तेज दुपहरी बीत चुकी ...
गहराती स्वनिल नीली सी साँझ ...
समर्पित ही रही मैं ..कर्तव्य की डोर से बंधी .....हर स्वर पर स्थिर ....
अनुनादित अविचलित ..अकंपित ...हे जीवन .....तुम्हारे द्वार ...
सांध्य दीपक जल रहा .. ...
है यह साँझ की बेला .....
तानपुरे की नाद गुंजित हृदय में...
संधिप्रकाश राग मारवा है छेड़ा ...
उदीप्त दृग ....अन्तःकरण तृषा शेष...
एक स्वर लहरी मेरी ..किन्तु फिर भी अशेष ......
आज .....क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??
मेरा समर्पण है .....
मेरे जीवन की पूंजी ...
मेरी आत्मा की प्रतिमा ...
एक अंजुरी जल की मेरी ....
मेरे स्वरों में ...मेरी आराधन का प्रमाण ...
फिर भी ....आज क्यूँ लगता नहीं है स्वर ....??
तब ...
मेरे हृदय से रिस रहे ...
ढेरों भावों में से ...
अथाह पीड़ा कहती .....
स्वाति सी ....
आँसू की बस एक बूंद मेरी .......
बन जाती है ....
मेरे ह्रदय स्त्रोत से फूटी हुई ..
हर कविता मेरी ....!!
किन्तु आज ...नहीं लगता ...नहीं लगता है स्वर ......!!
स्वर की रचना कैसे रचूँ .....??
स्वर से वियोग ....कैसे सहूँ ....???
हे जीवन ...
नतमस्तक हूँ ...
आज भी तुम्हारे द्वार ....
बस कह दो एक बार ...
अपने छल को भूल ..........
क्या कर पाओगे मुझसे साक्षात्कार ....?
खुले हैं मेरे उर द्वार ...
भेज दो वो स्वर मुझ तक निर्विकार .....
जहां मैं अभी भी खड़ी हूँ ....
प्रातः से साँझ तक ....
कर्तव्य की डोर से बंधी ...
हर स्वर पर स्थिर ...
अनुनादित ...अविचलित ...अकंपित ...
अपने ही द्वार .....
करने उस स्वर सत्य से साक्षात्कार .....
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गाना गाना और शास्त्रीय संगीत गाना दो अलग अलग बातें हैं ....!!शास्त्रीय संगीत को करत की विद्या कहा जाता है |सुर साधना पड़ता है तभी आप उसे ग्रहण कर सकते हैं |साल दर साल सुर साधते जाइए तब कहीं जाकर सरस्वती कंठ में विराजमान होतीं हैं ...!!राग को सही प्रकार गाने की चाह ही प्रत्येक विद्यार्थी को लगन और मेहनत से जोड़े रखती है |
अब ये वीडियो ज़रूर देखें .......तभी आप कविता में छुपी हुई वेदना समझ पाएंगे .....