |संगीतज्ञों को ऎसी रचना का सृजन करना चाहिए ,जो प्रान्त व देश की सीमाओं की विभिन्नताओं में रहते हुए भी एक अव्यक्त सूत्र में मानव-हित तथा सहयोग के बिखरे हुए पल्लवों का बंदनवार कलामंदिर के चारों ओर बाँध सकने योग्य हो |इस आदर्श की पूर्ती तभी हो सकती है ,जब आप क्रियात्मक के साथ साथ शास्र का भी (theory) का भी अध्ययन करें |
इसी सबब से मैं आपको शास्त्र के बारे में भी जानकारी देती रहती हूँ कि आप संगीत के विभिन्न पहलुओं से वाबस्ता होते रहें |
आज आपको दो रागों की जुगालबंदी सुना रही हूँ ......एक अद्भुत अनुभव .....
आभार ... ......
अद्भुत अनुभव करवाने के लिए धन्यवाद और आभार
ReplyDeleteहृदय से आभार विभा जी ....
Deleteise kitna sundar kaha jaaye....bas sunte rahen, sunte rahen...ashesh dhanyavaad..!! :) :)
ReplyDeleteआभार आर्यमान ...
Deleteise kitna sundar kaha jaye....bas sunte rahen, sunte rahen...ashesh dhanyavaad..!! :)
ReplyDeleteअनुपमा जी, ऐसी प्रस्तुतियाँ निःशब्द कर देतीं हैं श्रोता को ।
ReplyDeleteआभार आपका ।
आपको पसंद आयी ये जुगालबंदी ...बहुत आभार गिरिजा जी ...!!ये बड़ा दुर्लभ वीडियो लगा मुझे ...!!दो अलग राग इस प्रकार गाना ...शास्त्रीय संगीत में भी विलक्षणता दर्शाता है ...कोशिश करती हूँ अच्छे और कुछ अलग से वीडियो आप सभी को सुनाऊँ ...और दिखाऊँ ....
Deleteऔर किसी लगे न लगे पर मुझे तो बहुत पसंद आई ये जुगलबंदी....संगीत इस दुनिया की सबसे नायाब चीज़ है और ये वही जान सकता है जिसने इस सागर में गोता लगाया हो...प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मानवता अब तार-तार है
आभार प्रसन्न वदन जी .....ये जुगालबंदी इसलिए भी विशिष्ट है क्योकि राग अलग है और षडज भी दोनों गायकों के अलग है ....बहुत ही अनोखी लगी ये गायकी ....!!आप इसे समझ पाये ...हृदय से आभार ...!!
Deleteवाह दो रागों का संगम समागम समस्वरता मोह ले गई तन मन सुध ....
ReplyDeleteआभार ....हृदय से ...!!
Deleteवाह ।
ReplyDeleteआभार ....हृदय से ...!!
Deleteशुक्रिया अनुपमा जी उत्साह बढाने का .ॐ शान्ति .चार दिनी सेमीनार में ४ -७ जुलाई ,२ ० १ ३ ,अल्बानी (न्युयोर्क )में हूँ .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteअनमोल वचन हैं ये अनुकरणीय भी हैं .ॐ शान्ति .
wonderful harmony between two ragas.
पुनः आभार वीरू भाई जी .....वाकई संगीत का गहन अध्ययन करने वालों के लिए या यूं कहूँ कि संगीत के विद्यार्थियों के लिए ये संग्रहणीय जुगालबंदी है ....!!अद्भुत ही है ...!!
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